नमस्कार
मैं रश्मि प्रभा
लेकर आई हूँ आज
आपके लिए विशेष गीतों से भरी शाम !
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आज की आख़िरी मुलाकात का नाम दें इसे या कहें इसे एक बीजारोपण कई परिवेशों का ... अब इंतज़ार होगा इनके वटवृक्ष होने का , हर मौसम का, नयी कोपलों का --- यह अंत नहीं आरम्भ है अपनी भाषा ,अपनी भावनाओं के विस्तार का . तो चलिए इस पूरे दिन को हम नए रंगों से, नई संभावनाओं से भर दें ..
आओ हुजुर (स्वप्न मञ्जूषा शैल).....................
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करते हैं आरम्भ उत्सव की आख़िरी धुन ....जी हाँ , आख़िरी जश्न , पर उदास नहीं होना है . क्योंकि इस उत्सव ने हमें नए सम्बन्ध, नए आयाम, नयी संभावनाएं दी हैं ....और आज यूँ भी उत्सवी मंगल है, लखनऊ के नवाबों के समय से यह पूरा महीना भक्ति उत्सव से ओत -प्रोत होता है , तो हम क्यूँ रहें पीछे ........
रुकिए, रुकिए ... अहा , क्या नजारा है . मंच पर खुशबू प्रियदर्शिनी और अपराजिता कल्याणी मंगल गीत के साथ आई हैं, अहो भाग्य इस उत्सव का , 'रथ चढ़ी रघुनन्दन आवत हैं '
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क्या समा बाँधा है विशिष्ट सलाहकार एडवोकेट मुहम्मद शुएब जी, प्रायोजक सलाहकार एडवोकेट रणधीर सिंह 'सुमन' , साहित्यिक सलाहकार अविनाश वाचस्पति , सांस्कृतिक सलाहकार जाकिर अली 'रजनीश', कार्यक्रम समन्वयन सलाहकार सर्वत एम.जमाल, रश्मि प्रभा, ललित शर्मा, एवं सलीम खान ... तकनीकी सलाहकार विनय प्रजापति 'नज़र' मुख्य संपादक रवीन्द्र प्रभात ने , हर आँखें कह रही हैं .
('साया' फिल्म के इस गाने को गूगल से लिए गए चित्रों के साथ संवारा है खुशबू प्रियदर्शिनी ने )
उसका नूर और पटना की इशिता सिन्हा की मीठी आवाज़ .... बन्द आँखों में कल्पना का विस्तृत आकाश लिए चलिए कुछ मीठा हो जाये ....
खोलिए आँखें खोलिए , देखिये ये क्या माज़रा है, जी हाँ देश की नई सशक्त आवाज़ श्रेया घोषाल को गीतों की लय में बांधकर आई हैं पुणे सिम्बायोसिस की अपराजिता कल्याणी .... इनको एक सूत्र में पिरोने का श्रेय जाता है खुशबू प्रियदर्शिनी को ... परिकल्पना का हँसता हुआ कारवां श्रेया घोषाल और अपराजिता कल्याणी के साथ
के नाम .............
देश, विदेश .... मेरा शहर, तेरा शहर सब रंग गए हैं उत्सवी रंग में . सबके होठों पर गीत मचल उठे हैं ... कुछ इस तरह-
बिहार का ज़िक्र तो हर जगह होता है, तो यहाँ भी आया है बिहार ......... बिहार की थाप लिए खडी हैं मधुबाला जी अपने समूह के साथ , रोक नहीं पायेंगे आप खुद को , गा उठेंगे उनके साथ....( बाजे अवध ....)
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यूँ तो हमारी अपनी हैं अदा जी , अदा ही अदा है जिनका अंदाज... लिखने की अदा , बोलने की अदा, गाने की अदा . मधुबाला जी को जाते देख इनकी अदा ने कुछ यूँ कहा है ............
(जाइये आप कहाँ जायेंगे)
समय थम गया है , मंच पर मौजूद है हमारी आर्मी..... जी हाँ ये यहाँ आने से खुद को रोक नहीं पाए हैं ....
देखें ये जूनून ........
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हिंदी हैं हम ... उत्सव ने यह राष्ट्रीय परिधान दिया , और इस परिधान में सजी नारी के बोल
अदभुत , अविस्मरनीय , अलौकिक , .. उत्सव के समापन की घोषणा किस तरह हो, यहाँ अदा जी का अनुरोध भी हमें रोक रहा है...
(चलते चलते मेरे ये गीत)
(ये लम्हा फिलहाल जी लेने दे)
समय विदा लेने को आतुर है एक नई सुबह के निनाद के लिए .... फिर होगा एक मंच, मिलेंगे हम , होगा एक उत्सव हमारी कृतियों का ,जुड़ेंगे नए कदम हमारे साथ और कहेंगे ...
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ये दिन फिर आये या न आये, ये मौसम फिर आये या न आये मगर ब्लोगोत्सव की ये यादें कभी भुलाई नहीं जा सकेगी ...एक अमिट छाप बनकर छाती रहेगी मौसम की आती-जाती रफ़्तार पर .....यह मेरा विश्वास है .....कहिये आप क्या कहते हैं इस बारे में ? आज का यह सांस्कृतिक उत्सव कैसा लगा अवश्य अवगत कराबें !
