आदिकाल से बहती आ रही पाप विमोचिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री से भागीरथी रूप में आरंभ होती है। यह महाशक्तिशाली नदी देवप्रयाग में अलकनंदा से संगम के बाद गंगा के रूप में पहचानी जाती है। लगभग 300 किलोमीटर तक नटखट बालिका की तरह अठखेलियाँ करती, गंगा तीर्थनगरी हरिद्वार पहुंचती है। तीर्थनगरी में कुंभस्नान तो हम पिछले महीने कर आए थे। अब घर के सदस्यों का विचार हुआ गंगा का सागर से संगम भी हो आया जाय। हर साल मकर सक्रांति पर्व पर महाकुंभ जैसा पर्व यहां लगता है। गंगासागर श्रेष्ठ तीर्थ क्षेत्र है। पहले यहां आने जाने की सुविधा उतनी नहीं थी। अतः यह लोकोक्ति प्रचलित हो गई।
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सारे तीर्थ बार बार
गंगा सागर एक बार
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यह तीर्थ एक समय अत्यंत दुर्गम था। उस समय यंत्र चालित नाव नहीं थी। बिजली, पानी, आश्रम एवं परिवहन सेवा का अभाव था। आज ऐसी बात नहीं है। पथ की वह दुर्गमता अब नहीं रही। यातायात के अनेक साधनों का विकास हुआ है। जिससे यात्रा सहज हो गई है। इस जनविरल तीर्थ में अनेक आश्रम स्थापित हो चुके हैं पक्के रास्तों का निर्माण बसों का आवागमन आदि आंरभ हो चुका है।
अब तो यातायात के कई साधन हो चुके हैं। कोलकाता से गंगासागर जाने की सड़क भी काफी अच्छी और चौड़ी है। सरकारी व गैर सरकारी बस के द्वारा लट नम्बर 8 तक पहूँचा जा सकता है। हमने तो अपनी गाड़ी से ही यात्रा आरंभ की। कोलकाता से लट नं 8 तक की दूरी लगभग 100 किलोमीटर की है। बीच में लगभग 40 किलोमीटर की दूरी तय करने पर डायमंड हारबर आता है। यहां पर सड़क के किनारे गंगा का फैलाव एवं दृश्य बड़ा ही मनोरम है। गाड़ी से उतर कुछ देर यहां का आनंद लिया फिर आगे की यात्रा पर निकल पड़े।
डायमंड हारबर
लट नं; 8 तक पहूँचने में लग्भग दो घंटे लगे। यहां से जलयान द्वारा कचुबेडि़या द्वीप के लिए जाया जाता है। यह दूरी लगभग 8 किलोमीटर की है और जलयान द्वारा इसे तय करने में 25 से 30 मिनट लगते हैं। सुबह छह बजे से ही जलयान या फेरी सेवा शुरू हो जाती है, जो रात के नौ बजे तक चलती रहती है।
कहते हैं कि पहले कोचुबेडि़या द्वीप और घोड़ामारा द्वीप एक था बाद में जल के कटाव से दोनों अलग हो गए।
बंगाल के सुदूर दक्षिणी छोर पर विश्वविख्यात सुंदरवन है। सागर द्वीप उसी सुन्दर वन का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह द्वीप 30 किलोमीटर लम्बा और औसत 10-12 किलोमीटर चौडा है। यह लगभग 5000 वर्ष पुराना है। यह दक्षिण 24 परगना जिले में आता है। कोचुबेडि़या से गंगासागर तट तक दूरी 30 किलोमीटर है और यहां बस, ट्रेकर अथवा प्राइवेट गाड़ी से जाया जा सकता है। हमने यह यात्रा टाटा सूमो से तय की। रास्ता काफी अच्छा है।
तट पर का मनोरम दृश्य देख कर हम तो अत्यंत प्रसन्नचित हुए। जलनिधि का किल्लोल, रूपहले बालू कण और महामुनि कपिल का प्राचीन मन्दिर।
गंगासागर की छटा निराली है। ऊपर नील गगन का विस्तार, नीचे श्वेत, फेनिल जलधि तरंग, और धरा पर रजत बालूका कणों का फैलाव ऊपर से सूरज की सुनहली किरणें – इस स्थल की शोभा को असीमित विस्तार देते हैं। दक्षिण की ओर फेनिल समुद्र है समुद्र की उत्ताल लहरें दूर दूर तक शुभ्र वालुकामय सुविस्तृत स्थलखण्ड का विस्तार है। चारो ओर फैले हुए हरे भरे बन इसकी शोभा में चार चांद लगाते हैं। चारो ओर प्राकृतिक सौन्दर्य से आच्छादित है गंगासागर की पुण्यभूमि।
