अदभुत , अविस्मरनीय , अलौकिक , .. उत्सव के समापन की घोषणा किस तरह हो, यहाँ अदा जी का अनुरोध भी हमें रोक रहा है...








(चलते चलते मेरे ये गीत)
मनुहार भरे स्वर में अपराजिता का आग्रह उत्सव की शोभा बढ़ाते हुए रुकने को विवश कर रहा है

(ये लम्हा फिलहाल जी लेने दे)





1 comments:

Udan Tashtari ने कहा… 10 जून 2010 को 10:39 pm बजे

दोनों को ही सुनकर आनन्द आ गया. आभार,

 
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