चिट्ठाकारी में अपने ख़ास अंदाज़ और स्पस्टवादिता के लिए मशहूर हास्य कवि एवं सपर्पित चिट्ठाकार श्री अलवेला खत्री परिकल्पना के लिए विशेष साक्षात्कार देते हुए सीधी बात के अंतर्गत कहा कि- "साहित्य अकादमी की तरह ब्लोगिंग अकादमियां भी बननी चाहियें , जिस प्रकार देहात तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले हिन्दी प्रकाशनों को विशेष मदद मिलती है उसी तर्ज़ पर दूर दराज़ तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के ब्लोगर्स को विशेष सहायता मिलनी ही चाहिए।" प्रस्तुत है लखनऊ स्थित मेरे निवास पर हुई उनसे सीधी बात की विस्तृत रिपोर्ट -



(1)आपकी नज़रों में साहित्य-संस्कृति और समाज का वर्त्तमान स्वरुप क्या है ?


साहित्य-संस्कृति और समाज का वर्त्तमान स्वरुप बहुत सकारात्मक है।


(2) हिंदी ब्लोगिंग की दिशा-दशा पर आपकी क्या राय है ?

हिंदी ब्लोगिंग विकास की ओर अग्रसर है, हिंदी ब्लोगिंग में जुझारू रचनाकारों का आगमन हो चुका है और आज की हिंदी ब्लोगिंग पूरी तरह समृद्धि की ओर अग्रसर है ।

(3)आपकी नज़रों में हिंदी ब्लोगिंग का भविष्य कैसा है ?

हिंदी ब्लोगिंग का भविष्य उज्जवल है। बाढ़ के पानी के साथ कचरा अपने आप बाहर निकल जाता है।

(4) हिंदी के विकास में इंटरनेट कितना कारगर सिद्ध हुआ है ?

इंटरनेट ने पूरी दुनिया के हिंदी रचनाकारों को अपरिचय के माहौल से बाहर निकाल दिया है।

(5) आपने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया उस समय की परिस्थितियाँ कैसी थी ?

मैंने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया उस समय परिस्थितियाँ अच्छी थींऔर आज की परिस्थितियाँ उससे भी अच्छी है और आगे बहुत अच्छी होगी यह मेरा विश्वास है ।

(6) एक साहित्यकार जो गंभीर लेखन करता है क्या उसे ब्लॉग लेखन करना चाहिए या नहीं ?

अपनी सोच और अनुभव को शेयर करने के लिए मेरे विचार से एक साहित्यकार को ब्लॉग लेखन अवश्य करना चाहिए।
(7) विचारधारा और रूप की भिन्नता के वाबजूद साहित्य की अंतर्वस्तु को संगठित करने में आज के ब्लोगर सफल हैं या नहीं ?

सफल हैं । अंतर्वस्तु का विस्तार हुआ है।

(8) आज के रचनात्मक परिदृश्य में अपनी जड़ों के प्रति काव्यात्मक विकलता क्यों नहीं दिखाई देती ?

कविता ग्लोबल हो गई है। जड़ों के प्रति विकलता दिखाने की ज़रूरत नहीं रही।

(9) आपकी नज़रों में साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार क्या होना चाहिए ?

साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार अनुभव और एहसास होना चाहिए ?

(10) आज की कविता की आधुनिकता अपनी देसी जमीन के स्पर्श से वंचित क्यों है ?

इस लिए कि कविता कॉरपोरेट कल्चर के क़रीब पहुँच गई है।

(11) क्या हिंदी ब्लोगिंग में नया सृजनात्मक आघात देने की ताक़त छिपी हुई है ?

हाँ, अगर संजीदा लोग इससे जुड़ें।

(12) परिकल्पना ब्लॉग उत्सव की सफलता के सन्दर्भ में कुछ सुझाव देना चाहेंगे आप ?

इसे विचारों का साझा मंच बनाएं। गुणवत्ता का ध्यान रखें।

(13) नए ब्लोगर के लिए कुछ आपकी व्यक्तिगत राय ?

खूब लिखें, खूब पढ़ें , खूब विचारों का आदान-प्रदान करें . टिप्पणियों पर ज्यादा ध्यान न दें क्योंकि टिप्पणियाँ सफलता अथवा असफलता की कसौटी नहीं होती . केवल सृजन पर ध्यान दें. वरिष्ठ चिट्ठाकारों का सम्मान करें . उनके विचारों और अनुभवों को आत्मसात करें ......हिंदी के उन्नयन की दिशा में कार्य करें और किसी के लिए भी मन में दुर्भावना न पालें . यानी किसी से भी आपकी मतभिन्नता हो सकती है किन्तु कभी भी मन भिन्नता की स्थिति न आने दें ...मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं !
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6 comments:

निर्मला कपिला ने कहा… 6 अक्तूबर 2010 को 11:47 am बजे

ांलबेला जी से साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा और उनकी ये बात सही है कि साहित अकेदमी की तरह ब्लागिन्ग अकेदमी भी होनी चाहिये। इस से ब्लागर्ज़ मे और अच्छा लिखने का और अपनी समस्याओं को सुलझाने का अवसर मिलेगा। आपका प्रयास बहुत प्रशंसनीय है इससे कई जानकारियाँ मिलती है। अलेबेला जी को और आपको शुभकामनायें आभार।

मनोज सिंह ने कहा… 6 अक्तूबर 2010 को 6:10 pm बजे

साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा,अलेबेला जी को और आपको शुभकामनायें आभार।

mala ने कहा… 6 अक्तूबर 2010 को 6:11 pm बजे

आपका प्रयास बहुत प्रशंसनीय है इससे कई जानकारियाँ मिलती है।

गीतेश ने कहा… 6 अक्तूबर 2010 को 6:12 pm बजे

ये बात सही है कि साहित अकेदमी की तरह ब्लागिन्ग अकेदमी भी होनी चाहिये। अलेबेला जी को
आभार।

पूर्णिमा ने कहा… 6 अक्तूबर 2010 को 6:13 pm बजे

बहुत अच्छा लगा साक्षात्कार !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा… 6 अक्तूबर 2010 को 8:19 pm बजे

ब्लोगिंग अकादमी न ही बने तो बेहतर है ।

साहित्य के नाम पर बनी अकादमियां जिस तरह से अवसरवादियों के क़ब्जे में आई हुई हैं , वही हश्र ब्लोगिंग अकादमी का होना है ।
कुछ मठाधीश और उनके चेले चमाटे जिस तरह लॉबिंग से साहित्य अकादमियों में धड़ल्ले से मनमानी कर रहे हैं , उसके कारण सच्चे साहित्यकारों का कितना भला हो रहा है ?

भाईसाहब !
नाम , मान-सम्मान , अर्थ लाभ और अन्य फ़ायदों जैसी बात आते ही भले भलों का चारित्रिक पतन होना , और उसके परिणामस्वरूप असली हक़दारों की गर्दन काट देना आम बात है यहां ।

आशा है बुरा नहीं मानेंगे … :)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

 
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