वसंत आर्य एक जाने-माने हास्य-व्यंग्यकार और ब्लोगर हैं । विगत डेढ़ दशक से काव्य की विभिन्न विधाओं में पूरे समर्पण के साथ लिखते चले आ रहे हैं । मंच पर व्यंग्य कविताएँ कहना और काव्य यात्राएं करना इन्हें खूब भाता है । वर्त्तमान में ये मुम्बई में आयकर निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं । विगत दिनों परिकल्पना फगुनाहट सम्मान से इन्हें नवाज़ा गया था । प्रस्तुत है बहुमुखी प्रतिभा के धनी वसंत आर्य की एक व्यंग्य कविता -
!! आजादी की सुबह !!- बसंत आर्य
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या का
पत्नी ने सोते से जगाया
और एक नया राग सुनाया
बोली- जाने किस दुनिया में खोये रहतेहो
जब देखूँ तो सोये रहते हो
जो सोता है सो खोता है
जागता है सो पाता है
पडोसी को देखो न
वेतन से तीन गुना तो ऊपर से आता है
बंगला है कार है
हर मौसम मेंबहार है
और तुम?
इतने दिन हो गये आजादी के
और अभी तक पहनते हो
कुर्ते वही खादी के
वरना अपने देश में तो
ऐसे भी लोग मिल जाते हैं
रेशमी कपडो से जिनके बद्न छिल जाते हैं
मगर तुमसे तो ना कुछ हो सकता है
न करोगे
इसी टूटी खाट पर बूढे होकर मरोगे
मैने कहा- करता कैसे नहीं हूँ
समय पर दफ्तर जाता हूँ
समय पर आता हूँ
रोज की फाइल रोज निपटाता हूँ
पत्नी बोली -
यही तो तेरी भूल है
फाइले भी कहीं रोज निपटाइ जाती है
अरे जल्दी का काम शैतान का
इन्हे तो धीरे धीरेसरकाओ
हो सके तो इन्हे एक दूसरे में गुमाओ
इसी में तुम्हारी भलाइ है
और इसी में असली कमाइ है
मैने कहा - ये तो मुझसे नहीं होयेगा
तो बोली - क्या तू
पूरे घर की लुटिया डूबायेगा
देखते नहीं कितनी महंगाइ है
ऊपर से बडी लडकी
कितनी बडी हो आइ है
छोटू का एडमिशन कराना है
उसके लिये भी डोनेशन जुटाना है
ऐसा करो
ऐसा करो किसी विदेशी एजेंट से मिलो
और देश के कुछ रहस्य बेच दो
मैने कहा छी छी
किसने तुम्हारी मति मारी है
यह तो सरा सर देश के साथ गद्दारी है
बोली सब समझती हूँ
छोटी सी बात का अफसाना कर रहे हो
और हिम्मत नहीं है तो
देश भक्ति का बहाना कर रहे हो
अरे लोगों ने तो हिमालय की चोटी बेच दी
बेचनेवालो ने तो बापू की लंगोटी बेच दी
बेच दिये दीन औ ईमान
सारी दुनिया सकल जहा न
और तुम देश के राज भी नहीं बेच सकते
अच्छा ऐसा करो
अपना एक किडनी ही बेच दो
आजकल घडल्ले से बिक रहे हैं
वैसे भी भगवान ने दो दो दिये हैं
एक तो इसीदिन के लिये हैं
मैने कहा क्या बात कर रही हो
बोली बात तो तुम कर रहे हो
लोग दूसरो की बेच देते हैं
और तुम अपनी बेचने में भी डर रहे हो?
