समारोह में किसी का सम्मान हो गया है,
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...?
सिर पर पत्थर उठाता है बबुआ,
क्या बचपन सच में जवान हो गया है...?
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
बूढ़े बाप का ख़ून जलाता है बेटा,
क्या सही में लायक संतान हो गया है...?
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
नारी है आज इस देश की राष्ट्रपति,
क्या चंपा का घर में बंद अपमान हो गया है...?
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
आज़मगढ़ में पंचर लगाता है जमाल,
क्या किस्मत का शाहरुख़ ख़ान हो गया है....
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...?
समारोह में किसी का सम्मान हो गया है...
मेरे बारे में :
मेरे बारे में बस इतना जान लीजिये कि बंदा 15 साल से कलम-कंप्यूटर तोड़ रहा है... अपनी अभिव्यक्ति को कभी कविता, कभी ग़ज़ल तो कभी व्यंग्य का का स्वरुप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ , ऐसा करना मुझे अच्छा लगता है .....ब्लोगोत्सव के लिए मैंने दो रचनाएँ भेजी थी, किन्तु ब्लोगोत्सव का समापन सन्निकट होने के कारण केवल एक व्यंग्य उस उत्सव में शामिल हो पाया ...यह ग़ज़ल रुपी मेरी व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति रवीन्द्र जी को काफी पसंद है , इसलिए उन्होंने ब्लोगोत्सव के बाद प्रस्तुत करने की इच्छा व्यक्त की और मैंने स्वीकार कर लिया !
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17 comments:
Vidambnayen bahut sahi hain..lekin sadiyon se chali aa rahee hain...aaj kee baat to nahee!
Lekin in halaaton kaa izhaar behad sucharu roop se kiya hai aapne!
आईये पढें ... अमृत वाणी।
सुंदर पोस्ट
सुंदर पोस्ट
अरे वाह खुशदीप मियाँ !
पंकचर लगाने कहाँ पंहुच गए , कविता लेखन में भी वही दर्द ...शुभकामनायें
kya bachpan sach me jawan ho gaya.......??
umda rachna!!
बहुत खूबसूरत कविता
भावपूर्ण रचना,बधाई।
vaah, blogotsav ke baad kee rachanaayen itani sundar hai ki man ko mohit kar gayi....badhayi
सुंदर पोस्ट,बधाई।
आज तो कविता पढ़कर तबियत खुश हो गई ..वाह वाह ..बढ़िया रचना ...आभार
bahut sundar rachna sirji
बहुत सुन्दर रचना। ब्लोग उत्सव मे प्रविष्टि पाना ही था उसे। और वैसे भी खुशदीप भाई की रचना पढ्कर आनन्द आ जाता है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई!
आभार
ब्लाग4 वार्ता प्रिंट मीडिया पर प्रति सोमवार
ब्लॉगोत्सव के बाद भी ब्लॉगोत्सव। खुशदीप जी की कविता के पंक्चर की तरह बुराईयों के टायरों में पंक्चर लगाने का दायित्व सभी को संभाल देना चाहिए।
रचना बहुत अच्छी है,
जाने पहचाने भाव और कुरेद
सँदर्भों की तलाश कभी अँतहीन न होगी !
नारी है आज इस देश की राष्ट्रपति,
क्या चंपा का घर में बंद अपमान हो गया है...?
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
क्या बात कही है ...एकदम सटीक खुशदीप जी !
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