कुछ धागे , और कल्पना के रंग ॥
इन के मेलजोल से मैंने बनाया है यह भित्ति चित्र...
जब कभी देखती हूँ,
अपना गाँव याद आ जाता है॥
वो वक़्त भी कैसा था,
सुबह का सुनहरा आसमाँ,
हमेशा अपना लगता था!
तेरा हाथ हाथों में रहता,
शाम का रेशमी गुलाबी साया,
कितना पास लगता था !
रंगीन रूई से टुकड़ों में चेहरा,
खोजना एक दूजे का,
बेहद अच्छा लगता था !
आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....
शाम का सुरमई गुलाबी साया,
लगता है कितना सूना,
सूना!रातें गुज़रती हैं,
तनहा,
तनहा...
() शमामुझे इस बात का गर्व है कि मैं ब्लोगोत्सव की कई महत्वपूर्ण प्रस्तुति में शामिल रही हूँ .चाहे संस्मरण हो अथवा परिचर्चा ....किन्तु मेरी कोई कविता उत्सव में शामिल न हो सकी ...आज इस प्रस्तुति के माध्यम से वह तमन्ना भी पूरी हुई .....ब्लोगोत्सव में शामिल होना एक सुखद अनुभूति रही ...परस्पर विचारों को बांटने का हम सभी को व्यापक मंच मिला यह बड़ी बात है !
========================================================
10 comments:
बहुत खूबसूरत कविता और साथ ही भित्ति चित्र भी
सुंदर पोस्ट
आभार इस कविता को प्रस्तुत करने का..अच्छी पोस्ट!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
बहुत खूबसूरत कविता
भावपूर्ण रचना,बधाई।
vaah, blogotsav ke baad kee rachanaayen itani sundar hai ki man ko mohit kar gayi....badhayi
bahut sundar kavita....
बहुत ही भावभीनी रचना।
भावपूर्ण !
एक टिप्पणी भेजें