मैंने जब हिंदी में ब्लोगिंग करना शुरू किया तो श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय उन बिरले चिट्ठाकारों में से एक थे जिन्हें मैं सम्मान की दृष्टि से देखता था, क्योंकि इनके लेखन में गज़ब का आकर्षण और लालित्य है . छोटी से छोटी बातों को बड़ी सहजता से प्रस्तुत कर देना और उस पोस्ट के माध्यम से गंभीर विमर्श को जन्म दे देना इनकी प्रमुख विशेषता है . प्रस्तुत है हिंदी ब्लोगिंग में उनके अनुभवों पर आधारित यह संस्मरणात्मक आलेख-


तीन साल


तीन साल गुजर गये ब्लॉगर मोड में आये। एक व्यक्ति जो मात्र मालगाड़ियों के आंकड़े देखता रहा हो कई दशक, वह अचानक अनजानों से सम्प्रेषण करने लगे – कुछ अजीब लगता है। औरों को शायद न लगे, खुद को लगता है।

जब शुरू किया था (हिन्दी ब्लॉग की पहली पोस्ट २३ फरवरी २००७ की है), तो भाषा अटपटी थी। अब भी है। वाक्य यूं बनते थे, और हैं, मानो अंग्रेजी के अनुवाद से निकल रहे हों। फिर भी काम चल गया। लोग हिन्दी का ब्लॉगर मानने लगे।

शायद लिखने कहने का मसाला था। शायद हिन्दी-अंग्रेजी समग्र में जो पढ़ा था वह बेतरतीब जमा हो गया था व्यक्तित्व में। शायद भाषा की कमी कहने की तलब को हरा न पा रही थी। शायद लिख्खाड़ों का अभिजात्य और उनकी ठीक लिखने की नसीहत चुभ रही थी। लेखन/पत्रकारिता के क्षेत्र में छद्म इण्टेलेक्चुयेलिटी बहुत देख रखी थी, और वही लोग आपको नसीहत दें कि कैसे लिखना है, तो मन जिद पकड़ रहा था। अर्थात काफी बहाना था अप्रतिहत लिखते चले जाने का।

भाषा और शब्दों की कमी पूरी की चित्रों, कैमरे और क्लिपार्ट से। बहुत पहले ही यह मन बन गया था कि नेट से मन मर्जी चित्र या सामग्री उतार कर अपनी पोस्ट नहीं बनानी है। मेरी पोस्ट जहां तक हो, मेरी ही होनी चाहिये।

कुछ समय बाद मैने अतिथि पोस्टों को भी आमन्त्रित किया। मेरी पत्नीजी ने भी लिखा। लोगों का प्रोत्साहन मिला और दुकान चल निकली!

आगे भी चले शायद। पर हमेशा मन बदलाव के लिये, परिवर्तन के लिये कुलबुलाता है। प्रयोगधर्मी होना मांगता है मन। जो भी होगा, चलेगी मन की ही!
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2 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा… 4 नवंबर 2010 को 3:02 pm बजे

बडो से सीख रहा हूं मै .... दिपावली की हार्दिक शुभकामनाये

निर्मला कपिला ने कहा… 4 नवंबर 2010 को 9:31 pm बजे

श्री श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी की पोस्ट पडःावाने के लिये धन्यवाद। आपको व श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

 
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