बसंत आर्य की व्यंग्य कविता : सफेदी का राज
बेटा बोला - पिताजी
जो लोग खुद को
राज नेता कहते हैं
हमेशा
सफेद खादी ही क्यों पहनते हैं ?
क्यों नहीं पहनते कलरफुल ड्रेस
जो देखने में लगे फाइन
क्या इन्हे नहीं भाते
अच्छे अच्छे फैशनेवल डिजाइन ?
बाप बोला - बेटे
बात तो तुमने सच्ची कही है
पर सच में ये आदमी ही नहीं है
ये तो जनता के सीने में चुभे हुए
कटार और भाले हैं
जो मन के बडे कुरूप और काले हैं
इसीलिए सफेद कपडे पहन कर
खुद को भरमाते है
हमको बहलाते है
और असल में इनकी तो
आत्मा ही मर चुकी है
ये जिन्दा कहाँ हैं
ये तो चलते फिरते मुरदे हैं
इसीलिए तो हर कोई इन्हें देख कर
गमगीन होता है
फिर तू ही बोल बेटे
मुरदे का कफन भी क्या रंगीन होता है ?
()बसंत आर्य
http://thahakaa.blogspot.com/
3 comments:
Bada gahra kataksh jis me sanjeedgee aur udasi khalakti hai. Par mai to kahungi,ke,ye log murde nahi,pishachh hote hain,jo harwaqt insaani khoon chooske jeete hain.Murde kisiko kahan takleef pahuncha sakte hain?
गंभीर बात को व्यंग में कहा है...
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
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