....गतांक से आगे बढ़ते हुए .......


पिछले अंक में कतिपय विचारकों ने सिस्टम बनाने की बात की,किन्तु जहां तक सिस्टम बनाने की बात है तो इस सन्दर्भ में मैं यही कहूंगा कि सभी ऊँचे विचार बेकार हैं, यदि वह व्यवहार में नहीं आते, स्वयंभू मनीषियों और नेताओं के कार्यों में प्रकट नहीं होते और समाज को विकसित तथा भ्रष्टाचार से मुक्त करने का संकल्प नहीं लेते ! बाहर कम और भीतर अधिक देखना होगा ! सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष को दूसरों की समीक्षा कम और अपनी समीक्षा ज्यादा करनी होगी, तभी हम भ्रष्टाचार से मुक्त समाज की परिकल्पना को मूर्तरूप देने में सफल हो पायेंगे !

रवीन्द्र प्रभात
://www.parikalpnaa.com
=========================================================================

ज़्यादा कुछ नहीं करने की ज़रूरत है, बस हर व्यक्ति को अपने आप में ईमानदार होना होगा अगर हर कोई ख़ुद को सुधार ले तो भ्रष्टाचार क्या देश की और विश्व की हर बुराई दूर हो सकती है....एक बार ट्रेन में किसी बात पर चर्चा होते समय एक व्यक्ति की कही एक बात कहना चाहुंगी कि - ईमानदार वही है जिसे बेईमानी करने का मौक़ा न मिला हो....वैसे इस
बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूं क्योंकि अपवाद होते हैं दुनिया में लेकिन काफी हद तक सहमत हूं.....
बदलाव ज़रूरी है….

सोए हुए हुजूम का जागना ज़रूरी है
जुनून को तापना ज़रूरी है
................
बहुत हो चुका कोहराम हर तरफ
अब तो कोहराम का बाप होना ज़रूरी है
.................
बुझ चुके हैं बहुत से चिराग लेकिन
अब उस ठण्डे सूरज का जलना ज़रूरी है
...................
कब तक रखोगे इरादों को बांध कर ख़ामोशी में
अब उनका सैलाब भी ज़रूरी है
..................
राजनीति में, शिक्षा में, व्यवस्था में, प्रशासन में, सुरक्षा में, सत्ता में,
विश्वास में, उम्मीद में, ईमान में, इंसान में............ बदलाव ज़रूरी है….
बबिता अस्थाना
http://kahiankahi-babita.blogspot.com/
babitame...@gmail.com
===========================================================
बहुत अच्छी चर्चा चल रही है ।
बबिता अस्थाना जी के काव्यमय विचारों के लिए आभार !
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
*शस्वरं *
http://shabdswarrang.blogspot.com/
===========================================================
----हरिहर जी, भ्रष्टाचार नहीं के बराबर का क्या अर्थ है---कि है अवश्य......जो भारत जैसे देश की प्राचीनता तक आते आते एसा ही हो जायगा... ..टिकट की पोज़िशन भी यह है कि ....ऎजेन्टों पर टिकट उपलब्ध रहती है अर्थात भ्रष्टाचार का
नियमितीकरण होगया है...क्या विदेशी कम्पनियों द्वारा भारत में स्थापित होने के लिये रिश्वत नहीं दी गई है?.....बबिता जी की बात ही सही है ..मनुश्य मात्र के,हमारे.स्व-आचरण सुधार से ही सुधार होगा ज्यादा कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
क्या हरिहर जी समझते हैं कि कम वेतन वाले भ्रष्टाचार करते हैं, क्या मुख्यमन्त्री,नेता, सचिव स्तर के अफ़सर, मुख्य-स्तर के अफ़सर, चिकित्सक,इन्जीनीअर आदि का वेतन कम होता है जो ये भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। वेतन का तो कोई लिमिट नही होती.....भ्रष्टाचार एक चरित्र है , सही यही है कि हमें अपनी समीक्षा करनी होगी......
डा श्याम गुप्त

============================================================
जी नहीं श्याम जी ! ऐसा बिल्कुल नहीं है कि "कम वेतन वाले भ्रष्टाचार करते हैं," बल्कि मैंने पूरा फ़ोकस नेता और बड़े अफ़सरों पर रखा है।

बबीता जी की बात में दम है कि “ईमानदार वही है जिसे बेईमानी करने का मौक़ा न मिला हो....”