मैने कहा-
ऐसे लोगों के लिये
जिनके इरादे गन्दे हैं
इस देश में कडे कानून के
फांसी वाले फन्दे हैं
पत्नी बोली-
तुम्हारा कानून क्या है
लूला है , लंगडा है
अंधा है बहरा है
बिन चाभी का ताला है
मकडी का जाला है
जिसमे छोटे मोटे कीट पतंगे तो
आसानी से फंस जाते है
पर बडे बडेहाथी इन्हे तोड कर
बाहर निकल जाते हैं
आपकी बेवकूफी पर मुस्कुराते हैं
अरे कभी सोंचा
कि छोटे छोटे जेबकतरो की आंखे तो
जेल की अंधेरी कोठडियो में रो रही है
और पूरे देश को लूटने वाले की ताजपोशी
सिन्हासनो पर हो रही है
इसलिये ऐसा करो
अपनी एक किडनी ही बेच दो
मैने कहा -मेरी किडनी के पीछे क्यों पडी हो
वैसे भी इतना तो कमाता हूँ
कि अच्छा पहनता हूँ
अच्छा खाता हूँ
बोली - अच्छा खाता हूँ
तुम क्या जानो अच्छा खाना क्या होता है
सूखा हो कि बाढ हो कि अकाल
कुछ तो हमेशा ही खाते हैंतरमाल
और कुछ तो
इतना ज्यादा खा रहे हैं
कि खाता खोलने स्वीट्जरलैंड जा रहे हैं
आप कही पागल तो नहीं हैं
कि भूखे पेट भारत माता की
जय जय कार लगा रहे हैं
अरे कभी कभी
होटल पंचतारा हो
मद्घिम उजियारा हो
जायेकेदार खाना हो
स्वीमिंग पूल में नहाना हो
पब में पी आये कभी
क्लब में जी आये कभी
शेयर भी रख ले कुछ
कमीशन भी चख ले कुछ
मैने कहा - बस करो
हमेशा अपना ही रोना रोती रहती हो
कभी सोंचा उन बच्चो के बारे में
जो सडको पर सोते हैं
किस्मत को रोते हैं
हाथ जो पसारे हैं
बिना किसी सहारे हैं
कालीन जो बनाते हैं
रिक्शा जो चलाते हैं
कभी देखा उन माओं को जो
दिलासे में जिये जाती है
रोटियों के किस्से से बच्चों को सुलाती है
नहीं
तुम नहीं देख सकती
क्योकि तुम्हारी तो
बैइमानी ही मात्रिभाषा है
और इसीलिये समूचा देश
अपने आप में
बिना टिकट का एक तमाशा है
अरे पागल
इन टुच्ची बातों से ऊपर आओ
इस अंधेरी रात में उम्मीद का
कोई दिया जलाओ
और उनके घरों में भी
रोशनी की कोई किरण पहुंचाओ
क्योंकि इस बात में सच्चाइ जरूर है
कि आधी रात को मिली
आजादी की सुबह
अभी भी बहुत दूर है
अभी भी बहुत दूर है
....................
पुन: परिकल्पना पर वापस जाएँ
!! आजादी की सुबह !!- बसंत आर्य
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या का
पत्नी ने सोते से जगाया
और एक नया राग सुनाया
बोली- जाने किस दुनिया में खोये रहतेहो
जब देखूँ तो सोये रहते हो
जो सोता है सो खोता है
जागता है सो पाता है
पडोसी को देखो न
वेतन से तीन गुना तो ऊपर से आता है
बंगला है कार है
हर मौसम मेंबहार है
और तुम?
इतने दिन हो गये आजादी के
और अभी तक पहनते हो
कुर्ते वही खादी के
वरना अपने देश में तो
ऐसे भी लोग मिल जाते हैं
रेशमी कपडो से जिनके बद्न छिल जाते हैं
मगर तुमसे तो ना कुछ हो सकता है
न करोगे
इसी टूटी खाट पर बूढे होकर मरोगे
मैने कहा- करता कैसे नहीं हूँ
समय पर दफ्तर जाता हूँ
समय पर आता हूँ
रोज की फाइल रोज निपटाता हूँ
पत्नी बोली -
यही तो तेरी भूल है
फाइले भी कहीं रोज निपटाइ जाती है
अरे जल्दी का काम शैतान का
इन्हे तो धीरे धीरेसरकाओ
हो सके तो इन्हे एक दूसरे में गुमाओ
इसी में तुम्हारी भलाइ है
और इसी में असली कमाइ है
मैने कहा - ये तो मुझसे नहीं होयेगा
तो बोली - क्या तू
पूरे घर की लुटिया डूबायेगा
देखते नहीं कितनी महंगाइ है
ऊपर से बडी लडकी
कितनी बडी हो आइ है
छोटू का एडमिशन कराना है
उसके लिये भी डोनेशन जुटाना है
ऐसा करो
ऐसा करो किसी विदेशी एजेंट से मिलो
और देश के कुछ रहस्य बेच दो
मैने कहा छी छी
किसने तुम्हारी मति मारी है
यह तो सरा सर देश के साथ गद्दारी है
बोली सब समझती हूँ
छोटी सी बात का अफसाना कर रहे हो
और हिम्मत नहीं है तो
देश भक्ति का बहाना कर रहे हो
अरे लोगों ने तो हिमालय की चोटी बेच दी
बेचनेवालो ने तो बापू की लंगोटी बेच दी
बेच दिये दीन औ ईमान
सारी दुनिया सकल जहा न
और तुम देश के राज भी नहीं बेच सकते
अच्छा ऐसा करो
अपना एक किडनी ही बेच दो
आजकल घडल्ले से बिक रहे हैं
वैसे भी भगवान ने दो दो दिये हैं
एक तो इसीदिन के लिये हैं
मैने कहा क्या बात कर रही हो
बोली बात तो तुम कर रहे हो
लोग दूसरो की बेच देते हैं
और तुम अपनी बेचने में भी डर रहे हो?