गंगासागर पाताल (अर्थात नदी और समुद्र से घिरा जल-जंगल परिपूर्ण निम्नभूमि क्षेत्र) लोक के अंतिम छोर पर है जहां भगवान विष्णु के पांचवे अवतार महामुनि कपिल का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि महर्षि कर्दम और मनुकन्या देवहुति के यहां पुत्र रूप में अवतरित हुए। कपिलमुनि के उपदेश सांख्यदर्शन के रूप में जगत विख्यात है। संसार की सृष्टि व जीवात्मा का गूढ़ रहस्य का तत्व उस दर्शन में दिया गया है। इसके बारे में विस्तार से फिर कभी।
यहां पर कपिल मुनि का आश्रम है। परंपराओं की माने तो महामुनि कपिल का आश्रम सागर और गंगा के मिलन के पहले से ही प्रतिष्ठित था। पर बारम्बार समुद्र द्वारा ग्रास किए जाने के कारण अपना स्थान बदलता रहा। हालांकि ईसा के 437 वर्ष पूर्व यहां पर एक प्राचीन मंदिर के अस्तित्व की चर्चा मिलती है , पर वह मंदिर सागर के गर्भ में समा गया। वर्तमान अवस्थित मंदिर का निर्माण सन 1974 हमें हुआ। यह सांतवां मंदिर है।
श्री गंगासागर संगम प्रवाह में गोता लगाकर और सिद्धेश्वर श्री कपिलमुनि का भाव भरे नेत्रों से दर्शन और अनुराग भरे हृदय से अर्चन वन्दन और आत्मनिवेदन कर हमने अपने मानव जीवन को कृतार्थ किया।
इस मंदिर में कई विग्रह है। कपिल मुनि पद्मासन में अपने आसन पर आरूढ़ है। उनका श्रीमुख जटाओं से मंडिंत है। उनके बांए हाथ में कमण्डल है। दाहिने हाथ में जपमाला। शीर्ष भाग में बने पंचनाग छत्त्रवत् उनपर छाया करते हैं। यह मूर्ति हमें संदेश देती है कि अगर कैवल्य या मुक्ति की कामना करते हो तो जप, तप, अराधना में लीन रहो।
भगवान कपिल के दाहिने भाग में मां गंगा की मुर्ति है। ये चतुर्भुजा और मगरवाहिनी है। इनके हाथों में शंख, चक्र, रत्नकुंभ एवं वरमुद्रा है। देवी के अंक में महातपस्वी भगीरथ विद्यमान है। देवी गंगा से कुछ दूरी पर विराजमान है हनुमान जी, जिनके एक हाथ में गदा और दूसरे में गंदमादन पर्वत है। कपिलदेवके बाएं में राजा सगर है। इनके बाएं में अष्टभुजा सिंहारूढ देवी विशालाक्षी अधिष्ठित है। मां के करकमलों में त्रिशुल, खड्ग चक्र आदि आयुध और कमल पुष्प हैं। इनके बाई ओर इन्द्रदेव है जिनके दाहिने हाथ में धनुष, बाएं में यज्ञ के अश्व की वल्गा एवं बाएं स्कन्ध में तरकस है। इन्द्रदेव के बगल में देवाधिदेव महादेव है। साथ ही राधा-कृष्ण की युगल की मूर्ति भी है। सभी मूर्तियां सिन्दूर से मण्डित हैं। प्रतिदिन पांच बार मंदिर में पूजा होती है। रात 2 ½ बजे मंगल आरती और 4 बजे श्रृंगार आरती, दोपहर 2 बजे भोग आरती, संध्या 7 बजे संध्या आरती एवं रात 8 ½ बजे शयन आरती
गंगा सागर आज नित्यतीर्थ बन चुका है। फिर भी मकर सक्रांति के अवसर पर गंगा सागर तीर्थस्थान परम पुण्यादायक है। त्रिपथगामिनी (त्रिपथ अर्थात इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना ग्रंथियों) गंगा भगीरथ के अभूतपूर्व तपस्या से इहलोक में अवतीर्ण हुई जो मानवमात्र के लिए मुक्तिप्रदायिणी व कल्याणकारी है। गंगा के पृथ्वी पर आने की अनेक कथाएं प्रचलित है। इसमें एक है राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की महामुनि कपिल की क्रोधग्नि से जलकर भस्मिभूत हो जाना और सगर के पौत्र अंशुमान द्वारा भगीरथ के अक्लान्त परिश्रम और चेष्टा के बाद उनका उद्धार करने की प्रक्रिया में गंगा का पृथ्वी पर लाया जाना। इसकी भी विस्तृत चर्चा फिर कभी।
आज तो यही कहूँगा कि त्रिपथगामिनी स्वर्ग से मंदाकिनी, पाताल से भगवती और जो धारा मर्त से अवतीर्ण हुई वह भगीरथ द्वारा आनयन होने के कारण भागीरथी नाम से आख्यात, त्रिलोकपावनी गंगा का नाम स्मरण करने में समस्त पाप कट जाते हैं। जिनके दर्शन और स्थान से सप्तकुल पवित्र हो जाते हैं। गंगासागर तीर्थ की महिमा अपरिसीम और अनिर्वचनीय है।
