2 जनवरी 1964 को जन्में श्री अरविन्द श्रीवास्तव बिहार से हिन्दी के चर्चित युवा कवि / लेखक और प्रखर चिट्ठाकार हैं। संपादन-रेखांकन और अभिनय -प्रसारण जैसे कई विधाओं में ये अक्सर देखे जाते हैं। जितना ये प्रिंट पत्रिकाओं में छपते हैं, उतनी ही इनकी सक्रियता अंतर्जाल पत्रिकाओं में भी है। मेरे साहित्य सृजन के प्रारंभिक दिनों के साथी श्री अरविन्द श्रीवास्तव साहित्यिक पत्रिकाओं में : वागर्थ, वसुधा, परिकथा, दोआबा, हंस, वर्तमान साहित्य, अक्षर पर्व, जनपथ, उद्भावना, साक्ष्य (बिहार विधान परिषद), साक्षात्कार, देशज, दस्तावेज, उत्तरार्द्ध, सहचर, कारखाना, अभिघा, सारांश, सरोकार, प्रखर, कथाबिंव, योजनगंधा, औरत , आकल्प, शैली, अपना पैग़ाम, संभवा, कला-अभिप्राय, रास्ता, ये पल, मंडल विचार, क्षितिज, आदि में ससम्मान प्रकाशित होते रहे हैं .सम्प्रति - लेखन, अध्यापन, कम्पयूटर एवं सांस्कृतिक कार्य से संबद्धता वेब पत्रिका ‘यह सिलसिला’ - एवं जनशब्द का संपादन। इनकी प्रकाशित कृतियाँ है - ` कैद हैं स्वर सारे´ एवं `एक और दुनिया के बारे में´ .....प्रस्तुत है अंतरजाल पर कविता की दुनिया कविता का बाजार पर इनके अत्यंत सारगर्भित विचार-
!! अंतरजाल पर कविता की दुनिया कविता का बाजार !!
() अरविन्द श्रीवास्तव
मेरे लिए नेट की दुनिया चमत्कारों से भरा रहा, एक ब्लोगर के रूप में लगभग दो वर्ष पूर्व ब्लोगिंग की दुनिया में कदम रखा। मूलतः कविता कर्म से जुडे रहने के कारण नेट पर कविता की अनन्त दुनिया मुझे स्वागत में खडा दिखी और हम वेहिचक कह सकते हैं कि नेट पर कविता की दुनिया के साथ -साथ इसका बाजार भी सर चढ. कर बोल रहा है।
कविता के बारे में आलोचकों की कई अशुभ घोषणाओ के बावजूद इन दिनों अंतरजाल पर कविता की बल्ले-बल्ले है और कवियों के लिए चांदी काटने के दिन। कविता और कवियों के लिए एक साथ कई खुशखबरी अंतरजाल पर उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम यह कि ‘इंटरनेट’ पर कविता का सबसे बड. ‘कविता कोश’ बनकर तैयार है। इस कोश की संक्षिप्त जानकारी कुछ इस प्रकार है, इस कविता कोश के लगभग सत्ताइस हजार पांच सौ पन्ने का निर्माण हो चुका है। हिन्दी,पंजाबी, असमिया,नेपाली,तमिल उर्दू,मराठी सहित मैथिली एवं संथाली सदृश्य अन्य भारतीय भाषाएं सम्मलित हैं वहीं विश्व की अनेक भाषाओं की कविताएं यथा अरबी, जर्मन, फ्रेंच, स्वीडिश, ईरानी, इराकी, अमेरीकन सहित जापानी व वियतनामी आदि का उद्भुत समागम भी है। इस कोश में रूसी और स्विस भाषा की कविताएं सर्वाधिक है । इस परियोजना में दुनिया भर के लगभग दस सौ पचास कवियों की कविताएं सम्मलित हो चुकी है, जिसमें 108 शिशुगीत, 272 लोकगीत, 225 नवगीत करीब 7,000 कविताएं, 300 नज्में, तथा 3.300 की करीब गजलें सम्मलित हैं। यह कोश प्राचीन एवं लुप्त होती कृतियों को रखने का तथा नये रचनाकारों को व्यापक क्षितिज उपलब्ध कराने का एक बड.