श्री रविशंकर श्रीवास्तव ( रवि रतलामी ) हिन्दी के जाने माने कवि, कथाकार और संवेदनशील ब्लॉगर हैं। ब्लोगिंग के संवंध में उनका कहना है कि "ब्लॉग आजाद अभिव्यक्ति का एक ऐसा माध्यम है जिसने हिन्दी ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रीय भाषाओं को ताकत दी है। यह भविष्य का बहुत सशक्त माध्यम है। ब्लॉगर इसके जरिए न सिर्फ अपनी बात कह सकते हैं वरन इसे पूर्णकालिक रोजगार के रूप में भी अपना सकते हैं। इसके माध्यम से अपनी बात को न सिर्फ लोगों तक पहुंचा सकते हैं वरन त्वरित फीडबैक भी पा सकते हैं।" आज हम उनके कथाकार पक्ष से आप सभी को रूबरू कराने जा रहे हैं उनकी कहानी आशा ही जीवन है के माध्यम से -
!!कहानी - आशा ही जीवन है !!
() रवि रतलामी
() रवि रतलामी
“तुम्हारे रतलाम के डॉक्टर डॉक्टर हैं या घसियारे?” एमवाय हॉस्पिटल इन्दौर के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल भराणी ने मरीज को पहली ही नज़र में देखते हुए गुस्से से कहा. इकोकॉर्डियोग्राफ़ी तथा कलर डॉपलर स्टडी के ऊपरांत डॉ. भराणी का गुस्सा और उबाल पर था - “ये बेचारा हृदय की जन्मजात् बीमारी की वज़ह से नीला पड़ चुका है और वहाँ के डाक्टर इसे केजुअली लेते रहे. कंजनाइटल डिसीज़ में जितनी जल्दी इलाज हो, खासकर हृदय के मामले में, उतना ही अच्छा होता है.”. उसने मरीज की ओर उंगली उठाकर मरीज के परिजनों पर अपना गुस्सा जारी रखा – “अब तो इसकी उम्र पैंतीस वर्ष हो चुकी है, सर्जिकल करेक्शन का केस था, अब समस्या तो काफी गंभीर हो चुकी है. मगर फिर भी मैं इसे अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई रेफर कर देता हूँ. लेट्स होप फॉर सम मिरेकल.”
मरीज और उसके घर वालों को यह तो पता था कि वह सामान्य लोगों से थोड़ा कमजोर है, परन्तु अब तक उसे खांसी सर्दी के अलावा कभी कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी नहीं हुई थी. डॉक्टरों ने भी कभी कोई ऐसी वैसी बात नहीं बताई थी. वह तो जाने कैसा मलेरिया का आक्रमण पिछले दिनों हो गया था जिसके कारण इलाज के बावजूद मरीज चलने फिरने में भी नाकाम हो रहा था, और तब इलाज कर रहे डॉक्टर को कुछ शक हुआ और फिर उसने इन्दौर के हृदयरोग विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह दी थी.
अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई में मरीज के हृदय का एंजियोग्राम किया गया. पता चला कि उसका हृदय छाती में बाएँ बाजू के बजाए दाएँ तरफ स्थित है, और इस वजह से ढेरों अन्य कॉम्प्लीकेशन्स भी भीतर मौजूद हैं. उसके – हृदय में बड़ा सा छेद है, उसकी धमनी और शिराएँ आपस में बदली हुई हैं, पल्मनरी वॉल्व केल्सिफ़ाइड है, ऑरोटा कहीं और से निकल रहा है, कोरोनरी आर्टरी (शिरा जो हृदय को धड़कने के लिए खून पहुँचाती है) एक ही है (सामान्य केस में दो होती हैं), पल्मोनरी हायपरटेंशन है... इत्यादि.
दरअसल, इतने सारे कॉम्प्लीकेशन्स के कारण मरीज के हृदय तथा शरीर में खून का बहाव ग्रोइंग एज में तो जैसे तैसे कम्पनसेट हो रहा था, परंतु उम्र बढ़ने के साथ गंभीर समस्याएँ पैदा कर रहा था.
अपोलो हॉस्पिटल के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. के. सुब्रमण्यम ने पहले तो मरीज के हृदय की सर्जरी के लिए सुझाव दिया, परंतु हृदय-शल्य चिकित्सक डॉ. एम. आर. गिरिनाथ से कंसल्ट करने के उपरांत अपनी मेडिकल एडवाइस में मरीज के लिए यह लिखा-
“चूंकि मरीज के हृदय की करेक्टिव सर्जरी में सर्जरी के दौरान तथा उसके उपराँत मृत्यु की संभावना अत्यधिक है, अत: मरीज को दवाइयों पर निर्भर रहने की सलाह दी जाती है.”
