श्री समीर लाल 'समीर' हिंदी चिट्ठाजगत के सर्वाधिक समर्पित,लोकप्रिय और सक्रिय हस्ताक्षर हैं . लोकप्रियता के मामले में इन्हें हिंदी चिट्ठाजगत में वही सम्मान प्राप्त है जो भारतीय संगीत में ऐ. आर. रहमान को .साहित्य की हर विधाओं में लिखने वाले श्री समीर लाल जी का व्यंग्य जहां दिल की गहराईयों में जाकर गुदगुदाता है वहीं इनकी कविता अपनी संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के कारण चिंतन के लिए विवश कर देती है .नए चिट्ठाकारों के लिए आदर्श श्री समीर लाल जी की लोकप्रियता का पैमाना यह है कि हर नया चिट्ठाकार इन्हें अपनी प्रेरणा का प्रकाश पुंज महसूस करता है.आईये इन्हीं से पूछते हैं इनके ब्लॉग उड़न तश्तरी के पोपुलर होने का राज -


१. ब्लॉगर बनने का आईडिया कहा से आया और क्या आप को उम्मीद थी की आप का ब्लॉग उड़न तश्तरी इतना पोपुलर हो जायेगा .

शुरुवाती दौर में मैं हिन्दी में कुछ कविताएँ लिखने का प्रयास किया करता था और याहू पर ईकविता ग्रुप से २००५ में जुड़ा. वहाँ हिन्दी कविता वालों का जमावड़ा था और वहीं से हिन्दी ब्लॉग के बारे में जाना.

जब मार्च २००६ में अपना ब्लॉग बनाया, तब तक मैं ईकविता ग्रुप में एक पहचान तो बना ही चुका था लेकिन निश्चित ही ब्लॉगजगत में आकर इतना स्नेह और लोकप्रियता हासिल होगी, यह कभी नहीं सोचा था.

इसी माध्यम से जुड़ाव के बाद अनूप शुक्ला ’फुरसतिया’ जी ने मुझे गद्य लेखन के लिए उकसाया और बस तब से गद्य पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हल्के फुल्के प्रयास जारी हैं. लोग पसंद कर लेते हैं, हौसला मिलता है और निरंतरता बनी हुई है.

२. ब्लॉग का नाम उड़न तश्तरी रखने के पीछे क्या सोच थी ?

बस, एक सोच थी कि जो भी ख्याल दिमाग में उभरेंगे, उन्हें जस का तस इस माध्यम पर रख दूँगा और फिर ख्यालों की उड़ान, उसका तो कोई ओर छोर होता नहीं तो कुछ अजूबा ही सही और मन में कौंधा-उड़न तश्तरी. बस, नामकरण हो गया. http://udantashtari.blogspot.com/


३. आप कनाडा में रहते है .कही ब्लॉगर बनने के पीछे ये सोच तो नहीं थी की इस बहाने आप अपने देश भारत से जुड़े रहे .

हिन्दी कविता समूह और फिर हिन्दी ब्लॉग से जुड़ने की मूल वजह ही अपने देश से, अपनी जमीन से, अपनी भाषा से, अपने लोगों से वापस जुड़ना था. एक अकेलेपन का अहसास, काम के सिलसिले में दिन भर अंग्रेजी से जुड़े रहने के बाद, हिन्दी में ख्याल सांझा करना कितना सुकून दायक हो सकता है, ये तो अहसासे बिना नहीं जाना जा सकता. मैने अहसासा है इसे पल पल. एक अद्भुत अनुभूति!!

अब तो संपर्कों, टिप्पणियों और अन्य साथी ब्लॉगरों के बीच अंतर्जाल पर समय बिताते पता ही नहीं लगता कि हम भारत में नहीं हैं.

४. विदेश में रहने के वावजूद आप लिखने के लिए वक़्त किस तरह से निकालते है ?

शायद विदेश में रहने के कारण ही लिखने के लिए वक्त निकाल लेते हैं. भारत में तो रिश्ते नाते, दोस्त, काम आदि के बीच इतना समय ही नहीं होता था कि कुछ लिख पढ़ पायें. यहाँ सोमवार से शुक्रवार दफ्तर का समय ८ से ४ होता है. उसके बाद न दफ्तर और न दफ्तर से जुड़ी बातें. मित्रों से मिलने का दिन भी शुक्र, शानि की रात कहीं किसी के घर सारे मित्रों की दावत के सिवाय और कोई नहीं. दफ्तर से आकर आप अपने लिए हैं और परिवार के लिए. बच्चे बड़े होकर अपने अपने काम में लग गये हैं तो समय ही समय रहता है.

वैसे भी मैने अपने सोने के समय को मात्र ४ से ५ घंटे में सीमित कर रखा है तो और अधिक वक्त मिल जाता है.

५. आप अपने बेक ग्राउंड के बारे में कुछ बताये ..मसलन आप ने अपना बचपन कहा गुजारा ..आप ने पढाई लिखी कहा की .

