नन्हें दोस्तो,

 आज मैं तुम्हें एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाता हूँ जो हिन्दी के प्रमुख विज्ञान कथाकार माने जाते हैं। उनका नाम डा0 अरविंद मिश्र


अरे भई, ये सुई लगाने वाले डाक्टर नहीं है, इन्होंने मछलियों के बारे में रिसर्च करके डाक्टर की डिग्री हासिल की है। डा0 मिश्र हिन्दी के चर्चित विज्ञान लेखक हैं और नेट पर भी पिछले काफी समय से सक्रिय हैं। डा0 मिश्र का विस्तृत परिचय आप यहाँ पर देख सकते हैं। आइए पढते हैं डा0 अरविंद मिश्र की एक रोचक बाल विज्ञान कथा बड़बडिया।

आपको यह कहानी कैसी लगी, बताना न भूलना।


!! बड़बडिया !!



गांव के सब लोग उसे बड़बडिया कहते थे। वह था भी तो बहुत बातूनी हर वक्त बड़बड़ - बड़बड़ करता रहता था। सूरज की मां को तो वह फूटी आंख भी नहीं सुहाता था। वह सूरज को बड़बडिया से दूर रहने को सीख देती थी। मगर नटखट सूरज मां की सीख कहां सुनने वाला था। उसने चोरी छिपे बड़बडिया से दोस्ती कर ली थी। बड़बडिया उसे अक्सर अच्छी-अच्छी और अनोखी कहानियां सुनाता था। वह उसे बहुत प्यार भी करता था। बड़बडिया उस गा¡व का बाशिंदा नहीं था। अभी वह कुछ महीनों पहले ही न जाने कहां से आ धमका था। सुरपुर गांव के निवासी पहले तो उसे देखकर सकपकाए थे और उसे भगाने का प्रयास भी किया था। किन्तु बड़बडिया का अच्छा स्वभाव और ठीक चाल-चलन देखकर गांव वालों ने उसे गांव से भगाने का इरादा छोड़ दिया था। तभी से वह गांव में स्थायी तौर पर रहने लगा था। सुरपुर गांव में दक्षिण की ओर एक बहुत पुराना खंडहर था जिसे गांव के लोग भुतहा खंडहर कहते थे। गांव के कई लोगों का कहना था कि उन लोगों ने सफेद कपड़ों में लिपटी आकृतियों को खंडहर के आस-पास घूमते हुए खुद अपनी आंखों से देखा है। गांव के रम्मन काका का तो कहना था कि उन्होंने बड़बडिया को भी खंडहर में कई बार आते-जाते देखा है इसलिए बच्चों को गांव की दक्षिण दिशा में जाने पर पाबन्दी लगा दी गयी थी। बड़बडिया से उस खंडहर के बारे में पूछने पर वह न जाने क्या अनाप शनाप बताता था जो गांव वालों की समझ में नहीं आता था, ण्ण्ण् शायद ऐसी ही बेतुकी बातों के कारण लोग उसे बड़बडिया कहते थे और पागल समझते थे। किन्तु सूरज उसे पागल नहीं मानता था। सूरज नटखट तो था मगर बहुत बुिद्धमान लड़का था। वह कक्षा सात का विद्यार्थी था। उसके क्लास टीचर उससे बहुत प्रसन्न रहते थे और उसकी प्रशंशा किया करते थे। आखिर एक दिन सूरज ने बड़बडिया से उस खंडहर के बारे में पूछ ही लिया। पहले तो बड़बडिया ने आनाकानी की लेकिन सूरज के बहुत जिद करने पर उसने उसे खंडहर दिखाने का वादा कर लिया। सूरज बुद्धिमान होने के साथ ही बहुत साहसी भी था। आखिर उसने बड़बडिया के साथ खण्डहर देखने का मन बना लिया।



अभी सूर्योदय नहीं हुआ था। रात के अंधेरे में ही बड़बडिया और सूरज खंडहर की ओर चल दिये थे। बड़बडिया आगे-आगे और उससे बिल्कुल चिपक कर पीछे-पीछे सूरज। दोनों चुप थे। आखिर सूरज ने मौन तोड़ा।

