हिंदी चिट्ठाकारी में अपना एक अलग मुकाम रखने वाली चिट्ठाकारा अल्पना वर्मा आज यद्यपि किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं फिर भी ब्लोगोत्सव की मर्यादा के अनुरूप प्रस्तुत है उनका संक्षिप्त परिचय -
नाम : अल्पना वर्मा / जन्म स्थान-उत्तर प्रदेश / शिक्षा - बनस्थली विद्यापीठ [राजस्थान] / कार्यक्षेत्र-अध्यापन / वर्तमान में यू.ए.ई में परिवार सहित निवास. कविता लेखन में मुख्य रूचि,यू.ए.ई. में कई कवि सम्मेलनो और मुशायरों में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ. इनके तीन प्रमुख व्यक्तिगत ब्लॉग है . पहला है व्योम के पार, इस ब्लॉग में स्वरचित कविताएँ,कहानी,संस्मरण ,छाया चित्र आदि का समावेश है. दूसरा है भारत दर्शन-यह ब्लॉग भारत के सभी राज्यों और उनके पर्यटक स्थलों की अधिक से अधिक जानकारी हिन्दी में उपलब्ध करने हेतु बनाया गया है.अंतरजाल पर हिन्दी में इस तरह की जानकारी बहुत ही कम है.इसी कारण इस ब्लॉग को जन्म दिया गया है.तीसरा ब्लॉग है --गुनगुनाती धूप-इस ब्लॉग में हिन्दी में ऑडियो पॉड कास्ट हैं.चुनिंदा फिल्मी गीतों का संकलन स्वयं एवम उदीयमान गायकों की आवाज़ में है.हिन्दी ब्लॉग्गिंग में पॉडकास्ट को बढ़ावा देने हेतु यह ब्लॉग बनाया गया है. इनका एक काव्य संकलन और एक संस्मरण प्रकाशन की दिशा में अग्रसर.प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ-
!! भूल जाएंगे तुम्हें !!
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
जब कभी सपने भी हम से रूठ जाएंगे,
भूल जायेंगे तुम्हें हम भूल जायेंगे .
हमने अपनी उम्र का सौदा किया जिससे,
वो मिलेगा फ़िर कभी तो पूछूंगी उस से,
बिन तुम्हारे अपना क्या हम मोल पाएंगे,
भूल जायेंगे तुम्हें हम भूल जायेंगे......
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
तुमने माना था हमी को प्यार के क़ाबिल,
फ़िर बने क्यों मेरे अरमानों के तुम क़ातिल,
जब कभी आँखों से आंसू सूख जाएंगे,
भूल जायेंगे तुम्हें हम भूल जायेंगे......
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
संग तुम्हारे कटते थे जो मेरे रात और दिन,
अब कटेगी कैसे कह दो ज़िंदगी तुम बिन,
जब कभी साँसों के बन्धन छूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
डूबती कश्ती ने तुमको समझा था साहिल,
लेकिन तुम ने दे दिया गैरों को अपना दिल,
जब कभी धड़कन से रिश्ते छूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
एक मुठ्ठी आसमां की चाह थी हमको ,
लेकिन तुमसे नाउम्मीदी ही मिली हमको,
जब फरिश्ते मौत के हम को सुलायेंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे
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!! आभासी रिश्ते !!
कांच की दीवार के परे ,
कुंजीपटल की कुंजीयों से बने,
माउस की एक क्लिक से जुड़े-
मुट्ठियाँ भींच कर रखो तो मुड़ जाते हैं,
खुली हथेलियों में भी कहाँ रह पाते हैं,
मन से बनते हैं ,कभी रूह में उतर जाते हैं.
कैसे रिश्ते हैं ये ? जो समझ नहीं आते हैं!
देह से नहीं ,बस मन से बाँधने वाले ,
भावों का अथाह सागर कभी दे जाते हैं,
अपेक्षाओं से बहुत दूर , मगर, हैं नाज़ुक ,
टूट कर गिरे तो बस ,बिखर कर रह जाते हैं.
ये रिश्ते ..आभासी रिश्ते!
!! 'नया संग्राम'[एक आह्वान] !!
आज एक नया संग्राम लाना चाहिए,हो गया पुराना संसार नया चाहिए,
आईनों के धुंधले अक्स नहीं चाहिए,ओहदों से लदे इंसान नहीं चाहिए,
आज एक नया संग्राम लाना चाहिए,हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
झूटे करें वादे और लूटे भोलेपन को,सत्ता के ऐसे गुलाम नहीं चाहिए,
बहता हो जिससे लहू मासूमों का, ऐसे खूनी फरमान नहीं चाहिए,
पैसों के कांटे छीले प्यार की कली को,आज हमें ऐसे धनवान नहीं चाहिए,
रिश्तों में बहता हो सिर्फ़ खारा पानी, ऐसे रिश्तों की पहचान नहीं चाहिए,
आज एक नया संग्राम लाना चाहिये,हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
इंसानियत के खूनी इंसान आज हमें ऐसे हैवान नहीं चाहिए,
जो न मिलने दे इन्साफ के खुदा से हमें,आज हमें ऐसे दरबान नहीं चाहिए,
जिस से बरसता हो सिर्फ़ काला पानी,आज हमें ऐसा आसमान नहीं चाहिए,
जिस घर में सन्नाटे और चीखें हों, आज हमें ऐसे मकान नहीं चाहिए,
आज हमें नया संग्राम लाना चाहिये,हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
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!! समय का भंवर !!