मेरे याद के बचपन से लेकर सन १९९९ तक का समय जबलपुर(म.प्र) में बीता. बीच में ४ साल बम्बई में चार्टड एकाउन्टेन्सी की पढ़ाई की और फिर जबलपुर आकर खुद की प्रेक्टिस शुरु की और कनाडा आने के ठीक पहले तक उसी में लगे रहे.

जबलपुर की बहुत सारी यादें इस दिल में सहेजे चले आये हैं कनाडा और जब भी मौका मिलता है, झट से पहुँच जाते हैं वापस जबलपुर.

राजनिति में बहुत ज्यादा दखल था. कांग्रेस आई के साथ जुड़े रहे और लगभग सभी बड़े नामों के साथ काम किया और व्यक्तिगत संबंध रखे लेकिन भारत छूटा तो लगभग सब छूट गया मात्र यादों के सिवाय.

६. भारत से कनाडा कैसे पहुंचे .

बेटे दोनों १२वीं कर चुके थे. इच्छा थी कि वो कनाडा आकर विश्वविद्यालय की पढ़ाई करें. इसके पूर्व भी घूमने कनाडा कई बार आना हुआ था. बहुत से मित्र यहाँ थे. बस, कुछ उन्हीं के केरियर को लेकर और कुछ अपने मन की दबी चाह कि वहाँ भी किस्मत आजमाई जाये, रह कर देखा जाये, यहाँ ले आई.

७. क्या देश से दूर रहने का गम आप को खलता है ?

खलता नहीं, बहुत ज्यादा खलता है. दिन तो व्यस्तता में गुजर जाता है लेकिन मुझे आज इतने सालों बाद भी कोई ऐसी रात याद नहीं जब मैं सपने में भारत में न रहा हूँ. कहते है अवचेतन मन सपने में रुप लेता है. शायद मन से मैं भारत के बाहर कभी आया ही नहीं.

यहाँ सुख सुविधायें हैं, परिवार है. सब कुछ है बस, वो भारत नहीं है.

८. कनाडा में आप खाली समय किस तरह से बिताते है?

खाली समय में घूमना फिरना, अलग अलग शहरों में जाना, मित्रों के साथ दावतें और मुलाकातें, परिवार के साथ समय गुजारना. फिर कुछ न कुछ नया कोर्स करते रहना और अपने ज्ञान में वृद्धि करते रहने का चस्का लगा हुआ है, तो वो जारी रहता है. बहुत सारे कोर्स कर डाले इन सालों में और बहुत कुछ सीखा कम्प्यूटर के बारे में.

कुछ पत्रिकाओं के लिए तकनिकि लेखन भी करता हूँ. फिर बाकी समय ब्लॉग पर बिताना बहुत पसंद आता है.

९. हाल ही में जिस तरह से ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगो पर हमला हुआ उसे आप किस तरह से देखते है और कनाडा में भारतीय मूल के लोगो किस क्या हाल में है ?

ऑस्ट्रेलिया में हुई घटनाएँ निश्चित ही दुखद एवं अफसोसजनक है. शायद उनके यहाँ बाहर से आकर बसने वालों का सिलसिला बहुत पुराना नहीं है और न ही कनाडा और अमेरीका जैसे व्यवसायिक अवसर (ऑपरच्यूनिटिज) उपलब्ध हैं तो वहाँ के युवा बाहरी लोगों के विषय में यह सोचने को मजबूर हो गये कि वो उनके हिस्से की ऑपरच्यूनिटी लिए जा रहे हैं और इस तरह के हमले उसी मानसिकता के चलते हुए हो, ऐसा मैं सोचता हूँ.

कनाडा तो लम्बे समय से बाहर से लोगों को बुलाता रहा है. ढ़ेरों व्यवसाय और नौकरी के अवसर उपलब्ध हैं और शायद इतने दिनों से स्वागत करते, अब उनके लिए दूसरे मूल के लोगों में घुल मिल जाना सामान्य सी प्रक्रिया है. अतः यहाँ ऑस्ट्रेलिया जैसे हालात देखने में नहीं आते.

कहीं हो सकता है कि किसी प्रमोशन आदि के मामले में किसी एक मूल के लोगों को दूसरे मूल से ज्यादा अवसर दे दिया गया हो तो यह तो मानव समाज में हर जगह ही देखने में आ जाता है किन्तु उन्हें अतिश्योक्ति की श्रेणी में रखना ही ज्यादा बेहतर होगा.

१०. कनाडा में आप भारतीय फिल्म देख पाते है ..आप का पसंदीदा फिल्म ऐक्टर और ऐक्ट्रेस कौन है ?

टोरंटो कनाडा का ऐसा शहर है जहाँ आप भारत को कहीं मिस नहीं करते. भारतीय बाजार है. अनेक रेस्टॉरेन्ट, दुकानें, हर वो सामान जो भारत में आप दुकान से लाते हैं, वो वहीं का, एक बेहतर क्वालिटी में यहाँ उपलब्ध है.यहाँ तक कि पान भी. अनेक मंदिर हैं, गुरुद्वारे हैं.

