इस पर भिन्न-भिन्न लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं, पर कहा गया है कि सबसे बड़ी समस्या वह होती है, जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर देते हैं और जीवन का एक हिस्सा मान लेते हैं। इस प्रकार देखा जाये तो 'भ्रष्टाचार' देश की सबसे बड़ी समस्या है ....!
भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुँच पाता है. इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है. सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, जिससे पहले स्थिति सुधरी है. पर कितने प्रतिशत? यह कहना मुश्किल है. जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता है।
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये जनता को और अधिक जागरुक बनना होगा और शुरुआत खुद से करनी होगी. बात-बात में सरकार को कोसने से काम नहीं चलेगा. जब हम खुद रिश्वत देने को तैयार रहेंगे तो सरकार क्या कर लेगी? हमें रिश्वत देना बन्द करना होगा, चुनाव के समय अधिक सावधानी बरतनी होगी और समझदारी से काम लेना होगा. हमें हर स्तर पर ग़लत बात का विरोध करना होगा. जब सिविल सोसायटी की जागरुकता से जेसिका लाल और रुचिका जैसी लड़कियों को न्याय मिल सकता है, तो भ्रष्टाचार को अपने देश की शासन-प्रणाली से उखाड़ फेंकना कौन सी बड़ी बात है?हमारे पास मतदान का अधिकार और सूचना के अधिकार जैसे कानून के रूप में हथियार पहले से ही हैं ज़रूरत है तो उस हिम्मत की जिससे हम भ्रष्टाचार रूपी दानव से लड़ सकें।
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भ्रष्टाचार में सिर्फ शासकीय कार्यालयों में लेने देनेवाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है। भ्रष्टाचार के इस तंत्र में आज सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं का ही दिखाई देता है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब नागरिकों द्वारा चुने हुए सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा प्रदर्शित किया गया।
कभी कफन घोटाला, कभी चारा – भूसा घोटाला, कभी दवा घोटाला, कभी ताबूत घोटाला तो कभी खाद घोटाला आखिर ये सब क्या इंगित करता है। ये सारे भ्रष्टाचार के एक उदाहरण मात्र हैं।
बात करें भारत को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए तो जिन लोगों को आगे आकर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास कर समाज को दिशा निर्देश देना चाहिए वे स्वयं ही भ्रष्ट आचरण में आकंठ डूबे दिखाई देते है।
वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो ने सिर्फ साफ स्वच्छ छवि के नेताओं का चयन करना होगा बल्कि लोकतंत्र के नागरिको को भी सामने आना होगा। उन्हें प्राणपण से यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्चस्तर पर भी भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों का बायकॉट करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीर्ध्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। कुल मिला जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार के जिन्न से बच पाना असंभव ही है।
-सूरज तिवारी ‘मलय’
surajtiwarimalay@gmail.com
(1) सद्ज्ञान, आचरण व चरित्र निर्माण की बातें, स्व संस्क्रति भाव से स्कूलों में पढाई जानी चाहिये,अर्थात स्व-भाषा में, हिन्दी में, स्वदेशी तरीके से स्वदेशी ज्ञान.स्वदेशी संस्कृति.....हिन्दी साहित्य व स्थानीय साहित्य प्री-कालेज तक आवश्यक विषय होना चाहिये...!
(2) स्कूलों में-प्राइमरी कक्षाओं में अंग्रेजी की पढाई बिल्कुल बन्द. आगे अंग्रेजी एक विषय की भांति, पढाई का माध्यम हिन्दी एवं स्थानीय भाषा होनी चाहिए ।
(3) सारे अंग्रेजी, अमेरिकी, विदेशी साहित्य, बस्तुएं, प्रयोग की व सुख-सुविधा की बस्तुओं का आयात बंद होना चाहिए ।
(4) देश के सारे अंग्रेजी समाचार पत्र, पत्रिकाएं--- ५ वर्ष के लिये बन्द--आगे काप्रोग्राम आगे कहा जायगा.. !