``बड़बडिया चाचा, क्या सचमुच होते हैं भूत।´´

``अभी पता लग जाएगा, जरा धीरज तो रखो सूरज´´, बड़बडिया ने रहस्य भरी आवाज में उत्तर दिया ``चाचा, अगर भूत हुए तो मुझे उनसे बचा लेगें न आप?´´ सूरज ने सहम कर कहा।

``अरे, तुम घबरा क्यों रहे हो? कुछ नहीं होगा। तुम बस चले चलो। जब मैं हू¡ तेरे पास, तो क्यों होते हो निराश..´´ बड़बडिया ने कहा।

``अरे, हम तो आ गए, ण्ण्ण् ``अचानक सामने खंडहर का मुख्य द्वार आ गया। `` सूरज, तुम यहीं दरवाजे की दहलीज पर रुको, मैं अभी आया´´ कहते हुए बड़बडिया पल भर में दरवाजे के भीतर प्रवेश कर ओझल हो गया। सूरज वैसे तो बहुत साहसी था पर उसे कोई अज्ञात-सा भय सताने लगा था। उसका दिल धक-धक कर रहा था और उसे लग रहा था कि उसके दिल की धक-धक उस सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी। अचानक उसकी तन्द्रा भंग हो गयी। अब उसके दिल की धक-धक नहीं, बल्कि यहा¡ तो उसे कोई तेज आवाज सुनाई दे रही थी।

``तुम उसे यहां क्यों ले आए? तुम जानते हो यह हमारा सीक्रेट मिशन हैं, वह बच्चा कहीं हमारा रहस्य न उजागर कर दे। नहीं, नहीं, तुमने यह बिल्कुल ठीक नहीं किया।´´

``नहीं, वह ऐसा लड़का नहीं है, वह बहुत बुिद्धमान है। मेरी हर बात मानता है। मैं उसकी गारंटी लेता हूं।´´ यह आवाज बड़बडिया की थी, ``फिर भी... ´´

फिर कुछ क्षण सन्नाटा रहा। सूरज के मन में आया कि वह वहां से सरपट भाग चले और घर जाकर ही दम ले ण्ण्ण् ण्ण् किन्तु तभी बड़बडिया सामने आ खड़ा हुआ। बड़बडिया ने उसका हाथ पकड़कर हठात कहा, ``चलो।´´ सूरज यंत्रवत सा चल पड़ा। खंडहर में चमगादड़ों का बाहर से आना शुरू हो चुका था। झींगुरों की झन-झन अलग से सुनाई दे रही थी, पर हल्के प्रकाश की एक रेखा उनका मार्ग दर्शन कर रही थी। वे लम्बे गलियारे से होते हुए बड़े से हॉल में पहुंच गये थे। अरे। यहां तो भरपूर प्रकाश था ण्ण्ण् ण्ण्ण् एक बड़ी सी यंत्रनुमा गोली सी वस्तु हॉल के बीचोबीच रखी थी। जब तक सूरज को यहां का सारा माजरा समझ में आता एक आवाज सन्नाटे को चीर गई।

``आओ, सूरज आओ ण्ण्ण्ण् हम तुम्हारा स्वागत करते हैं।´´

``क्या आप भूत हैं? डरे-सहमें सूरज के मुंह से अचानक ही ये शब्द फूट पड़े।

`` क्या कहा तुमने, भूत, अरे भाई, कैसा भूत ण्ण् ण्ण्ण् भूत यानि जो बीत चुका अथाZत् भूतकाल। जो बीत चुका वह फिर से वापस कैसे आ सकता है? हम भूत नहीं,, भविष्य हैं, तुम्हारा भविष्य...

