रश्मि प्रभा जी कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी है। इनका नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और इनके नाम के साथ अपनी स्वरचित पंक्तियाँ इनके नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे,सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन",शब्दों की पांडुलिपि इन्हें विरासत में मिली है, इनका कहना है कि "...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं..."-खिलौने वाला घर…..मेरी भावनायें........ क्षणिकाएं……इनके प्रमुख व्यक्तिगत चिट्ठे हैं ।
इसके अलावा ये हिन्द-युग्म…..युवा~Yuva….Kavita….नन्हा मन….Ek sawaal tum karo…।आदि सामूहिक चिट्ठों में भी नियमित लेखन करती हैं । आज के इस उत्सव में प्रस्तुत है उनकी एक प्यारी सी कविता -
!! हमसफ़र !!
देर तक बोलते हैं सन्नाटे
इस घर में यह मुझे जानता तो है
कहीं जब कोई नहीं होता
यह मुझे पुकारता तो है
सिरहाने रखे ख़्वाबों को नज़्मों की शक्ल देकर
इन सन्नाटों के हवाले करती हूँ
खो गई आवाजों को
यह सुनता तो है
खिड़की से फिसलती ओस की नमी
सन्नाटे की भाषा बन छलकते हैं
इन्हीं सन्नाटों के बीच
कलकल करते शब्द झरते हैं
लहराने लगते हैं चारों ओर
पैरों तक उतर आता है आकाश
परत दर परत लिखी दास्तानें
निरंतर लिखी दास्तानें
संचित होती रहती हैं
सिरहाने रखे ख्वाब
सन्नाटों की गूँज बनकर
कंपकंपाने लगते हैं
ये सन्नाटे
साथ साथ चलते तो हैं !
रश्मि प्रभा,
परिकल्पना पर पुन: वापस जाएँ
5 comments:
परत दर परत लिखी दास्तानें
निरंतर लिखी दास्तानें
संचित होती रहती हैं
सिरहाने रखे ख्वाब
सन्नाटों की गूँज बनकर
कंपकंपाने लगते हैं
ये सन्नाटे
साथ साथ चलते तो हैं !
......Gahri abhivykti... anthastal ko chhuti huyee...... .
Haardik shubhkamnayne...
badhai aap ko
रश्मि प्रभा जी बहुत सुंदर कविता है। बहुत आदर के साथ इसमें तीन संशोधन सुझा रहा हूं। देखें-
देर तक बोलते हैं सन्नाटे
इस घर में यह मुझे जानते तो हैं
कहीं जब कोई नहीं होता
यह मुझे पुकारते तो हैं
सिरहाने रखे ख़्वाबों को नज़्मों की शक्ल देकर
इन सन्नाटों के हवाले करती हूँ
खो गई आवाजों को
यह सुनते तो हैं
बहुत सुंदर कविता है। ....बेहतर प्रस्तुति , बधाईयाँ !
शुक्रिया
एक टिप्पणी भेजें