() शहरोज़ (गया, बिहार), संजीव समीर (कोडरमा, झारखंड)
गया से महज़ चौंसठ किलोमीटर के फ़ासले पर है आमस प्रखंड का गांव भूपनगर, जहां के युवक इस बार भी अपनी शादी का सपना संजोए ही रह गए. कोई उनसे विवाह को राज़ी न हुआ. वजह है उनकी विकलांगता. इनके हाथ-पैर आड़े-तिरछे हैं, दांत झड़ चुके हैं, हड्डियां ऐंठ गई हैं. जवानी में ही लोग बूढ़े हो गये हैं. गांव के लोग बीमारी का नाम बताते हैं- फ्लोरोसिस.
इलाज की ख़बर यह है कि हल्की सर्दी-खांसी के लिये भी इन्हें पहाड़ लांघ कर आमस जाना पड़ता है. भूदान में मिली ज़मीन की खेती कैसी होगी? बराए नाम जवाब है इसका. तो जंगल से लकड़ी काटना और बेचना यही इनका रोज़गार है.
पहले लबे-जीटी रोड झरी, छोटकी बहेरा और देल्हा गांव में खेतिहर गरीब मांझी परिवार रहा करता था. बड़े ज़मींदारों की बेगारी इनका पेशा था. बदले में जो भी बासी या सड़ा-गला अनाज मिलता, गुज़र-बसर करते. भूदान आंदोलन का जलवा जब जहां पहुंचा तो ज़मींदार बनिहार प्रसाद भूप ने 1956 में इन्हें यहां ज़मीन देकर बसा दिया. और यह भूपनगर हो गया.
श्राप वाला पानी
आज यहां पचास घर है. अब साक्षरता ज़रा दीखती है, लेकिन पंद्रह साल पहले अक्षर ज्ञान से भी लोग अनजान थे और तब पहली बार लोगों को पता चला कि जिसे वे किसी श्राप या ऊपरी हवा समझ रहे थे, वह असल में पानी में फ्लोराइड की अधिकता के कारण होने वाली फ्लोरोसिस नामक बीमारी है.
अचानक कोई लंगड़ा कर चलने लगा तो उसके पैर की मालिश की गयी. यह 1995 की बात है. ऐसे लोगों की तादाद बढ़ी तो ओझा के पास दौड़े. ख़बर किसी तरह ज़िला मुख्यालय पहुंची तो जांच दल के पहुंचते- पहुंचते 1998 का साल आ लगा था. तब तक ढेरों बच्चे, जवान कुबड़े हो चुके थे. प्रशासन ने लीपापोती की कड़ी में एक प्राइमरी स्कूल क़ायम कर दिया.
चिकित्सकों ने जांच के लिए यहां का पानी प्रयोगशाला भेजा. जांच के बाद जो रिपोर्ट आई उससे न सिर्फ़ गांववाले बल्कि शासन-प्रशासन के भी कान खड़े हो गए. लोग ज़हरीला पानी पी रहे हैं. गांव फलोरोसिस की चपेट में हैं. पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है.
इंडिया इंस्टिट्यूट आफ़ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ के इंजीनियरों ने भी यहां का भूगर्भीय सर्वेक्षण किया. जल स्रोत का अध्ययन कर रिपोर्ट दी थी. और तत्कालीन जिलाधिकारी ब्रजेश मेहरोत्रा ने गांव के मुखिया को पत्र लिखकर फ़लोरोसिस की सूचना दी थी. मानो इस घातक बीमारी से छुटकारा देना मुखिया बुलाकी मांझी के बस में हो! रीढ़ की हड्डी सिकुड़ी और कमर झुकी हुई है उनकी. अब उनकी पत्नी मतिया देवी मुखिया हैं.
शेरघाटी के एक्टिविस्ट इमरान अली कहते हैं कि राज्य विधान सभा में विपक्ष के उपनेता शकील अहमद ख़ां जब ऊर्जा मंत्री थे तो सरकारी अमले के साथ भूपनगर का दौरा किया था. उन्होंने कहा था कि आनेवाली पीढ़ी को इस भयंकर रोग से बचाने के लिए ज़रूरी है कि भूपनगर को कहीं और बसाया जाए. इस गांव बदर वाली सूचना ज़िलाधिकारी दफ्तर से तत्कालीन मुखिया को दी गयी थी कि गांव यहां से दो किलो मीटर दूर बसाया जाना है. लेकिन पुनर्वास की समुचित व्यवस्था न होने के कारण गांववालों ने ‘मरेंगे, जिएंगे, यहीं रहेंगे’ की तर्ज़ पर भूपनगर नहीं छोड़ा.
असमय बुढ़ापा
इस बीमारी में समय से पहले रीढ़ की हड्डी सिकुड़ जाती है, कमर झुक जाती है और दांत झड़ने लगते हैं. दैनिक हिंदुस्तान के स्थानीय संवाददाता एस के उल्लाह ने बताया कि कुछ महीने पहले सरकार ने यहां जल शुद्धिकरण के लिए संयत्र लगाया है. लेकिन सवाल यह है कि जो लोग इस रोग के शिकार हो चुके हैं, उनके भविष्य का क्या होगा? आखिर प्रशासन की आंख खुलने में इतनी देर क्यों होती है.
भारत में पहली बार 1930 में आंध्र के नल्लौर में फ्लोरोसिस का पता चला था. उसके बाद सरकार की नींद टूटी. लेकिन बदहवास और लूट तंत्र में विश्वास रखने वाली सरकारों ने लोगों को उनके ही हाल पर छोड़ दिया.