ा और बेजोड. मंच है। इस विशाल कोश के संस्थापक एवं सूत्रधार ललित कुमार हैं जो एक हिन्दीसेवी के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संध में सूचना प्राद्योगिकी विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत हैं और लगभग चार वर्ष पूर्व उन्होंने इस महान कार्य का शुभारम्भ किया था। यह कोश एक ‘टीम’ के अन्तर्गत कार्य करता है,कोश के प्रशासक प्रतिष्ठा शर्मा ने इस कोश के 25,000 पन्ने पूर्ण होने पर ‘इंटरनेट पर सबसे बड. (http://kavitakosh.wordpress.com/) कविता कोश’ बन जाने की घोषणा की। टीम के द्विजेन्द्र ‘द्विज’ और अनूप भार्गव ने कोश के विस्तार में अपनी अहम भूमिका अदा की है। इस कोश के संपादक मास्को स्थित वरिष्ठ भारतीय कवि अनिल जनविजय ने बताया कि यह एक अनवरत और खुली परियोजना है। इसमें कुछ नियम के तहत कोई भी कवि शामिल हो सकते हैं, इसके लिए उन्हें टीम की अनुमति लेना अनिवार्य है, जिससे इस कोश की गुणवत्ता बनी रहे,नये कवियों को कोश में सम्मलित होने के लिए अपना परिचय- पूरा नाम, उपनाम,जन्म-तिथि, फोटो, प्रकाशित पुस्तकें, यदि प्रकाशित हो एवं प्राप्त सम्मान आदि की जानकारी सहित अपनी 10-15प्रतिनिधि कविताएं ‘यूनिकोड’ में kavitakosh@gmail.com पर मेल करना होगा। टीम की स्वीकृति के पश्चात उन्हें कोश में स्थान दिया जायेगा । कविता कोश अपने सक्रिय योगदान कर्ता को समय-समय पर ‘सम्मान चक्र’ से सम्मानित करता है। ‘कविता कोश’ आपसी सहयोग के द्वारा एक स्वप्न को साकार करने के लिए एक स्वयंसेवी कोशिश है। कविता के महासागर में गोता लगाने एवं कविता के इस महायज्ञ में भाग लेने का ‘कविता कोश’ सुनहरा मौका देता है।
इंटरनेट पर कविताओं के दिन चकाचक हं। ब्लाग और वेबसाइट पर हिन्दी भाषी कवियों के लिए कई पैकेज हैं। साहित्यिक पत्रिका ‘रचनाकार’ (http://rachanakar.blogspot.com/) पर आप अपनी रचनाओं के सस्वर ओडियो-विडियो पाठ की सीडी प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं। http://vaatika.blogspot.com/ समकालीन कवियों की श्रृंखला प्रारम्भ की है, प्रत्येक माह किसी एक कवि की दस चयनित कविताओं को प्रकाशित किया जाता है। इस ब्लाग के संपादक सुभाष नीरव ने बताया कि 10 कविताओं से किसी कवि की कविता का मुकम्मल मूल्यांकन सम्भव हो पाता है। यहाँ अनामिका, भगवत रावत, राजेश रेड्डी,आलोक श्रीवास्तव आदि की कविताएँ एक साथ मिल जाती है। ‘हिन्द-युग्म’ http://kavita.hindyugm.com/ चैथे वर्ष में भी यूनिकवि एवं यूनिपाठक के लिए प्रविष्ठियाँ आमंत्रित कर रहा है, यह मासिक प्रतियोगिता 2007 ई. से चल रही है। आप भी अपनी कोई मौलिक, अप्राशित रचना mailto:hindyugm@gmail.com/ %20पर पर भेज सकते हैं, जहाँ कवि को ‘समयांतर’ की ओर से पुस्तकें एवं ‘हिन्द युग्म’ की ओर से प्रशस्ति-पत्र दिया जा रहा है साथ ही वार्षिकोत्सव में प्रतिष्ठित साहित्यकार के हाथो सम्मानित होने का अवसर भी। है न मजेदार आॅफर! एक और गर्मागर्म आॅफर यह भी इै कि www.hindisahityamanch.com/ पर अपनी मात्र एक कविता भेजकर आप पुरस्कार स्वरूप एक हजार रुपया 1000/-रु. के हकदार बन सकते हैं, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार क्रमशः पाँच सौ एवं तीन सौ के हैं साथ में प्रशस्ति पत्र भी, श्रेष्ठ कविताओं का चयन निर्णायक मंडल करेंगे जो मान्य होगा।एक और धमाका ! यदि आप स्वर के धनी हैं, और काव्य- पाठ के शौकीन तो पूरे 7000/-सात हजार रु. आपका इंतजार कर रहा है- http://podcast.hindyugm.com/ पर मई 2009 से प्रत्येक माह ‘गीतकास्ट प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें महाकवियों की कविताओं को गाने और स्वरबद्ध करने की प्रतियोगिता रखी जाती है। यदि आप भाग लेना चाहें तो podcast.hindyugm@gmail.com पर सम्पर्क करें। है न कविता का गर्म बाजार ?
