हिंदी साहित्य में नए विंब और नयी शैली के साथ व्यंग्य को प्रतिष्ठापित करने वाले बहुचर्चित हास्य-व्यंग्य कवि और हिंदी ब्लॉग जगत को नयी ऊंचाई देने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लोगर श्री अशोक चक्रधर की उपस्थिति मात्र से आयामित हो जाता है उत्सव . गरिमा बढ़ जाती है किसी भी कार्यक्रम की और गौरवान्वित होते हैं उस कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोग . प्रस्तुत है उनका एक व्यंग्य-
—चौं रे चम्पू! फसल कटाई-छंटाई के अबसर पै गाम में दस-पंद्रै कबीन कूं लै कै एक अखिल भारतीय कविसम्मेलन करायं तौ कित्ते पइसा लगिंगे?
—चचा, भूल जाओ अखिल भारतीय। लाख-दो-लाख से कम में नहीं होते आजकल कविसम्मेलन।
—अच्छा! इत्ते रुपइया! इत्ते की तो फसल ऊ न होयगी। टैक्टर गिरवी धरनौ पड़ैगौ।
मैंनै सोची दो-तीन हजार में है जायगौ। संग में देसी घी के साग-पूरी की दावत और रायते में सन्नाटौ कर दिंगे। चल पांच हज़ार सई। बस कौ किरायौ अलग ते।
—अखिल पंचायती कविसम्मेलन भी नहीं होगा चचा। ऐसा करो, मेरा एकल काव्य-पाठ रख लो। फोकट-फण्ड में। गन्ने का रस पिला देना और ताज़ा गुड़ खिला देना।
—अरे हट्ट रे! तेरी कौन सुनैगौ? कबियन की लिस्ट में छंटनी कर लिंगे। तब तौ है जायगौ?
—तुम्हें भी छंटनी की महानगरीय बीमारी लग गई चचा।
—चल छोड़ कविसम्मेलन! खिच्चू आटे वारे के चेला रसिया गा दिंगे। तू छंटनी की बता।
—बड़ी-बड़ी कम्पनियां वैश्विक मंदी के नाम पर मोटी और छोटी-मोटी तनख़्वाह वाले कर्मचारियों को धकाधक निकाल रही हैं। महानगरों में नौकरी के भरोसे भारी कर्ज़ लेकर गुलछर्रे उड़ाने वाले नौजवानों में हड़कम्प मच गया है। छंटनी की तलवार हर किसी पर लटकी हुई है।
तुम कटाई-छंटाई का उल्लास मनाना चाहते हो और महानगरों में कटाई-छंटाई का मातम चल रहा है। जो छंटनी से बच गए उनकी कटाई चल रही है। तनख़्वाह, पैंशन और इन्क्रीमैंट में कटाई। ग्रामीण और शहरी संस्कृति में यही अंतर है चचा! गांव में खुशी के कारण शहर तक आते-आते दुःख के कारण बन जाते हैं। छंटनी शब्द वैसे आया गांव से ही है।
—सुद्ध भासा में कहते तौ का कहते?
—उसको कहते कृंतन या कर्तन। जैसे वाल काटने-छांटने वाले कई भाइयों ने दुकान के आगे लिखवा रखा है ‘केश कर्तनालय’। जब से इन दुकानों पर केश के साथ फेस पर भी काम होने लगा तब से सब के सब ब्यूटी पार्लर हो गए हैं। जो एग्ज़िक्यूटिव हर हफ्ते ब्यूटी पार्लर जाया करते थे उन्होंने अपने बजट में कटाई करते हुए पार्लर जाना बन्द कर दिया। वहां बटुआ कर्तन होता था। चचा, एक शब्द और है— बुरशाई। मुद्रण जगत के लोग जानते हैं कि किताबों की बाइंडिंग के बाद बुरशाई की जाती है। बुरशाई, कटिंग मशीन पर कागज़ को बहुत मामूली सा काटने की प्रक्रिया को कहते हैं। आड़े-तिरछे निकले हुए फालतू कागज़ कट कर इकसार हो जाते हैं। किताब चिकनी कटी हाथ में आती है। कुछ कम्पनियों ने छंटाई की जगह अपने खर्चों में बुरशाई शुरू की है। ये ठीक है! आदमी मत निकालो, फालतू के खर्चे कम करो। कई एयरलाइंस कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों को बिज़नेस क्लास की जगह इकॉनोमी क्लास में सफर करने की हिदायत दी हैं। कुछ कहती हैं कि जाते क्यों हो, टेलिकांफ्रैंसिंग से काम चलाओ। यात्रियों के नाश्ते-पानी में भी कतराई-बुरशाई हुई है। कुछ सॉफ्टवेयर कम्पनियों ने कर्मचारियों को फोकट की चाय-कॉफी पिलाना बंद कर दिया है। फालतू की फोटोकॉपी बाज़ी और कम्प्यूटर-प्रिंटर के इस्तेमाल में चतुराई से कुतराई की है।
—कुतराई?