ये दिन फिर आये या न आये, ये मौसम फिर आये या न आये मगर ब्लोगोत्सव की ये यादें कभी भुलाई नहीं जा सकेगी ...एक अमिट छाप बनकर छाती रहेगी मौसम की आती-जाती रफ़्तार पर .....यह मेरा विश्वास है .....कहिये आप क्या कहते हैं इस बारे में ? आज का यह सांस्कृतिक उत्सव कैसा लगा अवश्य अवगत कराबें !
20 comments:
Bahut sundar
sama bandhne ke liye Rashmi di ........tumhe bahut bahut dhanyawad........:)
bahut badhiya raha.
वाह बहुत सुन्दर लगा!
great
behtar !!!!!!!!!
ऑडियो तो सुनाई नहीं दे रहा.... अच्छा क्या लगा सबको?
लाजवाब प्रस्तुतीकरण.. पर अफ़सोस कि विडियो लिंक के अलावा और कोई भे लिंक काम ही नहीं कर रहा.. विडियो में की गई मिक्सिंग अच्छी है. साया वाला गीत तो मेरा पसंदीदा है.. आभार..
मैं तो चंद शब्द ही कहूंगा कि यह अंत नहीं शुरूआत है। हिन्दी ब्लॉगिंग के स्वस्थता की ओर बढ़ते दमदार कदम। आज समापन नहीं है, आज सारे माहौल में समाया अपनापन है। इसी अपनेपन की तलाश में सब जुटे हैं। विरोधी विरोधी में अपनापन तलाश रहा है और समर्थक समर्थक में। मतलब अपनापन एक ऐसी धुरी है जिसकी सबको तलब है और यह तलब पूरी होती रहे। अगर इसे नशा कहा जाए तो यह नशा पूरा होता रहे। अपनेपन का नशा वही महसूस कर सकता है। जिसने सारे जग को अपना माना है। जिसका मन अपनेपन से जगमगा रहा है। कितने ही बाण छोड़े जाएं पर वो तिलमिलाता नहीं। अपनापन वो पत्ता है जो पेड़ से पौधे से टूट तो जाता है, गिरता भी है, झड़ता भी है परन्तु फिर से मिट्टी में मिलकर, रच बस कर, रूप नया धर कर, जड़ों के रास्ते पुन: तने पर तन जाता है।
खेद है कि किसी पारिवारिक व्यस्तता के चलते मैं अभी आधे घंटे पूर्व ही आ पाया हूं। पर इस पूरे समारोह का आनंद लेकर ही लौटूंगा और अपने मन में इसकी सुमधुर धुन जीवन भर महसूस करूंगा।
प्रिय श्रेया घोषाल जी की आवाज सुनकर उनसे पिछले बरस हुई मुलाकात स्मरण हो आई है, जब राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर उनसे और उनकी माताजी और अन्य परिजनों से खूब बातचीत हुई।
मैं इस समारोह में शिरकत करने वाले सभी हिन्दी ब्लॉगर साथियों का मन से आभारी हूं कि आप सबने अन्यत्र व्यस्तता के होते हुए भी अपनी रचनाएं परिकल्पना ब्लॉगोत्सव 2010 में भेजीं और भविष्य में भी आप इसी प्रकार मन से जुड़े रहेंगे।
भाई रवीन्द्र प्रभात जी, उनकी पूरी टीम एडवोकेट मुहम्मद शुएब, एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन, विशेषकर प्रिय जाकिर अली रजनीश जी, प्रिय सलीम खान जी, प्रिय सर्वत एम. जमाल जी, रश्मि प्रभा जी, ललित शर्मा जी और तकनीकी सलाहकार विनय प्रजापति नजर जी का भी आभार प्रकट करता हूं। वैसे आप सबके द्वारा किया गया यह सत्कार्य हिन्दी ब्लॉगिंग उत्थान में एक मील का पत्थर साबित हो गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है। जिसे आप शीघ्र ही लोकसंघर्ष पत्रिका के विशेषांक के रूप में प्रकाशित देख पायेंगे।
सादर/सस्नेह
मधुर गीतों और कविताओं के साथ समाप्त बहुत लुभावना रहा यह परिकल्पना -उत्सव ...
बधाई व शुभकामनायें ...!!
आपका प्रस्तुतिकरण इतना सशक्त है कि ये अंत तो हो ही नहीं सकता है ये आरंभ है ब्लॉग्गिंग जगत में एक नए आयाम का. ये प्रयोग बहुत सफल रहा, हमने सबको जाना और सबने एक दूसरे को. ये भी हैं हमारी जमात में. चाहे कम मिले या ज्यादा. अपनी उपस्थिति तो दर्ज करा ही गए. इन्तजार फिर किसी नए प्रयोग का...............
Shaandar.
अदभुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय.... जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
वाह...रश्मि जी मज़ा आ गया ..एक तो आपका संचालन और एक से एक कलाकार.... बहुत अच्छा लगा...
लुभावना रहा यह परिकल्पना -उत्सव ...
बधाई व शुभकामनायें ...!!
इन्तजार फिर किसी नए प्रयोग का...............
आज समापन नहीं है, आज सारे माहौल में समाया अपनापन है।.... जितनी प्रशंसा की जाए कम है।बधाई व शुभकामनायें ...!!
Bahut sundar
बधाई व शुभकामनायें ...!!
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
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