मौका नहीं मिलेगा यदि सिस्टम corruption-proof बनाया जाय। यह बहुत बड़ी बात नहीं है – उसे लागू करवाना बड़ी बात है।
हरिहर झा
=============================================================

श्याम जी
जरूरी बात तो ये है की सिस्टम को करप्शन प्रूफ बनाया जाय ... पर कौन बनाएगा ...बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ... कम से कम पिछले ६३ वर्षों में तो कोई बाँध नहीं सका. भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है. खुद को ईमानदार कर के क्या ये समस्या हल हो जायगी ... क्या सोफी सदी लोग इसमें शामिल होंगे ... और जब तक सभी इमानदार नहीं होते तब तक इमानदारों की क्या गति होगी ये बात किसी से छुपी है क्या भारत जैसे देश में ...

मुझे लगता है चर्चा को नया मोड़ देते हुवे अब हमें ये विचार करना चाहिए की भारत जैसे दर्श में व्यहवारिक स्तर पर इस समस्या की समाधान के लिए क्या करना चाहिए ?
....
दिगंबर नासवा
http://swapnmere.blogspot.com/
======================================================================

परिस्थिति और व्यवस्था


पकडे जाने पर चोर ने कहा,
मैं एसा न था
परिस्थितियों ने मुझे एसा बनाया है,
व्यवस्था, समाज व भाग्य ने
मुझे यहाँ तक पहुंचाया है ।
मैं तो सीधा साधा इंसान था
दुनिया ने मुझे एसा बनाया है ।


दरोगा जी भी पहुंचे हुए थे
घाट घाट का पानी पीकर सुलझे हुए थे; बोले-
'अबे हमें फिलासफी पढ़ाता है '
चोरी करता है, और -
गलती समाज की बताता है ।
परिस्थितियों को भी तो इंसान ही बनाता है ,
व्यवस्था व समाज भी तो इंसान ही चलाता है।
इसी के चलते तेरा बाप तुझे दुनिया में लाया है,
माँ बाप और समाज ने पढ़ाया है लिखाया है;
फिर भाग्य व परमात्मा भी तो इंसान ने बनाया है,
घर में, पहाड़ों में, मंदिरों में बिठाया है।


व्यवस्था के नहीं, हम मन के गुलाम होते हैं,
व्यवस्था बनाते हैं फिर गुलाम बन कर उसे ढोते हैं ।
परिस्थितियों से लड़ने वाले ही तो मनुष्य होते हैं ,
परिस्थियों के साथ चलने वाले तो जानवर होते हैं।


तू भी उसी समाज का नुमाया है,
फिर क्यों घबराया है ।
तू भी इसी तरह फिर उसी व्यवस्था को जन्म देगा ,
अतः पकड़ा गया है तो -
सजा भी तूही भुगतेगा ॥
डा श्याम गुप्त
http://shyamthot.blogspot.com/

.......परिचर्चा अभी जारी है.......

3 comments:

vandana gupta ने कहा… 2 दिसंबर 2010 को 5:38 pm बजे

बहुत बढिया चल रहा है हर संकलन उम्दा।

honesty project democracy ने कहा… 2 दिसंबर 2010 को 7:08 pm बजे

व्यवस्था के नहीं, हम मन के गुलाम होते हैं,
व्यवस्था बनाते हैं फिर गुलाम बन कर उसे ढोते हैं ।
परिस्थितियों से लड़ने वाले ही तो मनुष्य होते हैं ,
परिस्थियों के साथ चलने वाले तो जानवर होते हैं।

डॉ.श्याम गुप्त की ये पंक्तियाँ आज के सन्दर्भ में एकदम ठीक है........हमसब जीने की मजबूरी में इन भ्रष्ट मंत्रियों और कुकर्मी उद्योगपतियों से लड़ने का जज्बा खो चुके हैं इसलिए देश और समाज का ये हाल है.....

बेनामी ने कहा… 9 दिसंबर 2022 को 3:59 am बजे

Our 1-2 day delivery times may have you in possession of your aluminum sheets very quickly. Aluminum is nice for vehicles as it can be be} painted to flaunt flashy colours and not rust for a while. The costs of aluminum and metal both change depending on the time you buy nicely as|in addition to} the distributor, so sometimes metal might be costlier, and other times, it is going to be|will probably be} aluminum. This is outcome of} supply and calls for of aluminum and metal which trigger Women’s House Shoes costs to rise or decrease.

 
Top