सभी कुछ हिन्दी में। बस कम्यूटर की की-बोर्ड पर अंगुलियां थिरकाने की देर है। कवियों को ऐसे बेहतरीन अवसर प्रिंट पत्रिकाओं से विरले मिलेते हैं।
बेशक कविता का क्रेज इंटरनेट पर सर चढ.कर बोल रहा है। अपने विशाल पाठक वर्ग के साथ एक छोटी-सी बानगी देखें और कविता की ताकत http://harkirathaqeer.blogspot.com/ पर जहाँ हरकीरत ‘हीर’ की कुछ क्षणिकाओं सहित एक छोटी सी नज्.म हैं -
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी के गुजर गई
कुछ अर्थियाँ फिर करीब से ......!!
इस छोटी सी कविता के साथ लगभग सौ पठकों के पत्र एवं प्रतिक्रिया भी पढ.े जा सकते हैं.....आज की तिथि में प्रिंट जगत का कोई भी कवि यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी अमुक कविता पर सौ पत्र आये सौ प्रतिक्रियाएं मिली। बहरहाल इंटरनेट पर कवि और कविता के दिन सुखद हैं।
इधर कविता का सिक्का इंटरनेट के साथ प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी के पुरस्कारों में भी दिखा
http://hindi-khabar.hindyugm.com/ ने कवि कैलाश वाजपेयी को वर्ष 2009 का साहित्य अकादमी पुरस्कार शीर्षक पोस्ट में लिखा कि- भारतीय भाषाओं में मौलिक साहित्य लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु दिये जाने वाले प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा कल एक प्रेस-वार्ता आयोजित करके की गई। हिन्दी के लिए यह पुरस्कार हिन्दी के वरिष्ठ कवि, चिंतक और विचारक कैलाश वाजपेयी को इनके कविता-संग्रह ‘हवा में हस्ताक्षर’ के लिए प्रदान किया गया।
कविता की 8 पुस्तकों, लघुकथा की 6 पुस्तकों, 4 उपन्यासों, 4 आलोचना पुस्तकों, एक निबंध-संग्रह और एक नाटक को इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है।..........