क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
वो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं!
तम घना है रीते मन का,रक्त रंजित भाव हैं,
कल्पनाएँ थक गयी हैं,स्वप्न भी सब सो गए!
है कठिन ये वक़्त,क्यूँ जल्दी गुज़र जाता नहीं!
हैं सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं,
पीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं!
अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं!
सोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी,
इस जहाँ से उस जहाँ ,
लौट पायें वे सभी जिनके बिना,
ज़िंदगानी का सफ़र अब और तो भाता नहीं!
क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
वो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं!
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!! 'आत्मदाह' !!
वक़्त की एक चाल
और -
बंध गया ,
हाथों की उन लकीरों में ,
जिन से कभी खेलता था
'वो' !
अधरों पर -
संबोधनहीन संवाद
और -
संज्ञा रहित पहचान लिए-
मृत कल्पना की सूचना से
'आहत '-
सूखे पत्ते सा,
शाख से टूट जब गिरता है
तब -
चला आता है,
देह की अटारी पर ,
'मन'
आत्मदाह के लिए!
----अल्पना वर्मा -----
11 comments:
निःसंदेह अल्पना जी एक अलग , महत्वपूर्ण मुकाम रखती हैं ,...
किस तरह भावनाओं को समेटा है ...
डूबती कश्ती ने तुमको समझा था साहिल,
लेकिन तुम ने दे दिया गैरों को अपना दिल,
जब कभी धड़कन से रिश्ते छूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
बहुत इम्प्रेसिव् विचारोत्तेजक -शुक्रिया
अल्पना जी का लिखा हमेशा दिल को छु जाता है बहुत बढ़िया लगी यह रचनाएं
बहुत इम्प्रेसिव् विचारोत्तेजक -शुक्रिया
बहुत सुंदर रचनाएं हैं। बधाई।
nive bahut khub
हमेशा की ही तरह प्रभावशाली.
रिश्तों में बहता हो सिर्फ़ खारा पानी, ऐसे रिश्तों की पहचान नहीं चाहिए,
आज एक नया संग्राम लाना चाहिये,हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
Alpana jee!! bahut bahut sukriya!! itnee khubsurat kavitaon se rubaru karwane ke liye!!
aapkee kavitaon ke har panktiyon me ek alag kasish hai.....
khubsurat!!
hame lagta hai, aap bahut aage jayengeee......:)
आप सभी का तहे दिल से आभार.
अल्पना जी सशक्त हस्ताक्षर हैं ! उनकी इन रचनाओं की इस प्रस्तुति का आभार ।
डूबती कश्ती ने तुमको समझा था साहिल,
लेकिन तुम ने दे दिया गैरों को अपना दिल,
जब कभी धड़कन से रिश्ते छूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
alpana ji behad afsos hua aaj aapke bheje mail ko dekh ,kyonki main safar me ek mahine se vyast rahi aur abhi laut kar dekhi to swarn avasar haath se nikal chuka tha ,magar aapki har rachna padhkar mujhe rahat aur khushi mili ,kitna sundar likha hai ki man hua in rachanao ko dil bahlaane ke liye apne dairy me kaid kar loo magar bina aapki izazat ke aesa karna sahi nahi hoga .aaj meri mitr jo banasthali me saath padhi rahi uska janmdin hai aur main har use shabdo ke madhyam se yaad karti hoon aur yahi bhet swaroop bhi hota hai ,is baar safar ke karan kuchh nahi likh pai kal likhoongi ya purani rachna uske liye jo likhi rahi daal doongi ,aapki rachnao me ek rachna is avasar ke liye nazar aaya aur sochi ek mitr ki rachna ko hi le apne mitr ko bhet kar doon kyonki isse behtar to main bhi apne bhav pragat nahi kar
sakti .par aapki izajat iske liye nihayat jaroori rahi .aap bahut umda likhti hai ,kabhi kabhi lagta hai main apne bhav aapko bhej doon aur aap use apne shabdon me dhaal dijiye ,aaj apne mitr ki kami aapse baat karke poori karne ko jee kiya ,yadi chat se judi hoti to ye silsila aur jaari rakhti .aap me dost ki jhalak jaane anjaane mahsoos kiya aur ye benaam sa rishta haq ada kar gaya .
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