करते हैं आरम्भ उत्सव की आख़िरी धुन ....जी हाँ , आख़िरी जश्न , पर उदास नहीं होना है . क्योंकि इस उत्सव ने हमें नए सम्बन्ध, नए आयाम, नयी संभावनाएं दी हैं ....और आज यूँ भी उत्सवी मंगल है, लखनऊ के नवाबों के समय से यह पूरा महीना भक्ति उत्सव से ओत -प्रोत होता है , तो हम क्यूँ रहें पीछे ........
रुकिए, रुकिए ... अहा , क्या नजारा है . मंच पर खुशबू प्रियदर्शिनी और अपराजिता कल्याणी मंगल गीत के साथ आई हैं, अहो भाग्य इस उत्सव का , 'रथ चढ़ी रघुनन्दन आवत हैं '
3 comments:
स्वागत है स्वरों का , और इस अनमोल समापन का
सुन कर मन प्रसन्न हुआ.बधाई।
क्या समा बाँधा है,अच्छा लगा सुन कर.
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