मालविका निराजन एक क्लासिकल सिंगर हैं ...इन्होनें कई बड़े शोज किये हैं,विगत दिनों जब सा रे ग मा के लिए सोनू निगम ने अपनी प्रस्तुति दी थी उसमें इनकी भी सहभागिता थी । उस्ताद बिरजू महाराज और उनके शिष्यों के साथ कत्थक की प्रस्तुति के दौरान इन्होने अपना स्वर दिया है .इन्होनें कई महत्वपूर्ण अवसरों पर एकल और द्वय गायन किया है . इनका एक म्यूजिक एलबम " छंद काव्य" भी प्रसारित है .इन्होनें बच्चों को संगीत भी सिखाया है. कुछ वोर्कशोप्स भी कंडक्ट की हैं....! ये ब्लोगोत्सव-२०१० के माध्यम से पहली बार हिंदी चिट्ठाजगत से रूबरू हुई और हिंदी चिट्ठाजगत ने इनके स्वर साधने की कला को काफी सराहा, इसीलिए इन्हें ब्लोगोत्सव की टीम ने वर्ष की श्रेष्ठ युवा गायिका से नवाजते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया है। "जानिये अपने सितारों को " के अंतर्गत आज प्रस्तुत है इनसे इनकी सृजनयात्रा के बारे में पूछे गए कुछ प्रश्नों के उत्तर-

(१) पूरा नाम :
मालविका निराजन
(२) पति का नाम/जन्म स्थान :

सोमप्रभ सिंह /तेनुघाट
(३) ई मेल का पता :

malvikanirajan@gmail.com
टेलीफोन/मोबाईल न.

09902697159
(४) आपके प्रमुख व्यक्तिगत ब्लॉग :

http://triggersrevivalsdepartures-malvika.blogspot.com/

(५) अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का विवरण :

मै संगीत के कार्यक्रम देती हूँ, संगीत की शिक्षा भी. आजकल शिक्षा नहीं दे रही क्योंकि अपने बेटे में व्यस्त हूँ पर जल्द ही शुरू करुँगी.
(६) संगीत के अतिरिक्त आपको कौन कौन सी अन्य विधाएं पसंद है :

बहुत ब्लोग्स तो नहीं पढ़ती. पर पढ़ा है. हलके फुल्के सहज तरीके से लिखी हुयी गहरी बातें अच्छी लगती हैं. वैसी बातें जो व्यक्तिगत होते हुए भी उनसे आगे हों और आम आदमी से जुडी हों और बौधिक रूप में सोचने को मजबूर करें. कुछ मज़ेदार Anecdotal शैली में लिखा हुआ पढने में काफी मज़ा आता है.

(७) ब्लॉग पर कौन सा विषय आपको ज्यादा आकर्षित करता है?

कला से जुड़ा सब कुछ ही आकर्षित करता है. पर लय, ताल, संगीत के जेसा कुछ भी नहीं लगता. इसीलिए नृत्य देखना, समझना पसंद है. करती नहीं हूँ, प्रशंसक या आलोचक के रूप में देखना पसंद है. कभी कुछ पढना या लिखना भी अच्छा लगता है.
(८) आपके संगीत का सफ़र कब शुरू हुआ ?
संगीत का सफ़र तो तब ही शुरू हुआ होगा जब मै सुबह सुबह रेडियो सिलौन (Ceylon) सुनती थी अपने माता पिता के कारण. रेडियो की वो घरघराती आवाज़ और उसको दबाने की कोशिश करता हुई सहगल, सी एच आत्मा , सुरैय्या आदि की मीठी आवाजें अभी भी बचपन की सुबह की याद दिलाती हैं. मुझे लगता है की कानों में अच्छा संगीत जाये और मन के अन्दर छुपा हुआ संगीत हो, तो पहली शिक्षा वहीँ शुरू होती है. मेरी नानी , मौसियों, दादा ने भी हमेशा मुझे संगीत की तरफ प्रेरित किया. ये सब पहले हुआ, शिक्षा तो ७-८ वर्ष में शुरू हुयी.
(९) यह खिताब पाकर आपको कैसा महसूस हो रहा है ?