इस बार सबसे अधिक कविता की पुस्तकों को सम्मानित किया गया। अकविता के इस दौर में कविता को यह सम्मान मिलना दुर्लभ है। कैलाश वाजपेयी के अतिरिक्त सम्मानित होने वाले अन्य कवियों के नाम हैं- प्रद्युम्न सिंह ‘जिन्द्राहिया’ (डोंगरी), जस फर्नांडिस (कोंकणी), रघु लीशड़थम (मणिपुरी), वसंत आबाजी डहाके (मराठी) फणि मोहांती (ओड़िया) दमयंती बेसरा (संथाली) और पुविआरसू (तमिल)। पुरस्कार और सम्मान पर http://likhoyahanvahan.blogspot.com/ पर साहित्य के विकास में पुरस्कारों की भूमिका शीर्षक से अशोक कुमार पाण्डेय ने अपने एक पोस्ट लिखा कि- एक साहित्यकार का मूल्यांकन उन पुरस्कारों से नहीं होता जो उसे राज्यव्यवस्था या श्रेष्ठिवर्ग देता है , उसका मूल्यांकन समय और समाज में उसके हस्तक्षेप से निर्धारित होता है। सार्त्र ने नोबेल इसलिये ठुकरा दिया था कि वह इसे देने वालों की वर्गीय भूमिका के विरुद्ध सर्वहारा के पक्ष में खड़ा था। क्या इससे वह कमतर साहित्यकार साबित होता है? ब्रेख्त, नेरुदा, नाजिम हिकमत, प्रेमचंद, गोर्की, लोर्का, निराला, मुक्तिबोध, शील या नागार्जुन को हम उन्हें मिले पुरस्कारों से नहीं उनकी युगप्रवर्तक जनपक्षधर रचनाओं और तदनुरूप जीवन से जानते हैं। http://haahaakar.blogspot.com/ पर अनंत विजय ने साहित्य अकादमी के कथित ‘डील’ पर अपने बेबाक विचार लिखा- आखिरकार इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार कैलाश वाजपेयी को मिल ही गया । हमने ये जानकारी ऐलान होने के पहले ही दे दी थी । इस बार के निर्णायक मंडल में हिंदी के वरिष्ठ कथाकार और नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया, वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह और गुजरात के रघुबीर चैधरी थे । बैठक की शुरुआत में रघुबीर चैधरी ने रामदरश मिश्र, अनामिका और उदय प्रकाश का नाम प्रस्तावित किया । लेकिन इन नामों पर सहमति नहीं बन पाई । इसके बाद कैलाश वाजपेयी के नाम का प्रस्ताव आया जिसपर केदार नाथ सिंह और रवीन्द्र कालिया ने अपनी सहमति जता दी । रघुबीर चैधरी तो जैसे तैयार ही बैठे थे और सर्वसम्मति से कैलाश वाजपेयी के नाम पर सहमति बन गई । दरअसल जैसे कि मैं पहले ही लिख चुका था- अकादमी पुरस्कार के लिए जो खेल होता है उसके लिए निर्णायक मंडल के चयन में अपने लोगों को रखने का खेल सबसे बड़ा होता है । रघुबीर चैधरी का नाम ही इसलिए डाला गया था कि हिंदी के संयोजक की मर्जी चल सके । और हुआ भी वही । कैलाश वाजपेयी को पुरस्कार देने की भूमिका या यों कहें कि डील पहले ही हो चुकी थी । इसी ब्लॉग ने अपने एक अन्य पोस्ट -साहित्य अकादमी पुरस्कारों का खेल खुला शीर्षक से लिखा कि - ........ इस बात की भी जोर शोर से चर्चा हुई कि साहित्य अकादमी ने अबतक किसी दलित लेखक को हिंदी के लिए पुरस्कार नहीं दिया । अगर साहित्य अकादमी अपने उपर लगे इस कलंक को धोना चाहती है तो भगवानदास मोरवाल को इस बार अकादमी अवार्ड मिल सकता है।
अकादमी की फजीहत यहीं खत्म नहीं हुई। समसुंग कंपनी और साहित्य अकादमी की ओर से दिये
जाने वाले टैगोर साहित्य पुरस्कार को ब्लागरों ने साहित्य अकादमी की स्वायत्ता, भारतीय साहित्य की गौरवशाली परंपरा और टैगोर की विरासत के ऊपर हमला बताया http://samkaleenjanmat.blogspot.com/ पर जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सुधीर सुमन के हवाले से प्रेस बयान जारी हुआ।
