प्रख्यात चित्रकार इमरोज के दो रेखाचित्र
प्रख्यात चित्रकार इमरोज की उपस्थिति मात्र से ही इस प्रेमपरक उत्सव का मान बढ़ गया है । हम कृतज्ञ हैं कि इमरोज इस उत्सव में शामिल हुए । अपना साक्षात्कार दिया, अमृता जी की अप्रकाशित रचनाएँ दी और अपने दो रेखाचित्र भी । इमरोज जो अमृता की जिन्दगी में एक ऐसी बहार बन कर आए जिसकी खुशबू आज भी बरकार है। एक नज्म में इमरोज अपने आपको कुछ तरह से बयान करते हैं-" मैं एक लोक गीत बेनाम हवा में खड़ा हवा का हिस्सा जिसे अच्छा लगे वो याद बना ले और अच्छा लगे तो अपना ले जी में आए तो गुनगुना ले मैं इक लोकगीत सिर्फ इक लोक लोकगीत जिसे नाम की कभी दरकार नहीं" प्रस्तुत है इस उत्सव के लिए ख़ास तौर पर प्रेषित उनके दो रेखाचित्र -
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9 comments:
प्रेम से ओत प्रोत चित्र ...सुन्दर
बहुत सुन्दर चित्र...यही अंदाज तो इमरोज़ साहब को एक नई पहचान देता है.
jaane pehchaane chitr bahut accha laga inhe yahan dekh kar shukriya
चित्र देखते ही पहचाने जाते हैं। अपनी कहानी खुद कह जाते हैं।
बोलते हुवे चित्र .... कवि मन का आईना .... लाजवाब ....
भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।
मुझे भी इमरोज़ जी के घर जाने का सौभाग्य मिला था. प्रेम कुटीर में उनके बनाये चित्र, अमृता जी की तस्वीरे, नज्मो का प्रवाह पाया... यहाँ इस् उत्सव के लिए उन चित्रों को देखना, उत्सव के आरम्भ की शंखध्वनी सा प्रतीत हुआ...
चित्र नही ये एक सजीव सा एहसास हैदिल की किसी पर्त से निकाल कर कागज़ पर हौले से रख दिया गया। प्रभात् जी आज कल आपको पता है व्यस्त हूँ। बेटी का सिजेरियन हुया है । लगता है इन्डिया आ कर ही अधिक अक्टिव हो पाऊँगी ब्लाग पर।अपका ये उत्सव बहुत अच्छा लगा और इस उत्सव के बहाने ये मुलाकात अच्छी लगी । धन्यवाद और शुभकामनायें
जीवंत रेखाचित्र मन को ताज़गी दे गए. इमरोज़ जी को बधाई. आपको धन्यवाद.
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