``हां सूरज, हम भविष्य से आए हैं, तुम मेरे और हम सब के पुरखे हो। पर दादा-लकड़दादा की हजारों पीढ़ी के भी पहले के पुरखे..´´

मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है।´´ सूरज की बुद्धि चकरा गई थी´´ हम समझाते हैं तुम्हें। जैसे तुम जमीन पर चलकर दूरियां तय करते हो। हमारे ग्रह पर समय को भी पार करने की मशीने बन चुकी हैं जो समय में आगे या पीछे आ जा सकती हैं यानि टाइम मशीनें। हम तुम्हारे सौरमंडल के पास ही एक आकाशगंगा के एक सौर परिवार से आए हैंण्ण् ण्ण्ण् सौर परिवार का मतलब तो तुम समझते ही हो।´´

``हां, हां, जैसे हमारा सूर्य परिवार। सूर्य, बुध, शुक्र, धरती, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और अभी बिरादरी से बाहर हुआ प्लूटो।´´

``शाबाश,, तुमने तो सौर परिवार के सभी सदस्य ग्रहों का नाम गिना दिया´´ आवाज गूंजी।

``हम प्लूटों के भी पार से आये है बहुत तेज चलकर ण्ण्ण् हमारी रतार यानि यह जो यान तुम देख रहे हो वह प्रकाश की भी गति से तेज चलता है। प्रकाश की गति तो तुम्हें मालूम ही है। ``जी हां, एक लाख छियासी हजार दो सौ बयासी मील प्रति सेकेण्ड´´ सूरज के मुंह से तुरन्त रटा हुआ उत्तर फूट पड़ा।

``बहुत अच्छे! तुम, तो जीनियस हो। हम प्रकाश की गति से भी तेज चलकर तुम्हारे यहां एक प्रकाश वर्ष में पहुंचे हैं यानि प्रकाश एक वर्ष में जितनी दूरी तय करता है उतनी दूर से आये हैं हम। तुम गणना करके दूरी निकालना। अभी नहीं, इत्मीनान से´´ आवाज का आना जारी था।

``आप अंधेरे से थोड़ा प्रकाश में आइए।´´ सूरज बोला।

´´लो, आ गया।´´ बड़बडिया से मिलती-जुलती कद-काठी का एक व्यक्ति सामने था। ``आप लोग भूत नहीं है, और अपने को भविष्य से आया हुआ मानते हैं तो अपने आने का कारण तो बताइए´´ सूरज ने प्रश्न किया।

``हम दरअसल एक खोजबीन करने आये थे।´´

``कैसी खोजबीन? सूरज की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी।

``मैंने बताया न सूरज कि तुम मेरे आदि-आदि पूर्वजों के भी पूर्वज हो, वास्तव में हम अपनी आकाशगंगा के युक्का ग्रह पर यहीं धरती से ही तो गए थे ण्ण्ण् लगभग लाख वर्ष पहले ण्ण्ण् यानि तुम्हारे समय के कुछ हजार साल बाद जब धरती से दूसरे सौरमंडलों तक की यात्राएं यानि अन्तरिक्ष यात्राएं सम्भव हो गई थीं।´´

``यानि कि मेरे समय के कुछ हजार साल बाद मानव अन्तरिक्ष यात्राएं करने लगेगा।´´ सूरज ने फिर प्रश्न किया।

``हां, केवल अपने सौर मंडल ही नहीं, निकटवर्ती आकाश गंगाओं की भी ऐसी यात्राएं `जेनरेशन वोयेज´ कही जाएंगी।´´

``जेनरेशन वोयेज? मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ा।

``यानि ऐसे अन्तरिक्षयान होंगे जिनमें मानव की पीढ़ियां-दर पीढ़ियां जन्म लेती रहेंगी और अंतरिक्षयान की कमान संभालेगी ण्ण्ण् पर ऐसे अन्तरिक्षयान की आबादी बहुत नियंत्रित रहेगी ण्ण्ण् ण्ण् पर यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आएगा।´´

``आपने अब तक यह नहीं बताया कि आपका यहां आने का असली मकसद क्या है?´´ सूरज को मानो सहसा यह भूला प्रश्न याद हो आया।