(5) नाच-गाने-डान्स-आदि के सभी टीवी व लाइव प्रोग्राम एक दम बन्द, सभी मनोरंजन के साधनों का व्यवसायिक प्रयोग एकदम बन्द, टीवी, सिनेमा , विह्यापनों पर कठोर सरकारी नियन्त्रण , कामार्सिअल विज्ञापन एक दम बन्द होने चाहिए ।
जब तक मनुष्य का स्व-चरित्र निर्माण नहीं होगा , आत्मानुशासन नही होगा, कोई भी तकनीक, विज्ञान, तरीका, प्रयोग काम नहीं करेगा---बस एक ही रास्ता है -भारतीय पुरा संस्क्रिति का पुनुरुत्थान !
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पश्चिमी जगत में भारत की तुलना में भ्रष्टाचार नहीं के बराबर है। सामान्य जन को कभी इसका सामना नहीं करना पड़ता । इसका क्या कारण है? यहाँ लोग ऐसा सिस्टम बनाने की फ़िराक में रहते हैं कि भ्रष्टाचार न होने पाये। भारत के व्यापारी यहाँ आ कर तुरत समझ जाते हैं कि यहाँ सब गड़बड़ चलने वाली नहीं है। जिस हद तक चलती है हर कोई चलाता है(याने भीतर से मनुष्य हर जगह एक जैसा होता है) भारत में ऐसा सिस्टम बनाना नेताओं के खिलाफ़ जाता है। जब तक नेताओं को अच्छा सिस्टम बनाने के लिये मजबूर नहीं किया जायगा यह समस्या नहीं सुलझेगी। क्या कारण है कि ट्रेन के रिज़र्वेशन कम्प्यूटर पर होने लगे तो टिकिट विन्डो पर भ्रष्टाचार नहीं के बराबर होगया? एयर-पोर्ट पर स्टाफ़ को रिश्वत न लेने के उपलक्ष में वेतन बढ़ा कर रिश्वत न लेने का दबाव डाला तो प्रभाव बहुत अच्छा हुआ।
सरकारी कोन्ट्रेक्ट देते समय ५ या १०% की रिश्वत न ली जाय ऐसा कैसे हो सकता है? नेता बिना भ्रष्टाचार के अपने चुनाव का खर्च कहाँ से उठाये? य अनुत्तरित सवाल हैं। जब तक जनता मिलकर नेता और बाबुओं को मज़बूर नहीं करेगी समाधान असंभव है।
() हरिहर झा
mailto:hariharjha2...@gmail.com
.........परिचर्चा अभी जारी है .......
6 comments:
nice
bharshtachar aazadi ke ladayee se bhi khatarnaak sthiti mein pahunch chuka hai....insaan ka laalach badhta hi jaa raha hai...sab mere liye ho... yah ek din desh kee gareeb janata ko le dubega...
..janjaagran kee sakht aawasyakata hai...jagrukta bhari prasuti ke liye aabhar
सभी ने उम्दा सुझाव दिए हैं , लेकिन डॉ श्याम गुप्त के सुझावों को अविलम्ब लागू किया जाना चाहिए। अनुशासन के बगैर कुछ भी संभव नहीं है।
सभी ने बहुत अच्छे सुझाव दिये हैं। लेकिन सवाल यहाँ ये है कि ऐसा करेगा कौन? सरकार से तो सुधार की उमीद बेकार है। शायद कोई करिश्मा ही इस मुँह लगे खून से हमे बचा सकता है इस के लिये सब से बडी जरूरत लोगों को सचेत करने की है । और हमे खुद से ही ये सफर शुरू करना होगा। अगर हम अपने अपने घर परिवार की या अपने आस पडोस के लोगों को समझाने की जिम्मेदारी भी ले लें तो बहुत लाभ हो सकता है कोई समाज सेवी संस्था के अधीन ये काम हो सकता है--- ।जब तक हम नैतिक आचरण को सुधारने के लिये प्रयास नही करेंगे तब तक कुछ नही होगा। धन्यवाद।
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
... bahut badhiyaa !!!
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