श्री जाकिर अली रजनीश हिंदी ब्लॉग जगत में सांस्कृतिक जागरूकता के संवाहक के रूप में जाने जाते हैंमृदुभाषी सृजनधर्मिता और संगठनात्मक सुयोग को प्रश्रय देने वाले रजनीश आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैपहली बार उनके द्वारा संवाद सम्मान की पहल की गयी है जिससे हिंदी ब्लॉग जगत अनायास ही आंदोलित हो गया हैश्री रजनीश इन सबके अलावा जिस विधा के लेखन के लिए सबसे ज्यादा मशहूर हैं वह है बाल कथा और बाल कविता का क्षेत्र जिसमें इनका सार्थक हस्तक्षेप हैबच्चों के कोना में आज प्रस्तुत है इनकी एक कविता -


!! वाल कविता :बस्ते का भार !!

() जाकिर अली रजनीश










कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी,

यह बस्ते का भार?

मन करता है तितली के पीछे मैं दौड़ लगाऊं।

चिडियों वाले पंख लगाकर अम्बर में उड़ जाऊं।

साईकिल लेकर जा पहुंचूं मैं परी–लोक के द्वार।

कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?

कर लेने दो मुझको भी थोड़ी सी शैतानी।

मार लगाकर मुझको, मत याद दिलाओ नानी।

बिस्किट टॉफी के संग दे दो, बस थोड़ा सा प्यार।

कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?

() () ()

7 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा… 17 अप्रैल 2010 को 4:13 pm बजे

बच्चों के मासूम मन के सवाल, उनकी अभिलाषा को बखूबी लिखा है रजनीश जी ने,
यह रचना एक महत्वपूर्ण प्रश्न लेकर खड़ी है , ज्वलंत प्रश्न !

Udan Tashtari ने कहा… 17 अप्रैल 2010 को 6:40 pm बजे

जाकिर भाई की रचना बहुत पसंद आई. विचारणीय रचना.

Sadhana Vaid ने कहा… 18 अप्रैल 2010 को 7:53 am बजे

मासूम बच्चों की व्यग्रता की सहज सुन्दर अभिव्यक्ति ! अति उत्तम !

निर्मला कपिला ने कहा… 18 अप्रैल 2010 को 10:42 am बजे

्रहनीश जी की रचना बहुत पसंद आयी मेरी पुस्तक की एक कविता से मिलती जुलती कविता है। रजनीश जी को बधाई

दिगम्बर नासवा ने कहा… 18 अप्रैल 2010 को 4:23 pm बजे

सुंदर बॉल रचना ...

Himanshu Pandey ने कहा… 23 अप्रैल 2010 को 6:03 pm बजे

जाकिर जी को बहुत पहले से बाल साहित्य के लिए जानता रहा ! यहां ब्लॉगजगत में उनके कई रूप दिखे !

जाकिर जी की इस कविता के लिए आभार !

Alpana Verma ने कहा… 19 मई 2010 को 4:30 pm बजे

हर बच्चे के दिल की व्यथा को अभिव्यक्त करती ..कई प्रश्न उठाती बहुत अच्छी कविता.
काश !सिस्टम में कुछ तो सुधार हो!

 
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