श्यामल सुमन हिंदी चिट्ठाकारी के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं । संघर्ष संघर्ष और लगातार संघर्षों से निकला एक साधारण इंसान जो अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश में आज भी संघर्षरत है। नैतिक-मानवीय मूल्य एवं संवेदना में इनकी गहरी रुचि है ।ये अपने बारे में कुछ इस तरह बयान करते हैं कि -"मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।" संप्रति ये टाटा स्टील, जमशेदपुर में प्रशासनिक पदाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । इनका प्रमुख ब्लॉग है मनोरमा जो नेट पर इनका कविता संसार है । इनके कविता संसार रुपी सागर से प्रस्तुत है एक ग़ज़ल रुपी मोती ।
!! अच्छा लगा !!
हाल पूछा आपने तो, पूछना अच्छा लगा।
बह रही उल्टी हवा से, जूझना अच्छा लगा।।
दुख ही दुख जीवन का सच है, लोग कहते हैं यही।
दुख में भी सुख की झलक को, ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा।।
हैं अधिक तन चूर थककर, खुशबू से तर कुछ बदन।
इत्र से बेहतर पसीना, सूँघना अच्छा लगा।।
रिश्ते टूटेंगे बनेंगे, जिन्दगी की राह में।
साथ अपनों का मिला तो, घूमना अच्छा लगा।।
घर की रौनक जो थी अबतक, घर बसाने को चली।
जाते जाते उसके सर को, चूमना अच्छा लगा।।
कब हमारे, चाँदनी के बीच बदली आ गयी।
कुछ पलों तक चाँद का भी, रूठना अच्छा लगा।।
दे गया संकेत पतझड़, आगमन ऋतुराज का।
तब भ्रमर के संग सुमन को, झूमना अच्छा लगा।।
2 comments:
रिश्ते टूटेंगे बनेंगे, जिन्दगी की राह में।
साथ अपनों का मिला तो, घूमना अच्छा लगा।।
वाह
रांची के ब्लॉगर मीट में श्यामल सुमन जी की यह रचना सुनी थी .. बहुत ही अच्छी रचना है !!
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