इन धार्मिक आध्यात्मिक बातों के अलावा गंगा भारतवर्ष की चेतना, दर्शन और संस्कृति की धरोहर है। इसके तट पर न सिर्फ ऋषि, मुनि, साधक, तपस्वी अपनी साधना के चरम शिखर पर पहुंच कर सिद्धि प्राप्त किए बल्कि इसके तटभूमि में अनन्त याय योज्ञ शास्त्र पाठ, पुष्यानुष्ठान का आयोजन होते रहा है।
सागरद्वीप ब्रहम्पुत्र के डेल्टा के दक्षिण-पश्चिम छोर पर है। इस का क्षेत्रफल 205 वर्ग किमी है। इसके 9 ग्रामपंचायत है। 2001 की जनगणना के आधार पर यहां की जनसंख्या 1,85,630 थी। यहां पर एक महाविद्यालय, 6 उच्च माध्यमिक विद्यालय, 13 माध्यमिक विद्यालय, 12 निम्न माध्यमिक विद्यालय, 123 प्राथमिक विद्यालय, 16 गैरसरकारी के.जी एवं नर्सरी स्कूल, 63 शिशु केंद्र है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि स्थानीय सरकार यहां पर शिक्षा के प्रति कितनी सजग है। इसका परिणाम है कि यहां की साक्षरता 90 प्रतिशत से भी अधिक है। स्वास्थ्य के प्रति भी इस जनविरल क्षेत्र में काफी जागरूकता दिखी। यहां एक ग्रामीण अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं 35 उप स्वास्थ्य केंद्र हे। पेय जल की भी व्यवस्था की गई है। 600 नलकूप, 5 बोरिंग है खेल के दर्जन भर मैदान है। 7 सरकारी बैंक है। कृषि समिति, दुग्ध समिति मत्सय समिति आदि यहां की सक्रियता संबंधी जानकारी देते हैं। 35 किलोमीटर की पिचढलाई सड़क और 120 किलोमीटर की ईटं निर्मित सड़क यहां के परिवहन व्यवस्था को गति प्रदान करते हैं।
विधुत परिसेवा की कमी है। 17 डिजल इंजिन चालित जेनरेटर से प्रतिदिन शाम 5.30 से 9.30 तक 4 घंटा तक बिजली रहती है। सौरशक्ति से 10 गांवों को बिजली पहुंचाई जाती है। पवन चक्की से भी ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।
यहां पर बिजली पहुंचे इसकी परियोजना पर काम चल रहा है। और अनुमान है कि दो वर्षों में यह काम पूरा हो जाएगा।
दोपहर दो बजे तक हमारी वापसी की यात्रा शुरू हो चुकी थी। जलयान द्वारा कोचुबेडि़या से लट नं. 8 वापस आए। वहां से पुनः अपनी गाड़ी से शाम छह बजे तक कोलकाता के अपने आवास तक पहुंच गए।
लौटते समय मन में यही भाव थे –
मातः शान्तति शम्भुसंगमिलिते मौलो निधायांजलिं।
त्वत्तीटे वपुषोsवसानसमये नारायणांध्रिद्वयम्।।
त्वन्नाथ समरतो भविष्यति मम प्राणप्रयाणोत्सवे।
भूयाद्भक्तिरविच्युता हरिहराद्वैतात्मिका शाश्वतौ।।
हे मातः! तुम शंभु का निजस्व हो, उनके अंग से एकात्म हो। तुम्हारा प्रसाद जिसे मिला, वह मृत्युंजय हुआ। तुम्हारे तीर पर मरण के वरण से आनन्द और मुक्ति का लाभ होता है। इसी कारण मस्तक पर करबद्ध प्रणाम करके कहता हूँ--- मां, मेरे अन्तिम समय में तुम्हारा पुण्य सलिल मेरे शरीर पर पडे़, मैं नारायण का नाम लेता-लेता एवं तुम्हारा स्मरण करता-करता ही अद्वैत हरिहरात्मक ब्रह्मा की परमभक्ति में, अचला भक्ति में लीन हो जाउँ। मुझे परमगति की प्राप्ति हो।
() मनोज कुमार की प्रस्तुति
इनके बारे में :
नाम : मनोज कुमार, जन्म 1962, ग्राम – रेवाड़ी, ज़िला – समस्तीपुर, बिहार शिक्षा – स्नातकोत्तर जन्तुविज्ञान (एमएससी जूऑलजी) पत्र पत्रिकाओं में लेखन, कादम्बिनी, मिलाप, राजस्थान पत्रिका आदि में लेख, कहानी, आकाशवाणी हैदराबाद पर कविताएं प्रकाशित। पेशे से भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय, कार्यरत।
4 comments:
आपके साथ हमने भी यत्रा कर ली , जय हो गंगा सागर
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
उम्दा प्रस्तुती ,आपको अनेक शुभकामनायें /
आपने बहुत ही सुन्दर रूप से लिखा है! उम्दा प्रस्तुती
देखें कब मौका लगता है जाने का।
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