http://haahaakar.blogspot.com/ पर ही एक अन्य पोस्ट में निर्मल वर्मा के मेडल चोरी की खबर आई- मशहूर साहित्यकार स्वर्गीय निर्मल वर्मा के दिल्ली के पटपड़गंज स्थित घर से उनका पद्मभूषण मेडल चोरी हो गया है । चोरों ने पटपड़गंज के सहविकास सोसाइटी के उनके घर से लाखों के गहने के साथ उनके मेडल भी चुरा लिए । निर्मल वर्मा की पत्नी कवयित्री गगन गिल ने दिल्ली में इस बाबत एफ आईआर दर्ज करवा दिया है । रवीन्द्र नाथ टैगोर के नोबेल मैडल के बाद यह दूसरी बड़ी वारदात है जिसमें चोरों ने एक मशहूर साहित्यकार के मेडल पर हाथ साफ किया है । इस वारदात के बाद साहित्य जगत सकते में है।
साहित्य जगत के तमाम दांव-पेंच के बीच बिहार में बाढ़ की विभिषिका झेलती कोसी क्षेत्र से तीन ब्लॉग -‘कविता कोसी’.‘कोसी साहित्य’,‘कोसी खबर’ दैनिक नाम से सामने आया http://kavita-kosi.blogspot.com/ ने ‘हिन्दी का प्रथम कवि सिद्ध सरहपा’ विषयक लेख मे लिखा कि - सिद्ध सरहपा (आठवीं शती) हिन्दी के प्रथम कवि माने जाते हैं। उनके जन्म-स्थान को लेकर विवाद है। एक तिब्बती जनश्रुति के आधार पर उनका जन्म-स्थान उड़ीसा बताया गया है। एक जनश्रुति सहरसा जिले के पंचगछिया ग्राम को भी उनका जन्म-स्थान बताती है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उनका निवास स्थान नालंदा और प्राच्य देश की राज्ञी नगरी दोनों ही बताया है। उन्होंने दोहाकोश में राज्ञी नगरी के भंगल (भागलपुर) या पुंड्रवर्द्धन प्रदेश में होने का अनुमान किया है। अतः सरहपा को कोसी अंचल का कवि माना जा सकता है।
अंतरजाल कविताओं से भरे पटे हैं, ब्लॉग और वेबसाइट पर कविताएँ पूरे शबाव में दिख रही हैं। आलोचकों की तमाम धोषणाओं के वाबजूद कविता अपनी मजबूत और जिम्मेदार भूमिका में कल की तरह आज भी खड.ी है, डटी है, इन्हीं भावनाओं के साथ अभी-अभी http://www.hindikunj.com/ पर अमृता प्रीतम की कविता ‘चुप की साजिश’आयी, पेश है-रात ऊँघ रही है.......किसी ने इन्सान की छाती में सेंध लगाई है/हर चोरी से भयानक/यह सपनों की चोरी है।
चोरों के निशान -हर देश के हर शहर की/हर सड़क पर बैठे हैं पर कोई आँख देखती नहीं,/ न चैंकती है।/सिर्फ एक कुत्ते की तरह/ एक जंजीर से बँधी/किसी वक्त किसी की/कोई नज्म भौंकती है।
6 comments:
बहुत उपयोगी आलेख। अच्छा विश्लेषण।
अरे इसे 'परिकथा' मे पढ़ चुकी हूँ .......फिर भी हार्दिक आभार ।
विस्तृत जानकारी मिली ... शुक्रिया
वैसे तो इस पोस्ट को पढ़ने के लिए पूरा समय चाहिए परन्तु हमारे उत्सव के सभी भागीदार, लेखक और पाठक तीव्र गति से पढ़ने में समर्थ हैं, फिर भी कुछ अपरिहार्य कारणों के संबंध में अभी अभी श्री रवीन्द्र प्रभात जी से फोन पर बात हुई है। कुछ बेकाबू कारणों यथा पॉवर, की वजह से अब इस उत्सव की आगामी पोस्टें आप सांय 5 बजे ही देख पाएंगे और आपको शाम को 3 घंटे और समय देना होगा। आप तब तक अपने अन्य कार्य कर सकते हैं। वैसे कल का पूरा दिन तो आपके पास रहेगा ही।
बहुत बढ़िया लगा यह लेख पहले भी पढ़ा था यहाँ देख कर बहुत अच्छा लगा शुक्रिया
बेहतरीन आलेख ! आभार !
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