मैने कहा-
ऐसे लोगों के लिये
जिनके इरादे गन्दे हैं
इस देश में कडे कानून के
फांसी वाले फन्दे हैं
पत्नी बोली-
तुम्हारा कानून क्या है
लूला है , लंगडा है
अंधा है बहरा है
बिन चाभी का ताला है
मकडी का जाला है
जिसमे छोटे मोटे कीट पतंगे तो
आसानी से फंस जाते है
पर बडे बडेहाथी इन्हे तोड कर
बाहर निकल जाते हैं
आपकी बेवकूफी पर मुस्कुराते हैं
अरे कभी सोंचा
कि छोटे छोटे जेबकतरो की आंखे तो
जेल की अंधेरी कोठडियो में रो रही है
और पूरे देश को लूटने वाले की ताजपोशी
सिन्हासनो पर हो रही है
इसलिये ऐसा करो
अपनी एक किडनी ही बेच दो
मैने कहा -मेरी किडनी के पीछे क्यों पडी हो
वैसे भी इतना तो कमाता हूँ
कि अच्छा पहनता हूँ
अच्छा खाता हूँ
बोली - अच्छा खाता हूँ
तुम क्या जानो अच्छा खाना क्या होता है
सूखा हो कि बाढ हो कि अकाल
कुछ तो हमेशा ही खाते हैंतरमाल
और कुछ तो
इतना ज्यादा खा रहे हैं
कि खाता खोलने स्वीट्जरलैंड जा रहे हैं
आप कही पागल तो नहीं हैं
कि भूखे पेट भारत माता की
जय जय कार लगा रहे हैं
अरे कभी कभी
होटल पंचतारा हो
मद्घिम उजियारा हो
जायेकेदार खाना हो
स्वीमिंग पूल में नहाना हो
पब में पी आये कभी
क्लब में जी आये कभी
शेयर भी रख ले कुछ
कमीशन भी चख ले कुछ
मैने कहा - बस करो
हमेशा अपना ही रोना रोती रहती हो
कभी सोंचा उन बच्चो के बारे में
जो सडको पर सोते हैं
किस्मत को रोते हैं
हाथ जो पसारे हैं
बिना किसी सहारे हैं
कालीन जो बनाते हैं
रिक्शा जो चलाते हैं
कभी देखा उन माओं को जो
दिलासे में जिये जाती है
रोटियों के किस्से से बच्चों को सुलाती है
नहीं
तुम नहीं देख सकती
क्योकि तुम्हारी तो
बैइमानी ही मात्रिभाषा है
और इसीलिये समूचा देश
अपने आप में
बिना टिकट का एक तमाशा है
अरे पागल
इन टुच्ची बातों से ऊपर आओ
इस अंधेरी रात में उम्मीद का
कोई दिया जलाओ
और उनके घरों में भी
रोशनी की कोई किरण पहुंचाओ
क्योंकि इस बात में सच्चाइ जरूर है
कि आधी रात को मिली
आजादी की सुबह
अभी भी बहुत दूर है
अभी भी बहुत दूर है
....................
पुन: परिकल्पना पर वापस जाएँ
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