``बस यूं ही, कुछ खास नहीं ऐसे ही तुम्हें देखने की इच्छा। और धरती, अथाZत् अपने मातृग्रह का सैर सपाटा´´

``अब मुझे आप बातों में मत बहलाइए। सही-सही बताइए।´´

``अच्छा (अब तुम सही-सही जानना ही चाहते हो तो समझ लो कि हम एक गुप्त अभियान पर आए थे। अपने ग्रह के मुखिया के इस धरती पर रहने वाले आदि पुरखों का पता लगाने का हमारा अभियान आज पूरा हुआ। तुम यानि तुम्हारा परिवार ही हमारे मुखिया अर्थात राष्ट्राध्यक्ष का धरती का आदि पुरखा परिवार है। हमारे राष्ट्रध्यक्ष स्वयं तुमसे मिलना चाहते हैं। बड़बडिया उनका ही विश्वासपात्र कर्मचारी है और मैं युक्का के खुफिया विभाग का प्रमुख हूं। मेरे अन्य साथी इस शटल में बैठे हैं, बोलो, चलोगे अपने भविष्य से मिलने?´´

इतना सुनना था कि सूरज का दिल जोरों से धड़क उठा। उसने बिना एक क्षण गंवाए जो सरपट दौड़ लगाई तो वापस घर ही आकर दम लिया ण्ण्ण् अभी घर पर सब सो रहे थे वह चोरी से घर में घुसा और बिस्तर में दुबक गया पर उसकी आंखों से नींद गायब थी।

सुबह हुई। सूरज उठ बैठा। उसे खंडहर का सारा दृश्य अभी भी बेचैन किये हुए था। आखिर उससे रहा नहीं गया। उसने सारी बातें अपनी मां से कह सुनाई। उसकी मां तो अवाक रह गयी। उसे बेटे की बातों पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। शायद सूरज ने कोई बुरा सपना देखा हो। उसकी मां को यही लगा।

``लगता है, तुमने रात में कोई बुरा सपना देखा है चलो, ठीक से हाथ मुंह धो लो´´ मां की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि सूरज बोल उठा, ``नहीं मां, मैं सच कह रहा हूं।´´

``बड़बडिया की खोज शुरू हुई। लेकिन उसका तो कहीं अता पता ही नहीं था। सब लोगों ने गांव का कोना-कोना देख डाला। पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि बड़बडिया गांव से फरार है और उसके कुछ साथी दक्षिण वाले खंडहर में हैं। देखते ही देखते खंडहर के पास लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई। कुछ हिम्मती गांव वाले सूरज को लेकर खंडहर में घुस गए। पर वहां तो कुछ भी नहीं था। हां, खंडहर के भीतर हाल में साफ-सफाई की गई लगती थी। कुछ तार और विचित्र से टूटे-फूटे कल-पुर्जे भी वहां बिखरे थे  इसके अलावा वहां कुछ भी नही था। ``बड़बडिया तो बहुत अच्छा इंसान था वह हम लोगों का बहुत काम भी कर देता था। कभी किसी पर गुस्सा नहीं करता था।´´

उन्हें यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बड़बडिया किसी दूसरे लोक से आया था।

सुरपुरवासियों को आज भी बड़बडिया का बेसब्री से इंतजार है।

प्रस्तुति- जाकिर अली “रजनीश”

5 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा… 22 अप्रैल 2010 को 12:26 am बजे

बहुत अच्छी लगी कहानी

Sadhana Vaid ने कहा… 22 अप्रैल 2010 को 6:39 am बजे

बहुत रोचक कथा !

Himanshu Pandey ने कहा… 22 अप्रैल 2010 को 7:52 am बजे

अरविन्द जी की इस कहानी से उत्सव में एक और आयाम जुड़ गया है !
उत्सव ऊंचाईयां ले रहा है ! जाकिर जी को इस प्रस्तुति का धन्यवाद !

उन्मुक्त ने कहा… 22 अप्रैल 2010 को 1:47 pm बजे

क्या बड़बडिया चिट्टाकारी भी करता था :-)

 
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