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!! मुझको याद तुम्हारी आती !!
मुक्ति दिलाकर अंधियारे से
आकर पूरब के द्वारे से
सरसों के फूलों से हंसकर
धूप सुबह की जब बतियाती
मुझको याद तुम्हारी आती ।
नदी-तीर से थोड़ा हटकर
खड़ा शिवाले से जो सटकर
जब-जब उस पीपल के नीचे
सोनचिरैया गीत सुनाती
मुझको याद तुम्हारी आती ।
पावस से तरुणाई पाकर
मुझको अपने पास बुलाकर
बिठा गोद में जब-जब धरती
माथे केसर तिलक लगाती
मुझको याद तुम्हारी आती ।
मन के तुलसी चौबारे पर
पुष्पहार से थाल सजाकर
मन के तुलसी चौबारे पर
पुष्पहार से थाल सजाकर
होते शाम सुहागिन कोई
जब-जब संध्या-दीप जलाती
मुझको याद तुम्हारी आती ।
4 comments:
मन के तुलसी चौबारे पर
पुष्पहार से थाल सजाकर
होते शाम सुहागिन कोई
जब-जब संध्या-दीप जलाती
मुझको याद तुम्हारी आती ।
सुंदर गीत-रविकांत जी को शुभकामनाएं
मुक्ति दिलाकर अंधियारे से
आकर पूरब के द्वारे से
सरसों के फूलों से हंसकर
धूप सुबह की जब बतियाती
मुझको याद तुम्हारी आती
बहुत खूब !!
बढ़िया
सरस गीत. आनंद मिला. बधाई.
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