बस, यह हो सकता है कि आपके घर के नजदीक न हो, कुछ दूर हों मगर है सब कुछ. हिन्दी फिल्मों के टॉकीज भी हैं और फिर विडियो डीवीडी की दुकानें भी. टॉकीज में जाना तो कम ही होता है, भारत में भी ऐसा ही था, किन्तु घर पर तो हफ्ते में तीन चार फिल्में आम सा है. यह अलग बात है कि मैं टीवी के सामने बैठा कम्प्यूटर पर ब्लॉग देखते देखते बीच बीच में फिल्म भी देख लेता हूँ और पत्नी पूरी तन्मयता से सिर्फ टीवी देखती है , जब फिल्म लगी हो या उसका सीरियल आ रहा हो.

एकटर्स में मुझे अमिताभ और नये लोगों में अक्षय कुमार बहुत पसंद हैं. राजपाल यादव का तो मैं मुरीद हूँ. एक्ट्रेस में नाज़नीन और रेखा पिछले समय से और आज तब्बू बहुत पसंद है.

११. आप अपने परिवार के मेम्बेर्स के बारे में कुछ बताये .

मैं, मेरी पत्नी, और एक बहु, दो बेटे. बड़े बेटे की पिछले साल ही शादी की है भारत जाकर. वो अपनी पत्नी के साथ इंग्लैण्ड में नौकरी कर रहा है और छोटा बेटा अमरीका में कम्प्यूटर सलाहकारी कर रहा है. हफ्ते दो हफ्ते में आ जाता है एक बार शनिवार इतवार के लिए.

१२. भारत के लोगो से कुछ कहना चाहते है ?

भारत के लोगों का जो स्नेह मुझे और मेरे ब्लॉग को मिलता है, उसके लिए आभार तो कहना ही चाहता हूँ और साथ ही यह भी कि भारत हो या भारत के बाहर, हमारी अपनी भाषा ही हमारी पहचान है. व्यवसाय के लिए चाहे जो भी भाषा इस्तेमाल करें मगर हिन्दी का सम्मान करें, उसके विकास, प्रचार और प्रसार में योगदान दें.
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15 comments:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 12:21 pm बजे

समीरजी का इतना अच्‍छा साक्षात्‍कार लिया और शीर्षक बना दिया फिल्‍म के एक्‍टरों को। इससे क्‍या पाठकों का ज्‍यादा ध्‍यान आकर्षित होता? समीर जी ही खुद ब्‍लाग जगत के सेलेब्रिटी हैं तो उनका नाम ही यहाँ चलता है। समीरजी को शुभकामनाए।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 12:31 pm बजे

समीर अंकल का शानदार साक्षात्कार...तभी तो वे सबसे अच्छे वाले अंकल जी हैं.

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'पाखी की दुनिया' में 'करमाटांग बीच पर मस्ती...'

संगीता पुरी ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 12:35 pm बजे

बहुत बढिया साक्षात्‍कार .. समीर जी के बारे में जानकर और पढकर अच्‍छा लगा !!

सदा ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 1:08 pm बजे

बहुत ही बढि़या साक्षात्‍कार, इस प्रस्‍तुति से समीर जी के बारे में एवं देश प्रेम का जज्‍बा रखने वाले भारतीय से मुलाकात हो सकी, आपका आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 3:39 pm बजे

साक्षात्कार बहुत बढ़िया रहा ...शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 5:09 pm बजे

बढिया साक्षात्‍कार .. वैसे तो समीर भाई हर दिल अज़ीज़ हैं .... पुराने खिलाड़ी हैं ...

समय चक्र ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 6:24 pm बजे

बढिया साक्षात्‍कार ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ...

गीतेश ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 7:01 pm बजे

शानदार साक्षात्कार...

mala ने कहा… 21 सितंबर 2010 को 7:02 pm बजे

बहुत ही बढि़या साक्षात्‍कार,बेहतरीन प्रस्‍तुति ...

shikha varshney ने कहा… 22 सितंबर 2010 को 12:49 am बजे

समीर जी को कौन नहीं जनता .साक्षात्कार बहुत बढ़िया रहा.

दीपक 'मशाल' ने कहा… 22 सितंबर 2010 को 1:53 am बजे

समीर जी को पुनः पढ़ना मजेदार रहा.. आभार ब्लोगोत्सव टीम का..

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj ने कहा… 1 अक्तूबर 2010 को 10:08 am बजे

भारत हो या भारत के बाहर, हमारी अपनी भाषा ही हमारी पहचान है. व्यवसाय के लिए चाहे जो भी भाषा इस्तेमाल करें मगर हिन्दी का सम्मान करें, उसके विकास, प्रचार और प्रसार में योगदान दें.

समीर जी आपके बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा...मुझे अपने इस प्रश्न का भी जबाब मिल गया कि आपको इतना समय कहाँ से मिलता है ...


धन्यबाद ब्लोगोत्सव का और समीर जी का भी

 
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