सरकारी आंकड़ों पर यकीन करें तो आज की तारीख में देश के 20 राज्यों के करीब 200 जिले पानी में फ्लोराइड की अधिकता की मार झेल रहे हैं. कम से कम 6 करोड़ 66 लाख 20 हजार लोगों की आबादी इस पानी के कारण स्थाई, अस्थाई अपंगता का शिकार हो चुकी है. जिसमें 60 लाख की आबादी तो उन बच्चों की है, जो 14 साल से भी कम उम्र के हैं. बिहार में कम से कम 11 जिलों में लोग फ्लोराइड की अधिकता के कारण असमय बुढ़ापा और बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
बेपरवाह सरकार
सरकारें लगातार दावा करती हैं कि वे फ्लोराइड की अधिकता से मुक्ति दिलाने के लिये योजनायें बना रही हैं, भूजल शुद्धिकरण प्लांट लगा रही हैं. योजनायें बनती भी हैं लेकिन फिर बंद कमरों में बनने वाली योजनायें बंद कमरों में ही दम तोड़ देती हैं.
झारखंड के कोडरमा घाटी में बसे गांव मेघातरी, उससे सटे विस्नीटिकर और करहरिया को विकास का मुखौटा तो मिल गया, हाल ही में बिजली भी पहुंची लेकिन सालों पुराने फ्लोराइड की अधिकता का अभिशाप आज यहां जनजीवन पर कुंडली मारे बैठा है. आलम यह है कि गांव के दर्जनों बच्चे और बुजुर्ग विकलांग हो चुके हैं. कुछ पढ़े-लिखे ग्रामीणों ने यह दर्द प्रशासन तक पहुंचाया पर कोई परिणाम नहीं निकला. बैसाखी पर लटके युवाओं और बच्चों को देखकर इनका दिल रोता है.
जिला मुख्यालय कोडरमा से सिर्फ 18 किलोमीटर दूर मेघातरी पंचायत की आबादी करीब ढाई हजार है. किसी जमाने में यहां माइका की अधिकता के कारण गांव के युवा क्षयरोग के कारण अपनी जान गवां रहे थे. मौत की रफ्तार इतनी तेज़ कि गांव में एक के बाद एक युवाओं की मौत होती रही और गांव विधवाओं की बस्ती कहलाने लगा.
लेकिन अब यहां जल में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने के कारण ग्रामीण विकलांग होते जा रहे हैं और तीन साल के बच्चों तक के शरीर विकृत हो चुके हैं. पानी की सुविधा के लिए गांव में कई चापानल भी लगाये गये पर स्थिति नहीं सुधरी. गांव में रहने वाले 28 साल के कुन्दन कहते हैं- “दो साल पहले अचानक स्थिति बिगडी जिसके बाद कई जगहों पर इलाज करवाया पर ठीक नहीं हो सका.”
कोई उम्मीद बर नहीं आती...
मेघातरी में सत्येन्द्र सागर सिंह का 11 वर्षीय पुत्र रीतिक, जगदीश प्रसाद का 4 वर्षीय पुत्र राजू, सरयू साव का 6 वर्षीय पुत्र दिवाकर पैरों से विकलांग हो चुके हैं. नामों की एक लंबी सूची है, जिन्हें फ्लोराइड की अधिकता ने कहीं का नहीं छोड़ा.
सामाजिक कार्यकर्ता और मेघातरी निवासी सत्येन्द्र सिंह सागर ने पानी के कारण बच्चों के विकलांग होने की जानकारी सरकारी स्तर पर विभाग को और उच्चाधिकारियों को इसकी जानकारी दी पर अब तक कोई कार्यवाई नहीं हुई.
कोडरमा के एसीएमओ डॉक्टर एमए अशरफी कहते हैं- “यह विटामिन डी या हार्मोन की कमी के कारण भी हो सकता है. पानी में फ्लोराइड की ज्यादा मात्रा भी कारण हो सकता है.” डॉक्टर अशरफी का दावा है कि इसकी जांच के लिये एक टीम गठित की जायेगी, जो जल्द ही जांच कर रिपोर्ट देगी और तब इनका इलाज करवाया जा सकेगा.
हालांकि राज्य के सर्वाधिक फ्लोराइड ग्रस्त पलामू जिले के अनुभव देखते हुए यकीन नहीं होता कि मेघातरी के लोगों को मुक्ति मिलेगी. जिला मुख्यालय डालटनगंज से लगे हुए चियांकी, चुकरु के इलाके से लेकर गढ़वा और फिर उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और छत्तीसगढ़ के रायगढ़ तक फैली फ्लोराइड पट्टी को लेकर कई योजनायें बनीं, उन पर लाखों-करोड़ों रुपये खर्च भी किये गये. लेकिन इन योजनाओं की हकीकत देखनी हो तो आप चुकरु में देख सकते हैं और रायगढ़ में भी. ()()()
6 comments:
सोनिया गाँधी,मनमोहन सिंह और प्रतिभा पाटिल की सुख सुविधा में कोई कमी नहीं होनी चाहिए ये आम लोग तो इस देश में कुत्ते बिल्ली हैं यूँ ही मरते रहेंगे.....! लेकिन इनके पैसों पर ये त्रिमूर्ति और इनकी पार्टी प्रथम नागरिक और प्रथम पार्टी बनकर ऐश करते रहेंगे....शर्मनाक स्थिति है इस देश में गद्दार और बेईमान सुख भोग रहें हैं और आम लोगों को जल शुद्धि संयंत्र के लिए भी सालों इंतजार करना पड़ता है....
बहुत चिन्तनीय स्थिती है। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
Bahut afsosjanak aur chintaniya sthiti hai... kaash aapka yah samajik trasadi bhara aalekh raajnitik rotiyan sekhne wale padhkar kuch sochne kee esthiti mein aa paate..
...Saarthak Jaankari ke liye abhar
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