श्री देवमणि पाण्डेय का 4 जून 1958 को अवध की माटी में जन्म। ठेंठ सुल्तानपुरी। हिंदी और संस्कृत के सहज साधक। कवि तो हैं ही मंच संचालन के महारथी। कवि सम्मेलन और सुगम संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों का सहज-संचालन। दो कविता संग्रह प्रकाशित-दिल की बातें और खुशबू की लकीरें। पिंजर, हासिल और कहाँ हो तुम जैसी कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। पिंजर के बहुचर्चित गीत "चरखा चलाती माँ" को साल 2003 के लिए बेस्ट लिरिक ऑफ दि इयर अवार्ड। अवध में ब्लोगोत्सव की धूम मची हो और देवमणि जी की उपस्थिति न हो ऐसा कैसे हो सकता है ? देवमणि जी रहते हैं मुम्बई में और उनसे साक्षात्कार के लिए मुम्बई के किसी ब्लोगर को लगाना आवश्यक था , ऐसे में ब्लोगोत्सव का साथ दिया श्री बसंत आर्य ने ! बसंत आर्य ने उनसे ब्लोगोत्सव के लिए सीधी बात की जिसे आज हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं --


(1)आपकी नज़रों में साहित्य-संस्कृति और समाज का वर्त्तमान स्वरुप क्या है ?
साहित्य-संस्कृति और समाज का वर्त्तमान स्वरुप बहुत हीं सकारात्मक है। आज हमारे पास साधन और सूचना की न्यूनता नहीं है, इसलिए हम साहित्य में हनुमान कूद की परिकल्पना को मूर्तरूप दे सकते हैं !


(2) हिंदी ब्लोगिंग की दिशा-दशा पर आपकी क्या राय है ?
हिंदी ब्लोगिंग विकास की ओर तेजी से अग्रसर है। आज हम अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति को संपूर्ण समष्टि की अभिव्यक्ति में परिवर्तित करने की क्षमता विकसित की है तो उसमें हिंदी ब्लोगिंग का विशेष योगदान है .


(3)आपकी नज़रों में हिंदी ब्लोगिंग का भविष्य कैसा है ?
हिंदी ब्लोगिंग का भविष्य उज्जवल है। बाढ़ के पानी के साथ कचरा अपने आप बाहर निकल जाता है।

(4) हिंदी के विकास में इंटरनेट कितना कारगर सिद्ध हो सकता है ?
इंटरनेट ने पूरी दुनिया के हिंदी रचनाकारों को अपरिचय के माहौल से बाहर निकाल दिया है।

(5) आपने ब्लॉग लिखना कब शुरू किया और उस समय की परिस्थितियाँ कैसी थी ?
फरवरी 2010 से मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया है । उस समय भी परिस्थितियाँ अच्छी थीं, आज भी अच्छी है । अब जहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होगी वहां हर कोई अपने-अपमे ढंग से कार्य करेगा और प्रत्येक का कार्य प्रत्येक को अच्छा लगे यह संभव नहीं ....इसलिए परस्थितियाँ कभी भी निरपेक्ष नहीं होती जैसे कल भी नहीं थी वैसे ही आज भी नहीं है !

(6) एक साहित्यकार जो गंभीर लेखन करता है क्या उसे ब्लॉग लेखन करना चाहिए या नहीं ?
अपनी सोच और अनुभव को शेयर करने के लिए एक साहित्यकार को भी ब्लॉग लेखन करना चाहिए।

(7) विचारधारा और रूप की भिन्नता के वाबजूद साहित्य की अंतर्वस्तु को संगठित करने में आज के ब्लोगर सफल हैं या नहीं ?
सफल हैं । अंतर्वस्तु का विस्तार हुआ है।

(8) आज के रचनात्मक परिदृश्य में अपनी जड़ों के प्रति काव्यात्मक विकलता क्यों नहीं दिखाई देती ?
कविता ग्लोबल हो गई है। जड़ों के प्रति विकलता दिखाने की ज़रूरत नहीं रही।

(9) आपकी नज़रों में साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार क्या होना चाहिए ?
साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार अनुभव और एहसास होना चाहिए ?


(10) आज की कविता की आधुनिकता अपनी देसी जमीन के स्पर्श से वंचित क्यों है ?
इस लिए कि कविता कॉरपोरेट कल्चर के क़रीब पहुँच गई है।

(11) क्या हिंदी ब्लोगिंग में नया सृजनात्मक आघात देने की ताक़त छिपी हुई है ?
हाँ, अगर संजीदा लोग इससे जुड़ें।

(12) कुछ अपनी व्यक्तिगत सृजनशीलता से जुड़े कोई सुखद संस्मरण बताएं ?
मेरे ब्लॉग http://devmanipandey.blogspot.com/ पर कविता पढ़िए- ‘कुरार गाँव की औरतें’।

(13) कुछ व्यक्तिगत जीवन से जुड़े सुखद पहलू हों तो बताएं ?
क़तील शिफ़ाई का एक शेर है-

"कैसे न दूँ क़तील दुआ उसके हुस्न को
मैं जिसपे शेर कहकर सुख़नवर बना रहा"

(14) परिकल्पना ब्लॉग उत्सव की सफलता के सन्दर्भ में कुछ सुझाव देना चाहेंगे आप ?
इसे विचारों का साझा मंच बनाएं। गुणवत्ता का ध्यान रखें।

(15) नए ब्लोगर के लिए कुछ आपकी व्यक्तिगत राय ?
ब्लॉगिंग के लिए लॉज़िक ज़रूरी है। जो भी लिखें सकारात्मक लिखें, क्योंकि सकारात्मक लेखन ही ब्लोगिंग की सबसे बड़ी ताकत बनेगी ऐसा मेरा मानना है !

() प्रस्तुति : बसंत आर्य
http://thahakaa.blogspot.com/
 
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