दीप्ति मुस्कुराती हैं.....!
दुर्गा पूजा एवं विजयादशमी पर्व की मंगल कामनाओं के साथ प्रस्तुत है श्री दीपक शर्मा की कविताएँ-
"ज़ुल्म कितना ही सबल हो,तम हो कितना ही प्रबल
झूट,फरेब,मक्कारियों के,चाहे संघठित कितने ही दल,
जाल कितना ही महीन चाहे,मिलकर बुने कुसंगतियाँ,
और चाल कैसी भी चले, हो एकजुट दुश्प्रव्रतियाँ
पर सत्य की जब एक किरण,सिर अपना कहीं उठाती है
चीर कर सीना तिमिर का,“दीपक” दीप्ति मुस्कुराती हैं
दीप्ति मुस्कुराती हैं
दीप्ति मुस्कुराती हैं
दीप्ति मुस्कुराती हैं.....!
()दीपक शर्मा
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4 comments:
चीर कर सीना तिमिर का,“दीपक” दीप्ति मुस्कुराती है॥ सुंदर प्रस्तुति।
प्रस्तुति बहुत ही बढ़िया रही!
विजयादशमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
सुंदर प्रस्तुति।
विजयादशमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
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