बहुत ख़ुशी हो रही है क्योंकि ये सब जो भी हुआ उसकी कोई उम्मीद नहीं थी ..
(१०) क्या संगीत से आपके अन्य आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न नहीं होता ?

कला कभी अवरोध नहीं हो सकती. बल्कि गति देती हैं. मैंने तो हमेशा यही महसूस किया है. जिस दिन सुबह गाती हूँ, बाकी सारे काम भी ज्यादा प्लानिंग से होते हैं.
(११) यदि होता तो उसे कैसे प्रबंध करती है ?

कभी कोई शो आदि हो तो मेरे पति का योगदान ही काफी होता हैं कुछ भी प्रबंध करने के लिए.
(१२) ब्लोगोत्सव जैसे सार्वजनिक उत्सव में शामिल होकर आपको कैसा लगा ?
बहुत अच्छा लगा, कला को लोगों तक पहुचने की इसकी कोशिश अत्यंत सराहनीय है. इसमें और सक्रिय होने की इच्छा भी है ताकि अच्छी आलोचना मिले, अच्छा सुनने, पढने को भी.

(१३ ) आप कुछ अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताएं :
इक साल की थी तब से अम्मा (नानी) के पास रही. व्यक्तिगत जीवन की बात हो तो सबसे पहले वही याद आती है. वो भी कला से बहुत गहरे रूप से जुडी है, लिखती तो कमाल का है. मेरी दृष्टि में इक सर्वश्रेष्ठ लेखिका बनने की खूबी थी, है. ग़ुलाम अली का गाया 'चुपके चुपके' उसीके पास रहते हुए गाना शुरू किया. मेरी अच्छी आलोचक रही है वो हमेशा. तो मेरा माहौल संगीत, नृत्य, कविताओं से भरा था. ९ वर्ष की उम्र में जब माँ के पास आई तो संगीत की शिक्षा शुरू हुयी. मेरी बड़ी बहनें भी कत्थक की मंजी हुयी कलाकार थीं. आज भी बहुत सुन्दर नाचती हैं पर professionally दूसरे क्षेत्रों में व्यस्त हो गयीं हैं. इसलिए हमारा बचपन स्टेज शोस वगैरह देते हुए बीता. वो दौर काफी मज़े का था. दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से graduation के दौरान भी मै पूरी दिल्ली university के सांस्कृतिक क्षेत्र में काफी सक्रिय थी. कॉलेज के तुरंत बाद ही मैंने सा, रे, गा, म़ा में भाग लिया. ज़ी टीवी और अन्य चेन्नल्स के अन्ताक्षरी कार्यक्रमों में भी. इ टीवी बिहार पर मैंने इक १३ एपिसोड्स की अन्ताक्षरी 'गए जा मुस्कुराये जा ' का सञ्चालन भी किया.गन्धर्व महाविद्यालय, नयी दिल्ली ने मुझे सही मायने में संगीत के कई रूपों में धनी बनाया. वहां लम्बे समय तक मैंने पंडित जगदीश मोहन जी और पंडित मधुप मुदगल जी से शिक्षा ली. महाविद्यालय के कारण ही मेरे सांगीतिक कार्यकलापों को प्रेरणा और दिशा मिली. बहुत से दिग्गजों से मिलने और सीखने का मौका मिला. पंडित बिरजू महाराज के शागिर्दों के साथ मैंने कत्थक नृत्य के साथ गाना शुरू किया. संगीत हमेशा मेरे साथ चलता रहा है. कुछ सालों से मैं e-learning के क्षेत्र में इक content developer के रूप में कार्यरत हूँ.
(१४) कोई ऐसा संस्मरण है जिसे आप इस अवसर पर सार्वजनिक करना चाहते हैं ?

