सलीम खान तहज़ीब के शहर लखनऊ की सरज़मीन पर पैदा हुए , पीलीभीत के तराई इलाके में पले-बढे और अब मुश्तक़िल 1998 से लखनऊ के बाशिंदा हैं शिक्षा MBA in Tourism. अंतरजाल पर सन् 2001 से लिख रहे हैं । कई वेबसाइट भी बनाए मगर ब्लॉग जगत से इनका जुडाव 2009 से ही हुआ शौक़ ग़ज़लों का मगर इनके लेखन विज्ञान व इस्लाम विषयक ही रहे है
विगत वर्ष ये हिंदी ब्लॉग जगत में खासी चर्चित चिट्ठाकारों में से एक थे, आज भी किसी न किसी बहाने ये हमेशा चर्चा में बने रहते हैं .....लोग कहते हैं कि चर्चा में बने रहना इनकी फितरत में शामिल है । विज्ञान व इस्लाम विषयक लेखन में इन्हें महारत हासिल है । ब्लोगोत्सव में आज ये प्रस्तुत कर रहे हैं एक प्रेरक कथा-
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क्या एहसान भी ज़ात देख कर की जाती है??
() सलीम खान


एक बार एक बकरी किसी जगह फंस गयी थी और बहुत परेशान थी तभी वहां एक शेर आ गया. उस शेर को देखकर बकरी घबरा गयी और समझ गयी कि एक तो मैं मुसीबत में मुब्तिला हूँ, मुझे एक रक्षक की ज़रुरत थी लेकिन यह तो भक्षक आ गया! लेकिन शेर जब बकरी के नज़दीक पहुंचा तो उसने बकरी से कहा कि - बहन ! मैं तुम्हारी मदद करने आया हूँ. और इस तरह से उस शेर ने उस बकरी को उस जगह से निकाल लिया और अपनी पीठ पर बैठा कर उचित स्थान पर पहुंचा दिया.

इस पूरे घटनाक्रम को दूर बैठी एक चील देख रही थी उस चील को बहुत ज़्यादा आश्चर्य हुआ. वह सोचने लगी कि एक शेर जिसे उस बकरी को खा जाना चाहिए वह उसे खाने के बजाये उसकी मदद की! वह बकरी के पास पहुंची और शेर के द्वारा की गयी मदद का कारण जानना चाहा. बकरी ने कहा- उस शेर ने मेरी मदद इसलिए की क्यूंकि एक बार उसकी शेरनी ढूधमुहें बच्चे को छोड़ कर मर गयी थी और मैंने उस के बच्चे को ढूध पिलाया था!!! उस शेर को मेरा वह एहसान याद था जिसके बदले उसने मेरी आज जान बचाई.
चील को यह सब देख और सुन कर बड़ा अजीब लगा लेकिन वह इस घटनाक्रम से बहुत प्रभावित हुई और उसने भी अब यह सोच लिया कि वह भी ऐसा ही अब करेगी...
एक बार एक खेत में नहर का बाँध टूट जाने से उसमें पानी आ गया और उसमें से बहुत से चूहे बिलों में से निकल निकल कर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे थे। ऊँची जगह पर बैठी चील यह सब देख रही थी उसे उन चूहों पर बहुत दया आई और वह अपनी चोंच में उन्हें दबा कर ऊँची जगह पर ले आई। इस तरह से चील ने उन मरते हुए चूहों की मदद की लेकिन वे चूहे पानी में पूरी तरह भीग चुके थे, और काँप रहे थे यह देख चील ने उन्हें अपने दोनों पंखों के अन्दर ले लिया और उन्हें गर्मी देने लगी. कुछ देर में ही चूहे ठण्ड से निजात पा चुके थे. अब वह अपने स्वभावानुसार अन्दर ही अन्दर उस चील के पंख को काटने लगे और कुछ ही देर में उन्होंने उस चील को पंखहीन कर दिया.
फ़लस्वरूप चील अब उड़ने लायक़ भी नहीं रही और वहां से किसी तरह अपनी जान बचा कर उस बकरी के पास गयी और सारा माजरा सुनाया और उससे पूछा कि तुमने उस शेर पर एहसान किया था जिसके बदले में उसने तुम्हारी जान बचाई थी लेकिन मैंने उन चूहों की जान बचाई तो वे तो मेरी ही जान के दुश्मन बन गए!!!???

"एहसान भी ज़ात देख कर की जाती है"बकरी का जवाब था।
 
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