लेखक परिचय:
नाम-- डा श्याम बाबू गुप्ता जन्म---१० नवम्बर, १९४४ ई.
साहित्यिक नाम(रचना क्षेत्र में) ---डा श्याम गुप्त
जन्म स्थान—मिढाकुर, जि. आगरा, उ.प्र. . भारत शिक्षा—एम.बी.,बी.एस., एम.एस.(शल्य) व्यवसाय-चिकित्सक,(शल्य)-उ.रे.चिकित्सालय ,लखनऊ से व.चि. अधीक्षक पद से सेवा निवृत । साहित्यिक गतिविधियां-विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध, काव्य की सभी विधाओं—गीत,अगीत, गद्य निबंध, कथा, आलेख , समीक्षा आदि में लेखन व इन्टर्नेट पत्रिकाओं में लेखन . प्रकाशित कृतियाँ -- १. काव्य दूत, २. काव्य निर्झरिणी ३. काव्य मुक्तामृत (काव्य सन्ग्रह) , ४. सृष्टि –अगीत विधा महाकाव्य ५.प्रेम काव्य-गीति विधा महाकाव्य ६. शूर्पणखा( अगीत-विधा ) महाकाव्य । शीघ्र प्रकाश्य---इन्द्रधनुष उपन्यास, अगीत साहित्य दर्पण , गीत-सन्ग्रह, गज़ल सन्ग्रह । ब्लोग्स-http://shyamthot.blogspot.com/ , http://saahityshyam.blogspot.com/ , vijaanaati-vijaanaati-science.blogspot.com/ ....सम्मान आदि—नराकास , राजभाषा विभाग,(उ प्र) द्वारा राज भाषा सम्मान, २००४, २००५.;अभियान जबलपुर संस्था द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान, विन्ध्य.हिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ स्म्रति सम्मान, अ.भा.अगीत परिषद द्वारा-श्री कमलापति मिस्र सम्मान, अ.भा. साहित्यकार दिवस पर प.सोहन लाल द्विवेदी सम्मान, अगीत विधा महाकाव्य सम्मान, जाग्रति प्रकाशन मुम्बई द्वारा-पूर्व पश्चिम गौरव सम्मान, इन्द्रधनुष सन्स्था बिज़नौर द्वारा-काव्य मर्मग्य सम्मान, छ्त्तीस गढ शिक्षक संघ द्वारा-हिरदे कविरत्न सम्मान, युवाओं की सन्स्था; ’सृजन’ द्वारा महाकवि सम्मान ।प्रस्तुत है इनका एक गीत -
गीत --प्रीति का एक दीपक जलाओ....
प्रीति का एक दीपक जलाओ सखे !
देहरी का सभी तम सिमट जायगा.
प्रीति का गीत इक गुनुगुनाओ सखे !
ये ह्रदय दीप फिर जगमगा जायगा
द्वेष क्या, द्वंद्व क्या,
प्रीति निश्वांस सी
एक लौ जल उठे,
मन में विश्वास की
आस का दीप ज्यों ही जले स्वांस में,
ज़िंदगी का अन्धेरा भी कट जायगा
ये अन्धेरा है क्यों ,
विश्व में छारहा
साया आतंक का,
कौन बिखरा रहा ?
राष्ट्र के भाव अंतस जगाओ सखे !
ये कुहाँसा तिमिर का भी छंट जायगा
नेह से प्रीति का,
प्रीति की रीति का
एक दीपक जले,
नीति की प्रीति का
नेह-नय के दिए जगमगाओ सखे !
विश्व का हर अन्धेरा सिमट जायगा
मन में छाया हो ,
अज्ञान रूपी तमस
सूझता सत-असत ,
भाव कुछ भी नहीं
ज्ञान का दीप तप इक जलाओ सखे !
वाल-रवि से क्षितिज जगमगा जायगा
() डा. श्याम गुप्त
पुन: परिकल्पना पर वापस जाएँ
गीत --प्रीति का एक दीपक जलाओ....
प्रीति का एक दीपक जलाओ सखे !
देहरी का सभी तम सिमट जायगा.
प्रीति का गीत इक गुनुगुनाओ सखे !
ये ह्रदय दीप फिर जगमगा जायगा
द्वेष क्या, द्वंद्व क्या,
प्रीति निश्वांस सी
एक लौ जल उठे,
मन में विश्वास की
आस का दीप ज्यों ही जले स्वांस में,
ज़िंदगी का अन्धेरा भी कट जायगा
ये अन्धेरा है क्यों ,
विश्व में छारहा
साया आतंक का,
कौन बिखरा रहा ?
राष्ट्र के भाव अंतस जगाओ सखे !
ये कुहाँसा तिमिर का भी छंट जायगा
नेह से प्रीति का,
प्रीति की रीति का
एक दीपक जले,
नीति की प्रीति का
नेह-नय के दिए जगमगाओ सखे !
विश्व का हर अन्धेरा सिमट जायगा
मन में छाया हो ,
अज्ञान रूपी तमस
सूझता सत-असत ,
भाव कुछ भी नहीं
ज्ञान का दीप तप इक जलाओ सखे !
वाल-रवि से क्षितिज जगमगा जायगा
() डा. श्याम गुप्त
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1 comments:
सच है ---
आस का दीप ज्यों ही जले स्वांस में,
ज़िंदगी का अन्धेरा भी कट जायगा
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