पारुल पुखराज की तीन नज्में
सुश्री पारूल पुखराज एक शास्त्रीय गायिका ही नहीं कोमल हृदय की रचनाकार भी हैं और उनकी यह विशेषता उनकी तमाम पोस्टों में भी देखी जा सकती है। इसके अलावा इन्हें प्रकृति से भी विशेष लगाव है। इन्होने जिस समर्पण भाव से शास्त्रीय संगीत से सम्बंधित जितनी जानकारियां ब्लॉग जगत में उपलब्ध कराई हैं, वह अभिनन्दनीय है। इनका प्रमुख ब्लॉग है -पारुल चाँद पुखराज का . ये आजकल झारखंड स्थित बोकारो स्टील सिटी में रह रही हैं , अभी हाल में इन्हें संवाद सम्मान से नवाज़ा गया है . प्रस्तुत है इनकी तीन नज्में-
१-नज़्म
पूनम
किसकी बेनूर स्याह रातों को
इक अदद चाँद हमने सौंप दिया
उसने टांका भी नही
और बुझा भी डाला
कर दिया माहताब
बीच से आधा - आधा
अब यहाँ धुंध और कोहरा है
कहकशां है , के सर्द सहरा है ?
उसको पैग़ाम कोई पहुँचा दे
मेरे हिस्से का चाँद रख ले वो
अपने हिस्से का मु्झको लौटा दे...
लोग कहते हैं आज पूनम है.....
२- अमावस
जिस घड़ी याद तेरी आयी थी
दिल ने कई बार करवटें बदली
सारी शब सिसकियों में गुज़री फिर
चाँद भी छुट्टियों पे निकला था
वो तेरे हिज्र की अमावस थी…
3-भीगा चाँद
क़तरा क़तरा पिघल पिघल कर
सारा आलम बरस चुका है
चप्पा चप्पा काई उग गयी
लम्हा लम्हा फिसल रहा है
अपने हाथ की नर्म हथेली
फैला दो तो बाहर आऊँ...
सन्नाटों के गलियारों में
खामोशी की आहट है
मीनारों की पेशानी पर
सीला-भीगा चाँद टँका है
अपने हाथ की नर्म हथेली
फैला दो तो बाहर आऊँ...
रात ठिठुरकर बिखर चुकी है
सय्यारो वीरानों में-
कोहरे में कुछ बौछारे हैं
बौछारों मे कोहरा है
अपने हाथ की नर्म हथेली
फैला दो तो बाहर आऊँ...
प्यानों की धड़कन पर सरगम
बूँद बूँद सी लरज़ उठी है,
अपने हाथ की छोटी उँगली
पकड़ा दो तो बाहर आऊँ
अपने हाथ की नर्म हथेली
फैला दो तो बाहर आऊँ..
() () ()
पुन : परिकल्पना पर वापस जाएँ
6 comments:
तीनो रचनाएँ बहुत खूबसूरत हैं....बहुत बढ़िया
सभी रचनाएं उम्दा है।
अपने हाथ की नर्म हथेली
फैला दो तो बाहर आऊँ..वाह
पारुल जी के क्या कहने !
खूबसूरत रचनाएं !
वाह क्या बात है ।
रवींद्र जी को धन्यवाद इसे साझा करने के लिए ।
मन खुश हो गया बहुत ही अदभुत वर्णन
एक टिप्पणी भेजें