संक्षिप्त परिचय : नाम : राजीव कुमार थेपड़ा [वर्मा] जन्म-तिथि :24 सितम्बर 1970 शिक्षा :बी ए आनर्स [दर्शन-शास्त्र] रूचि :रंगमंच,गायन,लेखन तथा सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय [था] विशेष :1997 में इन्डियन फ़िल्म एन्ड थियेटर अकादिमी [दिल्ली] के टापर अभिनय-गायन-लेखन-निर्देशन में सैंकड़ों मंचन पत्र-पत्रिकाओं में यदा-कदा प्रकाशित चंडीगड तथा इलाहाबाद से सुगम तथा शास्त्रीय संगीत में संगीत-प्रभाकर इन सभी क्षेत्रों में कई पुरस्कार आकाशवाणी रांची के कलाकार मगर फ़िलहाल पैकिंग मैटेरियल के व्यापार में सक्रिय .....इनके प्रमुख व्यक्तिगत ब्लॉग है - बात पुरानी है । प्रस्तुत है इनकी दो कविताएँ-

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चिन्ताएं !!

चिन्ताएं-
एक लंबी यात्रा हैं-अन्तहीन,
चिन्ताएं-एक फ़ैला आकाश है असीम,
चिन्ताएं-हमारे होने का एक बोध हैं,
साथ ही हमारे अहंकार का एक प्रश्न भी !!
चिन्ताएं-कभी दूर ही नहीं होती हमसे,
अन्त-हीन हैं हमारी अबूझ चिन्ताएं,
जो हमारे कामों से ही शुरू होती हैं,
और हमारे कामों के बरअक्श वो-
हरी-भरी होती जाती हैं या फ़िर,
जलती-बूझती भी जाती हैं !!
एक काम खत्म तो दूसरा शुरू,
दूसरा खत्म तो तीसरा शुरू,
तीसरा………
हमारे काम कभी खत्म ही नहीं होते,
और उन्हीं की एवज में खरीद ली जाती हैं,
कभी ना खत्म होने वाली अन्त-हीन चिन्ताएं !!
चिन्ताएं-हमारी कैद हैं और हमारा फ़ैलाव भी,
चिन्ताएं-हमारा समाज हैं और हमारा एकान्त भी,
चिन्ताएं-कभी हमारा अमुल्य अह्सास हैं,
तो कभी जिन्दगी के लिए इक पिशाच भी !!
चिन्ताएं प्रश्न हैं तो कभी उनका उत्तर भी !!
हमारे बूते के बाहर होने वाली घट्नाओं पर-
हम कुछ कर भी नहीं सकते चिन्ता के सिवाय !!
और मज़ा यह है कि-
जिसे समझते हैं हम अपना खुद का किया हुआ-
होता है कोई और ही वो सब हमसे रहा करवा !!
जिसे माना हुआ है हमने अपना ही करना,
उसी से दौड़ी चली आ रही हैं हमारी चिन्ताएं !!
चिन्ताएं हमें जलाती भी हैं और बूझाती भी-


चिन्ताओं में यदि थोडा गहरा जायें अगर
तब जान सकते हैं हम अपने होने का वहम,
अपने अस्तित्व के प्रश्न की अनुपयोगिता,
और हमारी चिन्ताओं की असमर्थता !!
हमारे हाथ-पैर मारने की व्यर्थता
दरअसल….दूर आसमान में एक बडा सा खूंटा है-
जिसे कहते हम ईश्वर-
उस खूंटे से अगर हम
अपनी चिन्ताओं को बांध सकें-
आज़ाद हो सकते हैं-
अपनी ही चिन्ताओं के कैद्खाने से हम !

आसमान तुम्हे देख रहा है !!


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
ऐय मित्र
आसमान तुम्हे देख रहा है
गर्दन ऊपर उठाओ,आँखे ऊँची करो
ऊपर देखो कि सारा का सारा दिन
टकटकी लगाये यह आसमान तुम्हे देख रहा है!!
शायद तुम्हे यह तो पता ही होगा कि
तुम्हारे होने के बहुत-बहुत-बहुत पहले भी
बहुत-बहुत-बहुत कुछ गुजर चूका है आसमान के नीचे,
आसमान ने देखी है आसमान के नीचे होने वाली
तुम्हारे ईश्वरों की सारी भगवतलीलाएं और
तमाम संत-महात्माओं को भी देखा है आसमान ने !!
धरती के सभी सिकंदरों के हश्र का गवाह है आसमान
लेकिन यह भी सच है कि इसने कभी किसी को कुछ नहीं कहा है
जिसने जो किया,उसे देखा भर है किसी साक्षी की तरह
अगर तुम अपनी किसी भीतरी नज़र से आसमान को देखो-
तो सुनाई देंगी तुम्हे उसकी अस्फूट ध्वनियाँ
और उन ध्वनियों में अन्तर्निहित सारगर्भित अर्थ !!
आसमान तुम्हारी तरह शब्द नहीं बोलता-
लेकिन जब वह बोलता है-
तो ऐसा नहीं हो सकता कि तुम, "तुम" रह जाओ !!
आसमान को अगर तुम महसूस कर पाओ
तो वह तुम्हे "तुम" नहीं रहने देता,
जो कि तुम हो भी नहीं, और आसमान पर
प्रत्येक क्षण तुम्हारी पदचाप लिखी जा रही है !!
आसमान पर लिखा हर इक हर्फ़ अमिट है और
हर क्षण इक नया निशां बनता जा रहा है,
तुम्हारे अपने ही हर कर्म से,कर्मों की श्रृंखला से-
कर्म का फल मिल जाना ही कर्म का ख़त्म हो जाना नहीं है
कर्मफल के बाद भी कर्म है और उसके के उसके बाद भी कर्म !!
कर्म तो अनंत कर्मों की एक अंतहीन झड़ी है
और तुम-सब (हम) उसकी इक छोटी-सी कड़ी !!
तुम अपने से ठीक पहले वाले बुलबुले के ठीक बाद के बुलबुले हो !!
और तुम्हारे बाद के बुलबुले तुम्हारी खुद की संतानें !!
ए मित्र-
इसलिए तुन्हारे कर्मों में ही सन्निहित है-
तुम्हारी अपनी ही संतानों का आगत,भविष्य !!
तुम जो कुछ यहाँ पर कर रहे हो-
उससे निश्चित हो रहा है तुम्हारी संतानों का भी कर्मफल,
इसलिए मेरा तुम्हे यह बताना भी तो फिजूल ही होगा-
कि तुम्हे धरती पर अपने बच्चों के लिए क्या करना चाहिए;
धरती को बचाने के लिए क्या करना चाहिए,
और धरती को स्वर्ग बनाने के लिए क्या.....!!??
तुम जानो-ना जानो....देखो-ना देखो....मगर
आसमान तुम्हे देख रहा है-तुम्हारे ही कहीं भीतर से !!
() राजीव कुमार थेपड़ा

 
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