और उन्होंने जो दवाई लिखी वह थी – 0.25 मिलीग्राम अल्प्राजोलॉम – एक अत्यधिक ए़डिक्टिव, नशीली दवाई जो डिप्रेसन, अवसाद को तथाकथित रूप से खत्म करती है – और जिसका हृदय रोग के इलाज से कोई लेना देना नहीं है.
डॉ. गिरीनाथ ने मरीज को आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के हृदय-शल्य चिकित्सक डॉक्टर के. एस. अय्यर को रेफर कर दिया चूँकि वे कंजनाइटल कार्डियाक डिसीज़ के करेक्टिव सर्जरी के विशेषज्ञ थे.
एम्स में एक बार फिर से मरीज का एन्जियोग्राम किया गया. जहाँ प्राइवेट अपोलो हस्पताल में 16 हजार रूपए में तीन दिन में एन्जियोग्राम किया जाकर उसकी रपट मिल गई थी, सरकारी एम्स में एन्जियोग्राम के लिए तीन महीने बाद का समय दिया गया, एन्जियोग्राम के तीन महीने पहले तय समय के आठ दिन पश्चात् एन्जियोग्राम किया गया और उसके भी सात दिन बाद रपट दी गई. एन्जियोग्राम के लिए सरकारी कंशेसन युक्त फीस के 7 हजार रुपए लिए गए, परंतु दो बार की दिल्ली की सैर और 20 दिन वहाँ रूकने के फलस्वरूप 20 हजार और खर्च हो गए.
एन्जियोग्राम की स्टडी – एम्स के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. के. के. तलवार तथा डॉ. कोठारी द्वारा किया गया और हृदय-शल्य चिकित्सक डॉ. के. एस. अय्यर से कंसल्ट के उपरांत उन्होंने वही कहानी दोहरा दी – ऐसे केसेस में सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है, परंतु चूंकि सर्जरी में खतरा बहुत है अत: मरीज को दवाइयों पर जिंदा रहना होगा. इस बार डॉक्टर कोठारी ने दवाई लिखी - फेसोविट – एक आयरन टॉनिक.
मरीज के पास दिन गिनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. दिन – ब – दिन उसकी स्थिति खराब हो रही थी, और तब जब उसे महसूस हो रहा था कि मौत नित्य प्रति, आहिस्ता – आहिस्ता उसके करीब आ रही है. रोज रात्रि को वह सोचता सुबह होगी या नहीं और सुबह सोचता कि दिन कैसे शीघ्र बीते.
पर, मरीज ने आशा नहीं छोड़ी. जीवन के प्रति अपनी आशा को उसने बरकरार रखा. स्टीफ़न हॉकिंस जैसे उदाहरण उसके सामने थे. इस बीच मरीज ने मुम्बई, पुट्टपर्ती इत्यादि के कई उच्च सुविधायुक्त हृदयरोग संस्थानों की दौड़ लगाई. किसी ने सलाह दी कि वेल्लोर का हृदयरोग संस्थान भी अच्छा है – वहाँ दिखाओ. मरीज वहाँ दिखाने तो नहीं गया, हाँ, अपनी रपट की एक प्रति उसने वेल्लोर के हृदयरोग संस्थान में भेज दी.
इस बीच मरीज के तमाम चाहने वाले मिलते. वे अपने-अपने तरीके से टोने-टोटके, जादू टोना, आयुर्वेद, होम्योपैथ, नेचुरोपैथी, लौकी (घिया) पैथी, रेकी, सहजयोग इत्यादि तमाम तरह के इलाज बताते. मरीज जैसे तैसे इन सबसे बचता रहा. उसे पता था, टूटी हड्डी का सही इलाज उसके जुड़ने पर ही है.
अचानक एक दिन उसके पास मद्रास मेडिकल मिशन के हृदय-शल्य चिकित्सक डॉ. के.एम.चेरियन का पत्र आया. उसमें लिखा था कि वेल्लोर के हृदय-रोग संस्थान से अग्रेषित पत्र उनके पास आया है, और मरीज की मेडिकल जाँच रपट के आधार पर सर्जरी के द्वारा कुछ सुधार की संभावनाएँ हैं.
मगर, चूँकि कई मानी हुई संस्थाओं के शीर्ष स्तर के हृदय-रोग विशेषज्ञों और हृदय-शल्य चिकित्सकों द्वारा मरीज के शल्य चिकित्सा में अत्यधिक खतरे की बात पहले ही की गई थी, अत: मरीज का समूचा परिवार किसी भी प्रकार की सर्जरी के विरोध में था.
परंतु मरीज के जीवन के लिए यह चिट्ठी आशा की किरण थी. उसे पता था कि तिल तिल मौत का इंतजार करने की बजाए ऑपरेशन टेबल पर मृत्यु ज्यादा सहज, आसान और पीड़ा रहित होगी. फिर, उसे आशा की एक छीण सी किरण भी तो दिखाई दे ही रही थी. उसने उस किरण के सहारे अपनी जीवन यात्रा तय करने का निश्चय किया.
