रश्मि प्रभा की कविता : आँगन
(कविता )
आँगन का कांसेप्ट ही ख़त्म हो चला
तुलसी, नन्हीं चिड़िया ....
तुलसी गमले में ,
चिड़िया खिड़की पर शीशे से बाहर...
पहले पिलर थे - छुप्पाछुप्पी के लिए
यानि मासूमियत के लिए
अब तो अम्बुजा सीमेंट की दीवारें हैं
दीवार के उस पार हर रिश्ते हैं
और कमरे में अपने अनुमान ,
अपनी लकीरें, अपना इगो !
() रश्मि प्रभा
http://lifeteacheseverything.blogspot.com/
7 comments:
Di.........lekin inn diwaro me bhi jaan hai......:)
apart from joke........sach kaha aapne, kahan gayee wo angan wo tulsi chaoura wo baramda......sab to dur ho gaya......:(
ek achchhi prastuti!!
Bilkul sahi hai! Mujhe yaad hai,Mumbai me kuchh saal pahle ek bachhe ne 'aangan'lafz suna to poochh baitha,"wo kya hota hai?"
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
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पाखी की दुनिया में मायाबंदर की सैर...
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
आँगन का कांसेप्ट ही ख़त्म हो चला
तुलसी, नन्हीं चिड़िया ....
तुलसी गमले में ,
बिलकुल सही कहा बदलते परिवेश पर सुन्दर कविता। बधाई
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति---पर क्या करें..इस पर भी सरोकार पर ..द्रष्टि दी जाय तो और भी सुन्दर हो...
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