संस्मरण तो कई हैं. अपने प्रियजनों , मित्रों की आँखों में अपनी सफलता की ख़ुशी देखना दिल को इक unexplainable ख़ुशी से भर देता है. जो बात आज कहना चाहूंगी वो ये है की जीवन में नियम , उद्देश्य, उससे प्यार और उसे पाने की आग बहुत ज़रूरी है. मुझे अक्सर याद आता है करीबन रोज़ ही मेरी माँ का ये कहना की 'कुछ गा लो', 'अभ्यास क्यूं नहीं करती' आदि आदि ..स्वभाव की कमियों को पूरा करने के लिए ही भगवान ऐसे लोगों को हमारे पास रखता है जो हमें उनकी याद दिलाते राहें. पर हम अपने बचपने में या लापरवाही में उन्हें नज़रंदाज़ करते हैं. याद नहीं क्यों पर आज भी जब वो कहती है तो बहस होती है या पूरी तरह उसे नज़रंदाज़ कर देती हूँ. अभ्यास शायद पहले से ज्यादा करती हूँ, जो की असल में ज्यादा नहीं:) आज सोचती हूँ की माँ की बात और गुरुओं की भी ज्यादा सुननी चाहिए. पर "अब पछताए .... " जैसा हाल नहीं क्योंकि जो मिल रहा है वो कम नहीं और आशा रहती है की कुछ बेहतर ही होगा, मुझसे ज्यादा मेरी माँ को."देर आये दुरुस्त आये" मुहावरा तो अच्छा है पर देर ही क्यों करें..ऐसा सोचती हूँ अक्सर.

बहुत बहुत धन्यवाद मालविका.....इस अवसर पर ऋग्वेद की दो पंक्तियां आपको समर्पित है कि - ‘‘आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणी:। हृदाश्च पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें ।।’’अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले।


आपका भी आभार इस खुबसूरत मंच से जोड़ने हेतु

प्रस्तुति : रवीन्द्र प्रभात

15 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 11:18 am बजे

मालविका जी के बारे में जानकर अच्छा लगा। एक बार फिर से बधाई।
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अथातो सर्प जिज्ञासा।
महिलाओं को क्यों गुजरना पड़ता है लिंग परीक्षण से?

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:17 pm बजे

मालविका जी को
परिकल्पना ब्लॉगोत्सव 2010 में सम्मानित होने के लिए बहुत बहुत बधाइयां !
मंगलकामनाएं !!
शुभाकांक्षी
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

पूर्णिमा ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:20 pm बजे

बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ

mala ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:21 pm बजे

बहुत बहुत बधाइयां !

Khushdeep Sehgal ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:25 pm बजे

मालविका जी की सुर साधना को नमन...

रवींद्र जी और ब्लॉगोत्सव टीम २०१० का आभार...

जय हिंद...

Khushdeep Sehgal ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:25 pm बजे
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
shikha varshney ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:52 pm बजे

malvika ji ke bare men jaankar achhcha laga.

shikha varshney ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 1:52 pm बजे

malvika ji ke bare men jaankar achhcha laga.

ZEAL ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 4:29 pm बजे

मालविका जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.!
badhaai !

गीतेश ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 4:56 pm बजे

बहुत-बहुत बधाई

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 8:52 pm बजे

Maalvika ji ke baare mein jaankar khushi hui..
Unhein hriday se badhaii ewam shubhkaamna...

Udan Tashtari ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 10:36 pm बजे

बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ

अविनाश वाचस्पति ने कहा… 21 जुलाई 2010 को 10:44 pm बजे

मालविका जी के बारे में जानकर बहुत अच्‍छा लगा और यह जानकर तो और भी कि वे मेरे पड़ोस में पढ़ी हैं मतलब लेडी श्रीराम कॉलेज में, जिसके सामने से मैं अब भी आफिस आते जाते निकलता हूं। इसका कोई और अर्थ न लगाया जाए।

Smart Indian ने कहा… 24 जुलाई 2010 को 8:58 am बजे

मालविका जी के बारे में जानकर अच्छा लगा। मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

 
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