मंजू गुप्ता की कविताएँ
वीर भगत सिंह की देश भक्ति
(प्रथम सर्ग)
जल -धरा -हवा -आकाश - आग
जीवन के ये सारे हैं महातत्व
चलता इनसे चेतना में प्राण
प्रभु !बुद्धि का भर दो भंडार ।
करो कृपा हम पर करतार
दे दो बल - विद्या - ज्ञान अपार
स्पर्श -रूप -रस - गंध -शब्द से
हो जीवन में नव विद्या निर्धार ।
प्रभु ! अर्ज हमारी हो स्वीकार
न हो जीवन में ज्ञान अभाव
करें जग हितकर में सब काम
अहितकर में बुद्धि करे विराम ।
(द्वितीय सर्ग)
जब भारत माता जकड़ी थी
पैरों में बेड़ियाँ पड़ी थीं
जहाँ सूरज अस्त न होता था
ब्रिटिश हुकूमत चलती थी ।
कहर गुलामी का बरसा था
१८५७ का विद्रोह कुचला था
कम्पनी सरकार थी हिल गई
गोरों का शासन चलता था ।
भेद भाव की नीति उनकी
फूट डालो की राजनीति थी
साम्राज्यवाद की चाल चली
भारत की आजादी छीनी ।
ऐसे गहन अंधकार में
भारत की पवित्र भूमि पर
ज्योति किरन थी चमकी
तब मिट्टी धरा की महकी ।
धुंधले भारत के आंगन में
नव खुशियों की हवा बही
तब शहनाई भी बजी थी
आया क्रान्ति दूत अवतारी ।
बंगा के जिले लायलपुर में
२८ सितम्बर १९०७ को
किशन -विद्यावती के गृह में
जन्मा था महावीर भगत सिंह ।
(तृतीय सर्ग)
खुशियाँ पुत्र रतन की छाई
आंगन ने रंगोली सजाई
स्वागत में वंदनवार लगाई
दी आशीर्वादों ने बधाई ।
सबकी आँखों का था तारा
लगता "गुरु नानक"- सा प्यारा
अलौकिक - सी थी बाल लीला
ईश का था पैगाम लाया ।
क्रान्ति का सुनहरा प्रभात था
निडरता का प्रतिरूप था
अपने दु: ख -दर्द को भूला था
देश के दर्द का बवंडर था ।
विलक्षणता का परिचायक था
देश भक्ति का मतवाला था
न्याय धर्म का उपासक था
अन्याय के लिए आग था ।
मंजू गुप्ता
http://manjushrree.blogspot.com/
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5 comments:
nice
इस ओजपूर्ण रचना हेतु बधाई।
bahut sundar kavita he
shahid ko naman
manju jee ,pranam
lay badh ,chand badh kavya , puri jeevni ek nayak ki samne rakh di aap ne badhai,
sadhuwad
इन्हीं के जीवन से हमें सीख लेनी है
हर भारतीय में ऐसा भगत सिंह जन्मे
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