माता पिता और घर के बड़ों ने नाम दिया मयंक (चन्द्रमा)..सो कुछ धब्बे यानी कमियां तो होनी ही थी। कायस्थ परिवार जहाँ पढ़ाई पर खूब ज़ोर था, मैंने ज़ोर दिया लिखाई पर। खूब पढ़ा, पर पाठ्य पुस्तकों से ज्यादा साहित्य और अखबारों को... पढ़ने का वो चस्का लगा कि सड़क पड़ा पन्ना भी उठा कर पढ़ा और समोसे नीचे दबा अखबार भी...स्नातक तक घर वालो की मर्जी से पढ़ाई की और हो गये कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक पर अब आगे और सहा नहीं गया सो घर में कह डाला कि पत्रकार बनना है (साहित्यकार कहता तो झाड़-फूंक भी हो जाती) खैर अपेक्षा विपरीत सब मान गए और पहुँच गये माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल। यहीं रह कर दो साल तक प्रसारण पत्रकारिता में एम॰ ए॰ कर डाला। जून में ही ये पढ़ाई समाप्त कर के नॉएडा में जी न्यूज़ से होते हुए अब CNEB NEWS में कार्यरत हूँ। इंजीनियरों और डाक्टरों के कुल का एक कपूत पत्रकार बन गया है ..खूब लिखा है सो लिखने से डर नहीं लगता है, पढ़ा भी खूब है हिन्दी और अंग्रेज़ी के लगभग सारे कवि और लेखकों को पढ़ा है ..पर कभी कुछ छपा नहीं है सो छपने को लेकर एक आशंका रहती है। अब तक करीब ३०० कवितायें लिख चुका हूँ (अप्रकाशित) और 2 साल से ब्लोग्कारिता कर रहा हूँ...अच्छी पत्रकारिता करना चाहते हैं .... मेरा मानना है कि " उत्कृष्ट पत्रकारिता अच्छा साहित्य है और उत्कृष्ट साहित्य अच्छी पत्रकारिता". आज ब्लोगोत्सव में मैं उपस्थित हूँ अपनी एक कविता के साथ-
विज़न 2020
हरी नीली
लाल पीली
बड़ी बड़ी
तेज़ रफ़्तार भागती मोटरें
और उनके बीच पिसताघिसटता
आम आदमी
हरे भरे हरियाले पेडों
के नीचे बिखरी
हरी काली सफ़ेद लाल
पन्नियाँ
और उनको बीनता
बचपन
सड़क किनारे चाय
का ठेला लगाती
वही बुढ़िया
और
चाय लाता
वही छोटू
बडे बडे
डिपार्टमेंटल स्टोरों
में पैकेट में सीलबंद
बिकता किसान
भूख से
खुदकुशी करता
पांच सितारा अस्पताल
का उद्घाटन करते प्रधानमंत्री
की तस्वीर को घूरती
सरकारी अस्पताल में
बिना इलाज मरे नवजात की लाश
इन सबके बीच
इन सबसे बेखबर
विकास के दावों की होर्डिंग्स
निहारता मैं
और मन में दृढ करता चलता यह विश्वास
कि हां २०२० में
हम विकसित हो ही जाएँगे
दिल को
बहलाने को ग़ालिब ....................
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1 comments:
nice
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