श्री जाकिर अली रजनीश हिंदी ब्लॉग जगत में सांस्कृतिक जागरूकता के संवाहक के रूप में जाने जाते हैं । मृदुभाषी सृजनधर्मिता और संगठनात्मक सुयोग को प्रश्रय देने वाले रजनीश आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है । पहली बार उनके द्वारा संवाद सम्मान की पहल की गयी है जिससे हिंदी ब्लॉग जगत अनायास ही आंदोलित हो गया है । श्री रजनीश इन सबके अलावा जिस विधा के लेखन के लिए सबसे ज्यादा मशहूर हैं वह है बाल कथा और बाल कविता का क्षेत्र जिसमें इनका सार्थक हस्तक्षेप है । बच्चों के कोना में आज प्रस्तुत है इनकी एक कविता -
!! वाल कविता :बस्ते का भार !!
() जाकिर अली रजनीश
कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी,
यह बस्ते का भार?
मन करता है तितली के पीछे मैं दौड़ लगाऊं।
चिडियों वाले पंख लगाकर अम्बर में उड़ जाऊं।
साईकिल लेकर जा पहुंचूं मैं परी–लोक के द्वार।
कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?
कर लेने दो मुझको भी थोड़ी सी शैतानी।
मार लगाकर मुझको, मत याद दिलाओ नानी।
बिस्किट टॉफी के संग दे दो, बस थोड़ा सा प्यार।
कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?
() () ()
7 comments:
बच्चों के मासूम मन के सवाल, उनकी अभिलाषा को बखूबी लिखा है रजनीश जी ने,
यह रचना एक महत्वपूर्ण प्रश्न लेकर खड़ी है , ज्वलंत प्रश्न !
जाकिर भाई की रचना बहुत पसंद आई. विचारणीय रचना.
मासूम बच्चों की व्यग्रता की सहज सुन्दर अभिव्यक्ति ! अति उत्तम !
्रहनीश जी की रचना बहुत पसंद आयी मेरी पुस्तक की एक कविता से मिलती जुलती कविता है। रजनीश जी को बधाई
सुंदर बॉल रचना ...
जाकिर जी को बहुत पहले से बाल साहित्य के लिए जानता रहा ! यहां ब्लॉगजगत में उनके कई रूप दिखे !
जाकिर जी की इस कविता के लिए आभार !
हर बच्चे के दिल की व्यथा को अभिव्यक्त करती ..कई प्रश्न उठाती बहुत अच्छी कविता.
काश !सिस्टम में कुछ तो सुधार हो!
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