मैं शशि सिन्घल उत्तर प्रदेश के अपनी लाजवाब व सुन्दर धरोहर के लिए समूचे विश्व में प्रसिद्ध शहर आगरा में पली - बढ़ी हूं । यदि हम आज से पन्द्रह - सोलह बरस पीछे जाएं तो पाएंगे कि उस दुर में लड़कियों का घर से बाहर कदम रखना तो दूर उन्हें ज्यादा पढ़ने लिखने की इजाजत तक न थी । इन विषम परिस्थितियों में मैंने आगरा कॉलेज आगरा से संस्कृत विषय से स्नातकोत्तर की उपाधि ली । मैंने प्रोफेसर बनने की चाहत में इसी विषय से पी एच डी की शुरूआत की । मगर भाग्य को कुछ और मंजूर था मैं अपने एक सहपाठी की सलाह पर पत्रकारिता के क्षेत्र में कूद पडी़ । उस समय आज जैसी कठिन प्रतियोगिता नहीं थी । आगरा में अखबार के दफ्तर में उप - सम्पादक के पद पर कार्य करने वाली पहली महिला थी । उस समय की प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका ’ धर्मयुग ’ ने पत्रकार महिलाओं पर एक परिचर्चा की जिसमे अपने विचार लिखने के लिए मेरे पास भी एक पत्र आया । धर्मयुग में मेरे विचार क्या छपे कि मेरे पास बधाई पत्रों का अंबार लग गया । बस फिए क्या था तब से लेकर आज तक में पत्रकारिता के नशे में चूर हूं की बजाए । वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने के बाद काफी उतार चडा़व आये , कभी मेरी कलम लिख देती तो कभी ब्रेक लग जाता । इधर कुछ समय से ब्लॉगिंग का सुरूर भी छा गया है । समय व टॉपिक के हाथ लगते ही ब्लॉग पर टिपियाने आ जाती हूं ।
आज मैं कड़वा सच की आज की इस श्रृंखला में आपको एक ऐसे सच से अवगत करा रही हूँ जिसे पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे , जी हाँ मैं बात कर रही हूँ विश्व की सबसे बड़ी भारतीय रेल के बारे में । यूं तो रेलवे विभाग खामियों का भंडार है लेकिन कभी - कभी ऎसे वाकये सामने आते हैं जिन्हें देख - सुनकर आंखें खुली की खुली रह जाती हैं । देखो तो ये रेलवे कर्मचारी अपनी कैसी - कैसी कारगुजारियों से रेल यात्रियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं । हाल ही में इन रेल कर्मचारियों की ऎसी घिनौनी कारगुजारी को सामने लाता हुआ एक मेल मेरे पास आया , जिसे मैं आप सबके साथ शेयर किए बिना नहीं रह सकी ।

ये वाकया जनशताब्दी एक्सप्रेस का है , जो कि कोंकण रेलवे की देखरेख में है ,मेलप्रेषक स्वयं इसमें सफर कर रहे थे , जब उन्होंने देखा तो तुरंत उसकी फोटो उतार ली । आंखोदेखा हाल बयां करते हुए प्रेषक ने बताया है कि रेलयात्री अपनी यात्रा के दौरान खाना लें या नहीं लेकिन अधिकांश यात्री चाय की चुस्कियां लेते जरूर दिख जाते हैं या यूं कह लीजिए कि चाय की चुस्कियों के बीच वे सफर का लुत्फ उठाने के साथ - साथ समय को आसानी से व्यतीत करने की जुगत में रहते हैं । मगर उन बेचारों को इस बात का जरा भी आभास नहीं है कि वे जो चाय पी रहे हैं वह कैसे तैयार की जाती है । दरअसल ये लोग चाय को केन्टीन के टॉयलेट में तैयार करते हैं चाय बनाने का सभी सामान वहीं टॉयलेट के फर्श पर रहता है । पानी का टैब भी वहीं से लिया होता है । और चाय उबालने के लिए बाथ हीटर का प्रयोग किया जाता है । जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है । ज्यादा क्या लिखूं सारा माजरा आप लोग स्वयं चित्र देखकर समझ जाएंगे ..........

ये देखिए कैसे ट्रेन के टॉयलेट में बैठकर चाय बन रही है ........

3 comments:

kshama ने कहा… 14 जून 2010 को 6:42 pm बजे

Sachayi kadvi to hai,lekin in baaton ke liye,ham sabhi zimmedaar hain. Janta aawaaz kyon nahi uthati? Ek bogi ke log shor macha den,to bhi kuchh to halchal hogi!

सुरेन्द्र Verma ने कहा… 14 जून 2010 को 10:31 pm बजे

JI haan ! 15-20 saal to nahi balki usake aur 15-20 saal pahale ladkiyon ko ghar ke dahleez se nikalane nahi diya jata tha. yah bilkul sach hai par isame sachhai bhi hai. aaj ke ladke-ladkiya khuleaam sadko par ek-dusare ke haanth ya kamar pakarkar chalate najar aayenge, sirf yahi nahi parko ya sunsaan jagaho par to "WAH BAHUT KUCHH KARATE NAZAR AAYENGE" kya yahi azadi hai ek STRI KE LIYE?? Agar yahi azadi hai to is samaj yani vartmaan samaaj isaka purkoor "SWAGAT KARATI HAI YA KAREGI"
MAM! jnashankhya itani atyadhik hai ki sarkaar kya koi bhi isaka thikra apne sir nahi le sakta ki " HAM DUNIYA KO SUDHAAR DENGE YA SARKAAR KO SUDHAAR DENGE" Baba Ramdeo bhi ab "RAJNEET" ki ore chale wo dekh liye ki ab YOG bahut ho gaya ab chalo RAJNEET ke jariye logo ko sudhare . Ab dekhe aage-2 hota kya????

 
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