(कविता )
आँगन का कांसेप्ट ही ख़त्म हो चला
तुलसी, नन्हीं चिड़िया ....
तुलसी गमले में ,

चिड़िया खिड़की पर शीशे से बाहर...
पहले पिलर थे - छुप्पाछुप्पी के लिए


यानि मासूमियत के लिए
अब तो अम्बुजा सीमेंट की दीवारें हैं

दीवार के उस पार हर रिश्ते हैं
और कमरे में अपने अनुमान ,

अपनी लकीरें, अपना इगो !

() रश्मि प्रभा
http://lifeteacheseverything.blogspot.com/

7 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा… 18 अगस्त 2010 को 11:47 am बजे

Di.........lekin inn diwaro me bhi jaan hai......:)

apart from joke........sach kaha aapne, kahan gayee wo angan wo tulsi chaoura wo baramda......sab to dur ho gaya......:(

ek achchhi prastuti!!

kshama ने कहा… 18 अगस्त 2010 को 5:00 pm बजे

Bilkul sahi hai! Mujhe yaad hai,Mumbai me kuchh saal pahle ek bachhe ne 'aangan'lafz suna to poochh baitha,"wo kya hota hai?"

Akshitaa (Pakhi) ने कहा… 19 अगस्त 2010 को 11:45 am बजे

बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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पाखी की दुनिया में मायाबंदर की सैर...

सदा ने कहा… 23 अगस्त 2010 को 12:13 pm बजे

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

mala ने कहा… 28 अगस्त 2010 को 11:41 am बजे

बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति

निर्मला कपिला ने कहा… 31 अगस्त 2010 को 11:18 am बजे

आँगन का कांसेप्ट ही ख़त्म हो चला
तुलसी, नन्हीं चिड़िया ....
तुलसी गमले में ,
बिलकुल सही कहा बदलते परिवेश पर सुन्दर कविता। बधाई

shyam gupta ने कहा… 16 दिसंबर 2010 को 12:33 pm बजे

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति---पर क्या करें..इस पर भी सरोकार पर ..द्रष्टि दी जाय तो और भी सुन्दर हो...

 
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