अंतत: मरीज के हृदय की छह घंटों की कॉम्प्लीकेटेड शल्य क्रिया सम्पन्न हुई, जिसमें उसके हृदय के छेदों (एएसडी तथा वीएसडी) को बन्द किया गया, आरोटिक होमोग्राफ्ट के द्वारा हृदय तथा फेफड़ों के बीच एक कन्ड्यूइट लगाया गया. डॉ. चेरियन द्वारा की गई यह शल्य क्रिया तो सफल रही, परंतु इस दौरान हुए हार्ट ब्लॉक के कारण बाद में उसके हृदय में स्थायी पेस मेकर भी लगाया गया जो आज भी प्रति-पल बिजली के झटके देकर मरीज के हृदय को स्पंदन प्रदान करता है. चालीस दिनों (बीस दिनों तक आईसीसीयू की अवधि सम्मिलित) तक हृदयरोग संस्थान में भर्ती रहने के दौरान उतार चढ़ाव के कई क्षण ऐसे आए जिसमें मरीज की नैया कभी भी आर या पार हो सकती थी.
ऑपरेशन के पश्चात् एक दिन मरीज की हालत बहुत नाज़ुक थी. उसका हृदय धड़कने के बजाए सिर्फ वाइब्रेट कर रहा था, वह भी 200-300 प्रतिमिनट. दवाइयाँ भी असर नहीं कर रही थीं. बात डॉ. चेरियन तक पहुँचाई गई.
डॉ. चेरियन तत्काल मरीज के पास पहुँचे. मरीज से डॉ. चेरियन ने पूछा – “हाऊ आर यू?” मरीज के तमाम शरीर पर आधुनिक मशीनों, मॉनीटरों और दवाइयों-सीरमों के तार और इंजेक्शनों के पाइप लगे हुए थे.
“वेरी बैड” - मरीज ने ऑक्सीजन मॉस्क के भीतर से अपनी टूटती साँसों के बीच, इशारों में कहा.
डॉ. चेरियन ने मरीज के पैरों को ओढ़ाई गई चादर एक तरफ खींच फेंकी और मरीज के पैरों को अपने हाथों में लेकर सहलाया. मानों वे मरीज में जीवनी शक्ति भर रहे हों, उसमें जीवन के लिए एक नई आशा का संचार पैदा कर रहे हों. चेन्नई के माने हुए हृदय शल्य चिकित्सक, पद्मश्री डॉ. के. एम. चेरियन की यह एक और नायाब चिकित्सा थी.
दूसरे दिन से ही मरीज में चमत्कारी सुधार आया. दसवें दिन उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
शल्य चिकित्सा के दस साल बाद आज भी उस मरीज की जीवन के प्रति आशा भरपूर है. उसे पता है कि आशा में ही जीवन है.
(कहानी के सारे पात्र व घटनाएँ वास्तविक हैं. मरीज, इन पंक्तियों का लेखक है :)
**--**
ग़ज़ल*-*-*
आशा में जीवन है
आशा ही जीवन है
गर्द गुबार में भी
आशा से जीवन है
धर्मान्धों का कैसा
आशा का जीवन है
हालात चाहे न हों
आशा ही जीवन है
जी रहा रवि अभी
आशा का जीवन है*-*-*
ग़ज़ल*-*-*
आशा में जीवन है
आशा ही जीवन है
गर्द गुबार में भी
आशा से जीवन है
धर्मान्धों का कैसा
आशा का जीवन है
हालात चाहे न हों
आशा ही जीवन है
जी रहा रवि अभी
आशा का जीवन है*-*-*
4 comments:
आशा ही तो जीवन है .. कम खर्च में ही सी एम सी एच , वैल्लौर न जाने कितने जीवन में आशा का संचार करती आयी है और करती रहेगी .. बहुत सुंदर आदर्श लेकर चलते आ रहे हैं वे !!
आशा से पूर्ण रचना .......एक विश्वास
विश्वासपूर्ण रचना.... यह उत्सव उस सोपान को प्राप्त कर लिया हैं जहां हर किसी की परिकल्पना नहीं पहुँचती है .....शुभकामनाओं के साथ !
जीता रहेगा सदा रवि
जैसे आसमान में रवि
कह रहा है यह अवि।
मर्मस्पर्शी, रोमांचक, दस्तावेजीय जानकारी से परिपूर्ण, ऐतिहासिक और एक शब्द में कहूं तो नायाब।
ऐसा एक जीवंत अनुभव मेरा भी है, पर इतनी गहन डॉक्टरी जानकारी नहीं है, कभी लिखूंगा।
जीवन आशा भी है और विश्वास की परिभाषा भी।
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