श्री ललित शर्मा जी आपका परिचय भारत के प्रसिद्ध चित्रकार एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व डॉ. डी. डी. सोनी जी से करवाने जा रहे हैं । इन्होने चित्रकला के क्षेत्र मे नए सोपान गढे हैं तथा अपनी जीवन यात्रा मे काफ़ी संघंर्ष किया है। परम्परागत रुप से की जाने वाली चित्रकारी से लेकर आधुनिक चित्रकला के क्षेत्र मे इन्होने हाथ आजमाया तथा सफ़लता भी मि्ली। आज इनकी पेंटिग लाखों में बिकती है।
इनसे बहुत सारे नए चित्रकार चित्रकला की बारीकियाँ सीखने आते हैं, उन्हे सहज भाव से समझाते हैं। इन्होंने बहुत सारी विधाओं पर काम किया है जैसे लैंड स्केप, पोट्रेट, लाईव, मार्डन पेंटिग,मिनिएचर, ड्राईंग प्रोसेस, पैचवर्क, नाईफ़ पैंटिग इत्यादि। जब हम इनके स्टुडियों मे पहुँचे तो देखा पेंटिंग्स का अम्बार लगा है। शायद ही ऐसा कोई विषय होगा जिस पर इनकी तुलिका ने अपना कमाल नही दिखाया होगा। आप चित्र कला के क्षेत्र मे सन्1962 से साधना रत हैं। इन्होने भारत के कई प्रसिद्ध चित्रकारों के साथ काम किया है।
आज ये हमारे ब्लोगोत्सव के ख़ास मेहमान हैं और विशेष आग्रह पर यहाँ उपस्थित हुए हैं . आज हम खुलकर इनसे खूब बात करेंगे और साथ में समय-समय पर आपको ले चलेंगे कार्यक्रम स्थल की ओर अपने प्रतिभावान चिट्ठाकारों की रचनाशीलता से परिचय कराने ....तो आईये बातचीत का यह क्रम आगे बढाऊँ उससे पहले चार पंक्तियाँ चित्रकार के विषय मे कहना चाहता हूँ ।
"दिल का दर्द आंखों से नीचो कर इत्र बनता है,
लाखों में कोई एक हमदर्द,सच्चा मित्र बनता है।
गालिब की गजल,मीरा का विरह रगों मे घोलकर,
कतरा कतरा आंसुओं से ही एक चित्र बनता है।।"
लाखों में कोई एक हमदर्द,सच्चा मित्र बनता है।
गालिब की गजल,मीरा का विरह रगों मे घोलकर,
कतरा कतरा आंसुओं से ही एक चित्र बनता है।।"
डी डी सोनी जी आपका स्वागत है ब्लोगोत्सव-२०१० में
जी धन्यवाद !
आपने चित्रकारी कब से प्रारंभ की?
ललित भाई! आज बड़ा सौभाग्य है कि एक आर्टिस्ट दुसरे आर्टिस्ट का ईंटरव्यु ले रहा है, नही तो जहां तक देखा जाता है या तो प्रत्रकार इंटरव्यु लेता या ऐसा व्यक्ति इंटरव्यु लेता है जिसको इस विधा के विषय मे कोई जानकारी नही है। वह ऐसे सवाल पुछ देता है कि जिसका संबंध ही इस विधा से नही है और सही जानकारी समाज तक नही पहुँच पाती -मैं खुश हूँ कि एक कलाकार ही एक कलाकार का इंटरव्यु ले रहा है।
अब आपके प्रश्न की ओर चलते हैं--जब मै स्कुल मे पढता था तो पाठ्य पुस्तक निगम की किताबों मे चित्र बने होते थे। जो कविताओं के साथ होते थे तो मै सोचता था कि इस कविता के साथ जो चित्र बना है वह सही नही है। इससे भी कुछ अच्छा बन सकता है, कभी गणेश जी मुर्ति देखता था तो लगता था कि यह तो ऐसे बनाई जा सकती थी, कहीं कैलेंडर देखता था तो लगता था कि इससे और भी अच्छा किया जा सकता था, मतलब कहीं संतुष्टि नही मिलती थी, उसको मै जब भी कापी करता था उसमे अपनी सोच भरने का प्रयास करता था, मेरी रुची मुर्ती कला मे भी रही है, मै जब देखता था तो मुझे मुर्त और अमुर्त के बीच एक गहरी खाई दिखाई देती थी। आम दर्शकों को सुगढ मु्र्तियाँ भाती हैं, लेकिन कोई जाने अनजाने अधुरी मुर्ती की भी तारीफ़ कर देता था तो लगता था कि ऐसा क्यों है लेकिन अधुरी मुर्तियाँ सोचने के लिए कई दिशाएं देती है जबकि पुर्ण मुर्ती में तो कार्य खत्म हो चु्का है उसमे आगे सोचने के लिए कुछ बचा ही नही है। फ़िर इस तरह हमे एक बहुत बड़ा मैदान मिल गया काम करने के लिए।
सोनी जी आपने चित्रकला के साथ मुर्तिकला पर काम किया, आपने बहुत सारे सेट भी डिजाइन किए-मेरा सवाल aयह है कि आपने इसकी कही से विधिवत शिक्षा ली है या ईश्वर प्रदत्त कौशल है?
जब मै काम करने लगा तो लोग कहते थे कि मैं परम्परा से हट कर कुछ अलग कर रहा हुँ यह ईश्वर का वरदान है जो मुझे प्राप्त हुआ है। चित्रकार के रुप मे आप अपना मुकाम हासिल कर सकते हैं। दुनिया मे इस क्षेत्र मे क्या हो रहा है इसकी जानकारी मुझे पत्रिकाओं और रेड़ियो से मिल पाती थी। टीवी तो बाद मे आया, मेरा जन्म नैनपुर मंडला जिला मध्यप्रदेश मे हुआ।
खुशी की बात यह थी कि उस आदि्वासी क्षेत्र मे रेल्वे का विकास हो रहा था, मैं शहर मे रहता था इस तरह मुझे तीनो क्षेत्रों की जानकारी थी। मै तीनो आधुनिक तकनीक, आदिवासी परम्परा तथा कस्बाई रहन-सहन से परिचित था। इस तरह मैने तीनो की चित्रकारी देखी तो पाया कि मुझे विधिवत शिक्षा लेना बहुत जरुरी है, एक ही मंडप के नीचे कितने तरह की विधाएं चल रही हैं आर्टिस्ट क्या-क्या काम कर रहे हैं पुरी दुनिया मे। सबसे पहले तो मेरे गुरु थे स्व: अनादि अधिकारी जो नैन पुर मे थे। जे जे स्कुल ऑफ़ आर्ट से उन्होने 1952मे डिप्लोमा कि्या था। मै उनके कलाजीवन आश्रम मे जाकर सीखता था। उनकी छाप मेरे जीवन मे ऐसी पडी कि घृणा-अपमान-स्वार्थ शब्द को डिक्सनरी से हटा देना चाहिए क्योंकि यह मनोभाव फ़िर आपके काम मे भी परिलक्षित होता है।
साक्षात्कार अभी जारी है ........
1 comments:
बहुत ही बढ़िया सिलसिला चल पड़ा है।
सही है; "खग जाने खग ही की भाषा"
कला का मरम कला कार ही जान सकते हैं
अतएव सोनी जी एवम हमारे दुलारे महराज ललित भाई को बहुत बहुत शुभकामनायें।
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