प्रभु तुम और मैं !
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कस्तूरी मृग बन मैंने ज़िन्दगी गुजारी
प्रभु तुम तो मेरे अन्दर ही सुवासित रहे !
मैं आरती की थाल लिए
व्यर्थ खड़ी रही
प्रभु तुम तो मेरे सुकून से आह्लादित रहे !
मेरे दुःख के क्षणों में
तुमने सारी दुनिया का भोग अस्वीकार किया,
तुम निराहार मेरी राह बनाने में लगे रहे
और मैं !
भ्रम पालती रही कि -
आख़िर मैंने राह बना ली !
मैं दौड़ लगाती रही,
दीये जलाती रही
- तुम मेरे पैरों की गति में,
बाती बनाती उँगलियों में स्थित रहे !
जब-जब अँधेरा छाया
प्रभु तुम मेरी आंखों में
आस-विश्वास बनकर ढल गए
और नई सुबह की प्रत्याशा लिए
गहरी वेदना में भी
मैं सो गई -
प्रभु लोरी बनकर तुम झंकृत होते रहे !

.............
प्रभु तुमने सुदामा की तरह मुझे अनुग्रहित किया
मुझे मेरे कस्तूरी मन की पहचान दे दी !


() रश्मि प्रभा
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मेरे बारे :
सौभाग्य मेरा की मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है। अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं...मैं ब्लोगोत्सव के संयोजन -संचालन में रवीन्द्र जी को सहयोग कर रही थी इसलिए मुझे अपनी कविताओं को प्रस्तुत करने का भरपूर समय नहीं मिल पाया , अब समय मिला है तो ब्लोगोत्सव के बाद ही सही आपके समक्ष उपस्थित हूँ अपनी एक छोटी सी कविता लेकर !
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7 comments:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा… 11 जून 2010 को 11:56 am बजे

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना प्रेषित की है। बधाई।

vandana gupta ने कहा… 11 जून 2010 को 12:11 pm बजे

sach insaan kasturi mrig ban zindagi guajra jata hai magar itna hi nahi pahchan pata...........bahut hi sundar rachna.

Jandunia ने कहा… 11 जून 2010 को 1:10 pm बजे

सुंदर पोस्ट

mala ने कहा… 11 जून 2010 को 5:59 pm बजे

बहुत खूबसूरत कविता

पूर्णिमा ने कहा… 11 जून 2010 को 6:00 pm बजे

भावपूर्ण रचना,बधाई।

गीतेश ने कहा… 11 जून 2010 को 6:04 pm बजे

vaah, blogotsav ke baad kee rachanaayen itani sundar hai ki man ko mohit kar gayi....badhayi

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा… 11 जून 2010 को 11:46 pm बजे

अच्छी कविता। भावपूर्ण्।

 
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