—हां चचा! कम्पनी के मालिकों की चेतना जब चूहों से मेल खाए तो वे अपने खर्चों को कुतरने लगते हैं। एक आइडिया है, आप तो जानते हैं कि कविता का जन्म करुणा से होता है। जिनकी पिछले दिनों छंटनी हुई है वे ज़रूर कवि बन चुके होंगे। एक छंटनीग्रस्त कवियों का सम्मेलन करा लीजिए। करना ये होगा कि बस एक-एक पोस्टर बड़ी-बड़ी कम्पनियों के दरवाज़े के बाहर लगा दिया जाए, जिस पर लिखा हो— ’छंटनीग्रस्त कवियों को कविता-पाठ का खुला निमंत्रण’।
दस-बीस नहीं हज़ारों में मिलेंगे। बड़ी-बड़ी दर्दनाक, मर्मस्पर्शी कविताओं का मौलिक सृजन सामने आएगा। नाम रखेंगे ‘कटाई-छंटाई-बुरशाई कुतराई कविसम्मेलन’। अखिल भारतीय कविसम्मेलन के नाम पर होने वाले लतीफा सम्मेलनों से भी मुक्ति मिलेगी। कैसी रही?
—तौ जे बता, मैं अब पांच हजार में ते कित्ते की कटाई-छंटाई-बुरशाई-कुतराई की चतुराई दिखाऊं?
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13 comments:
hmm!! Shri Ashok Chakradhar, hindi vyangya rachna me jana pahchana naam!! hamari shrimati ne ek baar Sir se chhota so puruskar paya tha.......sayad unhe yaad bhi na ho........Delhi ke MTNL mela me.........Sir ko naman!!
स्वागत है अशोक जी आपका और सदैव धारण किए गए आपके चक्र का। यही चक्र अब और आज परिकल्पना के ब्लॉगोत्सव 2010 में हंसी का चक्र बनकर बिखर रहा है।
परिकल्पना के ब्लॉगोत्सव 2010 में आज स्वागत है अशोक जी आपका....!
हिंदी ब्लॉग जगत को नयी ऊंचाई देने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लोगर श्री अशोक चक्रधर की उपस्थिति मात्र से आयामित हो गए है उत्सव !
sir aapako aur aapake vyangya ko naman !
बहुत आनन्द आया.
ashok ji men kota rajsthaan se hun yhaan ke mele dhere ke kvi smmeln se aapka purana rista he aap to aap hen aapki taarif men kuch likh kr men kya kroon kyaa mehsoos kroon kuch smjh men nhin aata. akhtar khan akela kota rajasthan mera blog akhtarkhanakela.blogspot.com
अशोक जी की उपस्थिति गौरवान्वित करने वाली है ! इस ब्लॉगोत्सव को ऊँचाई दी है इन्होंने !
प्रस्तुति का आभार !~
अशोक चक्रधर जी को ब्लाग उत्सव मे देख कर मन प्रसन्न हो गया उनके व्यंग के बारे मे कहना तो सूरज को दीप दिखाना है। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
ये महान कविता लिखने वाले क्यों कवियों पर ही व्यंग बाण चलाते है ?? .....
हम तो बाल्यकाल से दूरदर्शन पर अशोक जी कि कविताएँ सुन हर त्योहार मनाते हैँ |||
सूचना क्रांति का दोष है यह कि श्रोता कम हो जाते हैं,..सब मुफ्त का लाभ उठाते हैँ |||
पर युग फिर बदलेगा जब कवि सम्मलेन हाई टेक हो जायेंगे ||| हैकर्स मुफ्त के श्रोता होंगे, बाकी सब फीस चुकाएंगे |||
तब कवि विश्व के गिने-चुने धनवानों मे स्थान बनाएंगे |||
सरस्वती, लक्ष्मी के दर्शन साथ मे कर सब पावन हो जायेंगे |||
सरस्वती, लक्ष्मी के दर्शन साथ मे कर सब पावन हो जायेंगे |||
अशोक जी कोटा राजस्थान से आपका प्रशंसक आपको सादर प्रणाम कर रहा है .
आनंद आ गया .
blog utsab men sri ashok chakrdharjee ka aana utsab ki shobha badha gaya.
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